(श्रीनगर से सुरेश एस डुग्गर) : मच्छेल सेक्टर एक बार फिर चर्चा में हैं. यह भारतीय सेना के लिए सिरदर्द है. शनिवार तड़के पाकिस्तानी बार्डर एक्शन टीम (बैट) ने एक बार फिर मच्छेल सेक्टर में एक फारवर्ड भारतीय सैनिक चौकी पर कब्जे की कोशिश की. हालांकि यह कोशिश नाकाम रही. एक पाकिस्तानी कमांडो मारा गया. हमले में एक भारतीय जवान शहीद हो गया, जबकि मेजर समेत पांच सैनिक जख्मी हो गये. यह हमला करगिल विजय दिवस के ठीक एक दिन बाद हुआ है, जहां पीएम मोदी ने पाकिस्तान को कड़ी चेतावनी देते हुए कहा था कि भारतीय सेना आतंकवाद को कुचल देगी.
दरअसल, मच्छेल कुपवाड़ा में है और लोलाब घाटी के करीब है. यह एलओसी के पार से कुपवाड़ा जिला में घुसपैठ का आतंकियों के लिए एक आसान रास्ता है. यह समुद्र तल से 6,500 फीट से ज्यादा की ऊंचाई पर है. यह काफी मुश्किल इलाका है. यहां घने जंगल हैं. आतंकी आसानी से इसमें छिप जाते हैं. यहां का मौसम और इलाके की बनावट भी आतंकियों के पक्ष में जाती है. यह कुपवाड़ा शहर से महज 50-80 किमी की दूरी पर है और यहां भारत व पाकिस्तान के बंकर्स एक-दूसरे के काफी करीब हैं. आतंकी कुपवाड़ा व लोलाब घाटी पहुंचने के लिए घुसपैठ के कई रास्तों का इस्तेमाल करते हैं. वर्ष 2020 में आठ नवम्बर को सेना के कैप्टन समेत चार जवान इसी सेक्टर में शहीद हुए थे. उसके बाद भी इसी सेक्टर में घुसपैठ के कई प्रयास हो चुके हैं.
तीन साल में घुसपैठ की 100 से ज्यादा कोशिशें
वर्ष 2019 में सेना के जवान मनदीप सिंह के शव के साथ मच्छेल में ही पाकिस्तानी आतंकियों ने बर्बरता की थी. यहीं से सबसे अधिक आतंकी भारत में दाखिल होने की कोशिशों में लगे रहते हैं. नेशनल काउंटर टेररिज्म अथॉरिटी के मुताबिक, तीन सालों में अकेले मच्छेल में आतंकियों ने 100 बार से अधिक घुसपैठ की कोशिशें की.
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दिसंबर 2018 में मच्छेल में ही 41 राष्ट्रीय राइफल्स के कमांडिंग आफिसर कर्नल संतोष महादिक आतंकियों के साथ मुठभेड़ में शहीद हो गये थे. अगस्त 2019 बीएसएफ के तीन जवान इस इलाके में शहीद हुए थे.
मच्छेल 2010 में आया था सुर्खियों में
2010 में मच्छेल तब चर्चा में आया था, जब एक मुठभेड़ में सेना ने तीन ग्रामीणों को मार डाला था. इसके बाद कश्मीर में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे. सेना ने मुठभेड़ की जांच का आदेश दिये. जांच में मुठभेड़ फर्जी निकली और एक पूर्व कमांडिंग आफिसर समेत छह जवानों को आजीवन कारावास की सजा हुई.
इन रास्तों से घुसपैठ करते हैं आतंकी
भारत के आखिरी गांव से महज छह किमी की दूरी पर एलओसी है. दूसरी तरफ केल है, जिसके बारे में अधिकारियों का कहना है कि वह आतंकियों का सबसे बड़ा लाॅचिंगपैड है. सुरक्षा एजेंसियों ने हंडवाड़ा में घुसपैठ के कई ठिकानों का पता लगाया. काउबोल गली, सरदारी, सोनार, केल, राट्टा पानी, शार्दी, तेजियान, दुधीनियाल, काटवाड़ा, जूरा और लिपा घाटी के तौर पर इनकी पहचान की गयी. ये आतंकियों के लिए सबसे सक्रिय रास्ते हैं और वे इनका प्रयोग कुपवाड़ा, बांडीपोरा और बारामुल्ला जिले में दाखिल होने के लिए करते हैं. आतंकी शार्दी, राट्टा पानी, केल, तेजियान और दुधीनियाल के रास्ते से एलओसी पार करते हैं और फिर मच्छेल में दाखिल होते हैं.