Manmohan Singh: भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह भले अब हमारे बीच नहीं रहे लेकिन उनके द्वारा किए गए कार्य देश में हरदम चर्चा का विषय बना रहेगा. बात चाहे 1991 के बाद देश को आर्थिक संकट से निकालने का हो या फिर 2004 में खुद प्रधानमंत्री बनने के बाद गठबंधन की परवाह किए बगैर देशहित में अमेरिका से परमाणु समझौता करने का हो. मनमोहन सिंह ने इस दौरान मजबूती के साथ अमेरिका के सामने अपना पक्ष रखा और पूरी दुनिया उनकी ताकत को देखकर चौंक गई.
गिर सकती थी यूपीए सरकार
मनमोहन सिंह के अमेरिका से परमाणु समझौते के बाद दिल्ली में यूपीए सरकार पर खतरा मंडराने लगा था. लेफ्ट पार्टियों ने इस डील का भरपूर विरोध किया और सरकार से समर्थन वापस भी ले लिया था. लेफ्ट पार्टी के साथ पहले सपा ने समर्थन किया लेकिन बाद में वो भी मनमोहन सरकार के समर्थन में आ गई. कहा जाता है कि उस समय सहयोगी दलों के साथ साथ सोनिया गांधी भी इस डील के खिलाफ थी. उन्हें सरकार जाने का डर सता रहा था.
क्या था अमेरिका के साथ परमाणु डील
भारत के परमाणु परीक्षण के बाद से ही अमेरिका और भारत के बीच रिश्तों में करवाहट आ गई थी. इसके बाद साल 2004 में मनमोहन सिंह सरकार आने के बाद अमेरिका के विदेश मंत्री राइस ने भारत का दौरा किया और पीएम मनमोहन सिंह और तत्कालीन विदेश मंत्री नटवर सिंह से मुलाकात कि और कहा अमेरिकी राष्ट्रपति जॉर्ज बुश भारत के साथ परमाणु डील के लिए उत्सुक हैं. फिर साल 2005 में ही मनमोहन सिंह एक बड़े प्रतिनिधि मंडल के साथ परमाणु डील के लिए अमेरिका गए. नटवर सिंह इस डील को ड्राफ्ट कराने की जिम्मेदारी दी गई. फिर 28 जुलाई की रात को नटवर सिंह से मिलने अमेरिका की विदेश मंत्री पहुंचती हैं और फिर मनमोहन सिंह और फिर अमेरिकी राष्ट्रपति बुश की मुलाकात के बाद यह डील फाइनल हुई.
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