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Kalyan Singh Death : राम मंदिर के लिए दांव पर लगा दी थी अपनी सरकार, जानें कल्याण सिंह के जीवन की खास बातें

Kalyan Singh Death - 1991 में उत्तर प्रदेश में पहली बार भाजपा की सरकार बनी...तो मुख्यमंत्री बने कल्याण सिंह...425 में 221 विधानसभा सीटें लेकर वह सत्ता में आये. लेकिन राम मंदिर के लिए उन्होंने पूर्ण बहुमत की अपनी सरकार कुर्बान कर दी.

  • उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का शनिवार देर शाम निधन हो गया

  • दो बार बने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री, लेकिन कभी पूरा नहीं कर सके अपना कार्यकाल

  • राम मंदिर के लिए कुर्बान कर दी थी सीएम की कुर्सी, जानें क्या था वह किस्सा

Kalyan Singh Death : उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री कल्याण सिंह का शनिवार देर शाम निधन हो गया. 89 वर्ष की उम्र में उन्होंने अंतिम सांस ली. कल्याण सिंह लंबे वक्त से बीमार चल रहे थे और लखनऊ के पीजीआई अस्पताल में उनका इलाज चल रहा था. कल्याण सिंह का राजनीतिक सफर संघर्षपूर्ण रहा. 1991 में उत्तर प्रदेश में पहली बार भाजपा की सरकार बनी…तो मुख्यमंत्री बने कल्याण सिंह…425 में 221 विधानसभा सीटें लेकर वह सत्ता में आये. लेकिन राम मंदिर के लिए उन्होंने पूर्ण बहुमत की अपनी सरकार कुर्बान कर दी. 6 दिसंबर 1992 को कारसेवकों ने बाबरी मस्जिद गिरा दी, पर कल्याण सिंह ने प्रशासन को कोई कार्रवाई नहीं करने दी. जबकि, उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में यह हलफनामा दिया हुआ था कि वह मस्जिद की रक्षा करेंगे.

इस वादाखिलाफी के लिए सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें एक दिन जेल की सजा भी दी. मस्जिद गिरने के तुरंत बाद कल्याण सिंह ने मुख्यमंत्री के पद से इस्तीफा दे दिया. लेकिन अगले ही दिन 7 दिसंबर, 1992 को केंद्र की नरसिंह राव सरकार ने उत्तर प्रदेश सरकार को बर्खास्त कर दिया. कल्याण सिंह ने अपनी सरकार गंवा दी, लेकिन हिंदुत्ववादी खेमे में उन्होंने अपना कद ऊंचा कर लिया. वह अटल, आडवाणी के बराबर के नेता गिने जाने लगे. लेकिन वह जल में रह कर मगर से बैर कर बैठे और अपने सियासी सफर को वक्त से पहले ही खत्म कर लिया.

1993 के विधानसभा चुनाव में भाजपा सरकार बनाने लायक सीटें नहीं ला पायी. 1996 में फिर से चुनाव हुए. कल्याण सिंह की अगुवाई में भाजपा 173 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी, पर सरकार नहीं बना सकी. राष्ट्रपति शासन लगा. इस बीच भाजपा और बसपा की खिचड़ी पकी. भाजपा के समर्थन से मायावती मुख्यमंत्री बन गयी. समझौता हुआ था कि छह महीने बसपा और छह महीने भाजपा का मुख्यमंत्री रहेगा. मायावती के छह महीने पूरे हुए, तो कल्याण सिंह 21 सितंबर, 1997 को मुख्यमंत्री बने. लेकिन एक महीना भी नहीं बीता कि मायावती ने समर्थन वापस ले लिया. कल्याण सिंह का जाना तय था. लेकिन उन्होंने जंबो मंत्रिमंडल का इतिहास रचा और 90 से ज्यादा मंत्री बना कर अपनी सरकार बचायी.

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पहले कार्यकाल में कल्याण सिंह की छवि बोल्ड प्रशासक की बनी थी, लेकिन दूसरे कार्यकाल में कहानी अलग रही. राजा भैया जैसे बाहुबली उनके मंत्रिमंडल में शामिल हो गये. कल्याण सिंह की करीबी कुसुम राय के सरकार और पार्टी के कामकाज में बढ़ते दखल से भी पार्टी के कई नेता नाराज रहने लगे. 21 फरवरी, 1998 को यूपी के तत्कालीन राज्यपाल रोमेश भंडारी ने कल्याण सरकार को बर्खास्त कर दिया. जगदंबिका पाल को देर रात मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलायी गयी. इलाहाबाद हाइकोर्ट के आदेश पर जगदंबिका पाल को हटना पड़ा और कल्याण सिंह को अपनी कुर्सी वापस मिली.

1997 में पड़ी राह अलग होने की नींव : 1997 में छह महीने सीएम रहने के बाद जब मायावती ने भाजपा के लिए कुर्सी छोड़ने में आनाकानी की, तो कल्याण सिंह को लगा कि प्रधानमंत्री बनने के लिए वाजपेयी बसपा से राष्ट्रीय स्तर पर गठबंधन की कोशिश में हैं. यहीं से उनका वाजपेयी से मनमुटाव हुआ. 1999 के लोकसभा चुनाव में यूपी में भाजपा को काफी नुकसान हुआ. आरोप लगे कि वाजपेयी को पीएम बनने से रोकने के लिए कल्याण सिंह ने भितरघात किया. पर वाजपेयी पीएम बनने में सफल रहे. इसके बाद कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाने की मांग ने जोर पकड़ लिया. 12 नवंबर 1999 को उन्हें इस्तीफा देना पड़ा. रामप्रकाश गुप्त सीएम बनाये गये.

1962 में पहली बार लड़े थे चुनाव : कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी, 1932 को अलीगढ़ जिले के अतरौली में हुआ. बीए करने के बाद वह भारतीय जनसंघ में सक्रिय हो गये थे. 1962 में वह अतरौली विधानसभा सीट से लड़े, पर पराजित हुए. पांच साल बाद चुनाव में उन्हें जीत मिली. 1967 के बाद 69, 74 और 77 के चुनाव में भी जीते. 1985 के चुनाव में फिर जीते. तब से लेकर 2004 विधायक रहे.

1999 में आखिरकार पार्टी से निकाले गये: केंद्रीय नेतृत्व के दबाव में कल्याण सिंह ने इस्तीफा तो दे दिया, पर प्रधानमंत्री वाजपेयी के खिलाफ भड़ास निकालने से वह खुद को नहीं रोक पाये. 9 दिसंबर 1999 को उन्हें पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया. कल्याण सिंह ने नयी पार्टी बनायी, पर सफलता नहीं मिली.

मोदी युग में दोबारा घर वापसी, बने राज्यपाल : 2004 में उन्होंने भाजपा में वापसी का फैसला किया. 2007 का यूपी चुनाव उनकी अगुआई में लड़ा गया, लेकिन कामयाबी नहीं मिली. फिर उनकी राह भाजपा से अलग हो गयी. 2014 में मोदी युग के बाद कल्याण ने दोबारा भाजपा में वापसी की. वह राजस्थान का राज्यपाल बने.

नकल रोकने के लिए याद रखे जायेंगे : पहली बार मुख्यमंत्री का पद संभालने के बाद कल्याण सिंह कड़े प्रशासक के रूप में पेश आये. उन दिनों उत्तर प्रदेश में बोर्ड परीक्षाओं में धड़ल्ले से नकल होती थी. कल्याण सिंह और उनके शिक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने इसे रोकने का फैसला किया. वे नकल रोकने के लिए कड़ा कानून लाये. बड़ी संख्या में छात्रों को जेल जाना पड़ा, पर नकल तो रुक गयी.

कल्याण सिंह जी का जनमानस से अद्भुत जुड़ाव था. मुख्यमंत्री के रूप में उन्होंने साफ-सुथरी राजनीति की व शासन-व्यवस्था से अपराधियों, भ्रष्टाचारियों को बाहर‌ किया.

रामनाथ कोविंद, राष्ट्रपति

जन-जन के हृदय में बसनेवाले प्रखर राष्ट्रवादी आदरणीय कल्याण सिंह जी जैसा महान व्यक्तित्व ढूंढ़ने पर विरले ही मिलता है. वे राम जन्मभूमि आंदोलन के नायक रहे.

अमित शाह, केंद्रीय गृह मंत्री

लाखों कार्यकर्ताओं को पार्टी की सेवा के लिए तैयार करनेवाले बाबू जी की छवि सदैव हमारे मन-मस्तिष्क में विराजमान रहेगी.

जेपी नड्डा, भाजपा अध्यक्ष

Posted By : Amitabh Kumar

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