नई दिल्ली : मणिपुर ट्राइबल फोरम ने सुप्रीम कोर्ट से भारतीय सेना की सुरक्षा मुहैया कराने की गुहार लगाई है. फोरम ने गुरुवार को मणिपुर में हाल ही में भड़की हिंसा के मामले में सर्वोच्च अदालत से कहा है कि केंद्र और राज्य सरकारों की ओर से झूठे आश्वासन दिए गए हैं. फोरम की ओर से दी गई अर्जी में कहा गया है कि मणिपुर की जनजातियों को राज्य सरकार और उसकी पुलिस पर भरोसा नहीं है. फोरम ने हिंसा प्रभावित इलाके चुराचनपुर, चंदेल, कांगपोकपी, इंफाल पूर्व और इंफाल पश्चिम जिलों में कानून-व्यवस्था में सुधार और स्थिति पर नियंत्रण करने के लिए भारतीय सेना के जवानों की तैनाती की मांग की है.
केंद्र की ओर से गठित आयोग को भंग करने की मांग
समाचार एजेंसी एएनआई की रिपोर्ट के अनुसार, मणिपुर ट्राइबल फोरम ने गुवाहाटी हाईकोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस अजय लांबा के नेतूत्व में केंद्र सरकार की ओर से गठित जांच आयोग पर भरोसा नहीं जताया है. फोरम ने सर्वोच्च अदालत से केंद्र सरकार की ओर से गठित आयोग को भंग करने की भी मांग की है. इसके बदले में फोरम ने दिल्ली हाईकोर्ट के पूर्व न्यायाधीशी और विधि आयोग वाले एकल सदस्यीय आयोग के गठन की मांग की है.
असम के पूर्व पुलिस प्रमुख की अध्यक्षता में गठित हो एसआईटी
मणिपुर ट्राइबल फोरम के अध्यक्ष एपी शाह ने असम के पूर्व पुलिस प्रमुख हरेकृष्ण डेका की अध्यता में एक एसआईटी (विशेष जांच दल) का गठन करने और तीन महीने के अंदर हिंसा में मारे गए लोगों के परिजनों को दो-दो करोड़ रुपये के मुआवजे की मांग की है. इसके साथ ही, फोरम की ओर से यह मांग भी की गई है कि हिंसा में मारे गए लोगों के परिजनों में किसी एक को सरकारी नौकरी प्रदान की जाए.
पूर्वोत्तर में कुकी जनजाति का सफाया करना चाहती है सरकार
इसके साथ ही, मणिपुर ट्राइबल फोरम ने सुप्रीम कोर्ट में आरोप लगाया है कि केंद्र सरकार और मणिपुर के मुख्यमंत्री एन बिरेन सिंह के संयुक्त रूप से एक सांप्रदायिक एजेंडा को आगे बढ़ा रहे हैं. उनके इस एजेंडे का लक्ष्य पूर्वोत्तर में कुकी जनजाति के लोगों का जातीय सफाया करना है. मणिपुर में हुई जातीय हिंसा के मद्देनजर गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) ने सुप्रीम कोर्ट से अनुरोध किया है कि वह केंद्र के खोखले आश्वासन पर भरोसा नहीं करे.
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प्राधिकारों के आश्वासन भरोसेमंद नहीं
सुप्रीम कोर्ट दायर अर्जी में मणिपुर ट्राइबल फोरम ने कहा कि प्राधिकारों के आश्वासन न तो अब कहीं से भी भरोसेमंद नहीं हैं और न ही ये गंभीरता के साथ किए गए हैं. यहां तक कि उन्हें लागू किये जाने का इरादा भी नहीं है. फोरम ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को भारत सरकार की ओर से किए गए वादों पर भरोसा नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसने और राज्य के मुख्यमंत्री ने कुकी लोगों का जातीय सफाया करने के लिए संयुक्त रूप से एक साम्प्रदायिक एजेंडा शुरू किया है.