नयी दिल्ली, अंजनी कुमार सिंह : देश में बाघ को बचाने के लिए वर्ष 1973 में केंद्र सरकार ने प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की थी. इस प्रोजेक्ट के शुरू होने के बाद भी कुछ सालों तक बाघ की जनसंख्या में गिरावट दर्ज की गयी, लेकिन समय के साथ सरकार द्वारा उठाये गये कदमों के कारण देश में बाघ की आबादी बढ़ने लगी. दुनिया के कुल बाघों में 75 फीसदी भारत में है. शनिवार को केंद्र सरकार के वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने बाघ गणना का आंकड़ा जारी किया है. इस आंकड़े के अनुसार सबसे अधिक 785 बाघ मध्य प्रदेश में मौजूद है.
झारखंड, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में बाघ की आबादी में कमी
दूसरे स्थान पर 563 बाघ के साथ कर्नाटक, तीसरे स्थान पर 560 बाघ के साथ उत्तराखंड और फिर 444 बाघों के साथ चौथे स्थान पर महाराष्ट्र है. अगर टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या की बात करें तो सबसे अधिक 260 बाघ कॉर्बेट में हैं, जबकि बांदीपुर में 150, नागरहोल में 141, बांधवगढ़ में 135, दुधवा में 135, मुड़ूमलाई में 114, कान्हा में 105, काजीरंगा में 104, सुंदरबन में 100, ताडोबा में 97, सत्यमंगलम में 87 और मध्य प्रदेश के पेंच में 77 बाघ मौजूद हैं. मंत्रालय के अनुसार झारखंड, नागालैंड, मिजोरम, गोवा, छत्तीसगढ़ जैसे राज्यों में बाघ की आबादी में कमी दर्ज की गयी है. कई टाइगर रिजर्व ने बाघ की संख्या को बढ़ाने के मामले में अच्छी प्रगति की है, जबकि देश के 35 फीसदी टाइगर रिजर्व पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत बतायी गयी है.
साल 2006 में कुल 1411 बाघ थे
केंद्रीय वन व पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने शनिवार को बाघ गणना 2022 के राज्यवार आंकड़े जारी करते हुए बाघों की संख्या में अव्वल बने रहने के लिए मध्य प्रदेश को बधाई देते हुए कहा कि स्थानीय लोगों की भागीदारी और गहन निगरानी करने के कारण ही बाघों की संख्या बढ़ी है. गौरतलब है कि देश में वर्ष 2006 में कुल 1411 बाघ थे, जो 2010 में बढ़कर 1706, 2014 में 2226, 2018 में 2967 और 2022 में 3682 हो गये.
बढ़ती संख्या के साथ चिंताएं भी बढ़ रही
भारत में बाघों की संख्या बढ़ने के चलते उत्साह और चिंताएं दोनों बढ़ रही हैं. एक तरफ जहां बाघों की संख्या में गिरावट के बाद वृद्धि होना भारत के लिए राहत लेकर आया है, तो दूसरी ओर विकास बनाम पारिस्थितिकी को लेकर छिड़ी बहस और तेज हो गई है. साल 2022 की गणना के अनुसार भारत में बाघों की संख्या 3,167 है. दुनियाभर में जितने बाघ हैं, उनमें से 75 प्रतिशत भारत में हैं. एक समय इनके जल्द विलुप्त होने का खतरा पैदा हो गया था, लेकिन अब ऐसा नहीं है. ऐसा 50 साल पहले 1973 में शुरू हुए ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ की वजह से संभव हो पाया है. जिस समय यह परियोजना शुरू हुई, उस वक्त बाघों की संख्या महज 268 थी.
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कैसे आया यह परिवर्तन ?
अंतरराष्ट्रीय बाघ दिवस से पहले विशेषज्ञों ने कहा कि हालांकि यह बदलाव वन्यजीव स्थलों में बढ़ते मानवीय हस्तक्षेप, वन्यजीवों के सिकुड़ते ठिकाने, भारत के वनक्षेत्र की खराब होती गुणवत्ता और नीतियों में परिवर्तन के बीच आया है. वन्यजीव संरक्षणवादी प्रेरणा बिंद्रा ने ‘पीटीआई-भाषा’ से कहा, “हमारे जनसंख्या घनत्व और अन्य दबावों के बावजूद, बाघों के संरक्षण की यह उपलब्धि आसान नहीं है और प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत के बाद से यह एक क्रमिक प्रक्रिया रही है. हमें इस बात का गर्व हो सकता है कि भारत में बाघों की संख्या बढ़ रही है, जबकि कुछ देशों में ये विलुप्त हो चुके हैं. इस सफलता का श्रेय हमारे लोगों की सहनशीलता, राजनीतिक इच्छाशक्ति और एक मजबूत कानूनी व नीतिगत ढांचे को दिया जा सकता है.”
‘कानूनी ढांचे को “कमजोर” किया जा रहा’
हालांकि उन्होंने वन संरक्षण अधिनियम, 1980 में हाल ही में प्रस्तावित संशोधनों, संरक्षित क्षेत्रों में हानिकारक विकास परियोजनाओं, बाघों के रहने के स्थानों पर खनन, और पन्ना बाघ अभयारण्य में केन बेतवा नदी लिंक जैसी परियोजनाओं का हवाला देते हुए कहा कि कानूनी ढांचे को “कमजोर” किया जा रहा है. भारतीय वन्यजीव संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक कमर कुरैशी ने एक विपरीत दृष्टिकोण दिया और कहा कि सुधारात्मक उपाय किए जा रहे हैं.
‘विकास के बारे में पारिस्थितिक दृष्टि से सोचना होगा’
कुरैशी ने उत्तराखंड, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश सहित हालिया बुनियादी ढांचा परियोजनाओं का हवाला देते हुए कहा “हमें विकास के बारे में पारिस्थितिक दृष्टि से सोचना होगा. राजमार्ग बनाते समय अब हम बाघों और अन्य जानवरों के गुजरने के लिए सुरक्षित मार्ग बनाने के बारे में सोच रहे हैं. यह भारत में कई स्थानों पर पहले से ही हो रहा है.”