मणिपुर में 3 मई से जारी हिंसा को लेकर जांच समिति ने सुप्रीम कोर्ट में अपनी रिपोर्ट सौंप दी है. रिटायर्ड जस्टिस गीता मित्तल की अध्यक्षता वाली समिति ने तीन रिपोर्ट सौंपी है. इसपर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, रिपोर्ट को संबंधित वकीलों को दिया जाए.
जांच समिति की रिपोर्ट में क्या है खास
रिटायर्ड जस्टिस गीता मित्तल की समिति ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि मणिपुर हिंसा के पीड़ितों के आवश्यक दस्तावेजों को पुन: जारी करने की आवश्यकता है. इनमें से एक रिपोर्ट में राज्य के पीड़ितों के लिए मुआवजा योजना में सुधार की आवश्यकता पर जोर दिया गया है. रिपोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा, रिटायर्ड जस्टिस मित्तल की अगुवाई वाली समिति द्वारा सौंपी गयी रिपोर्ट दिखाती है कि आवश्यक दस्तावेज पुन: जारी किए जाने, मणिपुर मुआवजा योजना में सुधार लाने और एक नोडल प्रशासन विशेषज्ञ नियुक्त करने की आवश्यकता है.
रिटायर्ड जस्टिस गीता मित्तल की समिति के कामकाज पर 25 अगस्त को आदेश देगा कोर्ट
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह तीन सदस्यीय समिति के कामकाज के लिए शुक्रवार को आदेश पारित करेगा. चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जे बी परदीवाला और न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने कहा कि तीनों रिपोर्ट की प्रति सभी संबंधित वकीलों को दी जाए तथा उसने पीड़ितों की ओर से पेश वकील वृंदा ग्रोवर को समिति के लिए सुझाव एकत्रित करने का निर्देश दिया. पीठ ने कहा कि रिटायर्ड जस्टिस मित्तल की अगुवाई वाली समिति ने दस्तावेज खोने और राष्ट्रीय विधि सेवा प्राधिकरण नीति की तर्ज पर मणिपुर मुआवजा योजना में सुधार लाने की आवश्यकता जैसे मुद्दों पर तीन रिपोर्ट सौंपी हैं.
Supreme Court says three reports have been submitted by the committee headed by Justice (retd) Gita Mittal in the Manipur violence matter. The Court asks Solicitor General Tushar Mehta to go through the report and seeks his assistance in the case. pic.twitter.com/9QjRIZwnXa
— ANI (@ANI) August 21, 2023
सुप्रीम कोर्ट ने 7 अगस्त को मणिपुर हिंसा मामले को लेकर समिति गठित की थी
सुप्रीम कोर्ट ने सात अगस्त को पीड़ितों के राहत एवं पुनर्वास कार्यों और उन्हें दिए जाने वाले मुआवजे पर नजर रखने के लिए हाई कोर्ट की तीन पूर्व महिला न्यायाधीशों की एक समिति गठित करने का आदेश दिया था. इसके अलावा महाराष्ट्र के पूर्व पुलिस प्रमुख दत्तात्रेय पडसालगिकर को आपराधिक मामलों में जांच पर नजर रखने को कहा गया था. कोर्ट ने कहा था कि समिति सीधा उसे रिपोर्ट सौंपेगी. पीठ ने कहा था कि समिति की अध्यक्षता जम्मू कश्मीर हाई कोर्ट की पूर्व मुख्य न्यायाधीश मित्तल करेंगी. पीठ ने कहा था कि बंबई हाई कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) शालिनी पी जोशी और दिल्ली हाई कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश (सेवानिवृत्त) आशा मेनन समिति की दो अन्य सदस्य होंगी.
सुप्रीम कोर्ट मणिपुर हिंसा के जुड़ी करीब 10 याचिकाओं पर कर रहा सुनवाई
सुप्रीम कोर्ट मणिपुर में हिंसा से जुड़ी करीब 10 याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है जिसमें मामलों की अदालत की निगरानी में जांच के अलावा राहत एवं पुनर्वास के उपायों का अनुरोध किया गया है.
Also Read: मणिपुर हिंसा पर केंद्रीय मंत्री अनुराग ठाकुर का बयान, बोले शांति बहाल करने की कोशिश में हो रहे सफल
एम्बुलेंस में सात वर्षीय बच्चे, उसकी मां और चाची को जिंदा जलाने के मामले की जांच सीबीआई के हवाले
मणिपुर में एक कुकी-मैतेई दंपति के सात वर्षीय बच्चे को उसकी मां और चाची के साथ जिंदा जला दिए जाने की घटना समेत 20 मामले जांच के लिए पुलिस ने केंद्रीय अन्वेषण ब्यूरो (सीबीआई) को सौंप दिए हैं. सीबीआई ने तीन मई से राज्य में हुई जातीय झड़पों की जांच शुरू कर दी है. अनुसूचित जनजाति (एसटी) का दर्जा देने की मैतेई समुदाय की मांग के विरोध में पतर्वतीय जिलों में ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ आयोजित किए जाने के बाद कुकी और मैतेई लोगों के बीच झड़पें शुरू हुई. हिंसा में अब तक 160 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं और सैकड़ों लोग घायल हुए हैं.
4 जून को भीड़ ने एम्बुलेंस पर किया था हमला, बच्चे की हुई थी मौत
गौरतलब है कि चार जून को पश्चिम इंफाल जिले के इरोइसेम्बा में भीड़ ने पुलिस की निगरानी में रही एक एम्बुलेंस पर हमला कर दिया और उसमें आग लगा दी, जिससे टोनसिंग हैंगसिंग नामक बच्चे की मौत हो गई. गोलीबारी की एक घटना के दौरान टोनसिंग के सिर में गोली लगने के बाद उसकी मां मीना हैंगसिंग और चाची लिडिया लौरेम्बम उसे मणिपुर की राजधानी के एक अस्पताल में ले जा रही थीं. लड़के की मां मैतेई समुदाय से थी जबकि उसके पिता कुकी हैं.
सीबीआई को सौंपी गयी दो रिपोर्ट
सीबीआई के अधिकारियों को दो प्राथमिकी सौंपी गई हैं. इनमें एक लाम्फेल थाने में पुलिस द्वारा दर्ज की गई और दूसरी प्राथमिकी लड़के के पिता जोशुआ हैंगसिंग द्वारा कांगपोकपी थाने में दायर कराई गई थी. लाम्फेल थाने में मामला हत्या से संबंधित धाराओं के तहत दर्ज किया गया, जबकि कांगपोकपी में मामला गैर इरादतन हत्या के प्रयास के तहत दर्ज किया गया. अधिकारियों ने कहा कि जब भीड़ ने उन पर हमला किया तो टोनसिंग, उसकी मां और चाची (दोनों मेइती ईसाई), एक ड्राइवर और एक नर्स के साथ एम्बुलेंस में थे. ड्राइवर और नर्स को भाग जाने दिया गया जबकि पुलिस कर्मियों को पीछे हटना पड़ा जिन्होंने हवा में गोलियां चलाईं. अधिकारियों ने कहा कि भीड़ ने लड़के की मां और चाची द्वारा उन्हें जाने देने की बार-बार की गई अपील को अनसुना कर दिया और एम्बुलेंस को आग लगा दी. तीनों एम्बुलेंस के भीतर थे.
एम्बुलेंस पर 2,000 लोगों की भीड़ ने किया था हमला
अधिकारियों ने बताया कि टोनसिंग गोली लगने के कारण घायल हो गया था तथा कई अन्य लोगों की तरह एक राहत शिविर में रह रहा था. शिविर पर राज्य के बहुसंख्यक समुदाय के हथियारबंद लोगों के एक समूह ने हमला किया था. अधिकारियों ने कहा कि घटना के बाद, सेना के एक वरिष्ठ अधिकारी ने तुरंत इंफाल के पुलिस अधीक्षक से संपर्क किया और रास्ते में सुरक्षा सुनिश्चित करने को कहा ताकि लड़के को अस्पताल ले जाया जा सके. उन्होंने कहा कि यह निर्णय लिया गया कि केवल उसकी मां और चाची ही उसके साथ यात्रा करेंगी क्योंकि वे बहुसंख्यक समुदाय से थीं. अधिकारियों ने कहा कि सेना ने उन्हें इंफाल की सीमा पर पुलिस एस्कॉर्ट और एम्बुलेंस को सौंप दिया, लेकिन काफिले पर लगभग 2,000 लोगों की भीड़ ने हमला कर दिया.
Also Read: Explainer: मैतेई और कुकी समुदाय क्यों बने हैं जान के दुश्मन? जानें क्या है विवाद का असली कारण
सीबीआई को सौंपे गए 20 मामले, एक मैतेई महिला के साथ दुष्कर्म का भी केस
सीबीआई को सौंपे गए 20 मामलों में से एक मैतेई महिला का भी मामला है, जिसने दावा किया था कि तीन मई को अज्ञात आदिवासी कुकी नेताओं ने उससे बलात्कार किया था. अधिकारियों ने कहा कि यह एक जटिल मामला है क्योंकि जिस गांव में उसने बलात्कार किए जाने का दावा किया, वहां के अधिकारियों ने आरोपों से इनकार किया है और एक बयान जारी किया है. महिला ने दावा किया था कि तीन मई को चुराचांदपुर जिले के खुमुजाम्बा के पास उसका यौन उत्पीड़न किया गया था और बिष्णुपुर थाने में एक प्राथमिकी दर्ज की गई थी. हालांकि, गांव के अधिकारियों ने एक बयान जारी कर उसके दावे को खारिज कर दिया और कहा कि वह एक समय अपने परिवार के साथ चुराचांदपुर जिले के नगाथल गांव में रहती थी, लेकिन पांच साल पहले उसने अपने पति के साथ यह क्षेत्र छोड़ दिया था क्योंकि उस पर भारी कर्ज हो गया था. बयान में कहा गया है कि तब से परिवार गांव नहीं लौटा.