नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट ने मंगलवार को दिल्ली नगर निगम (एमसीडी) की स्थायी समिति के सदस्यों के चुनाव के लिए दोबारा वोटिंग कराने के महापौर शैली ओबरॉय के फैसले को रद्द कर दिया है. अदालत ने महापौर को 24 फरवरी को हुए मतदान के नतीजे तत्काल घोषित करने और विवादित मत को भाजपा पार्षद पंकज लूथरा के पक्ष में मानने का निर्देश दिया. जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने कहा कि महापौर (जो निर्वाचन अधिकारी भी हैं) ने अपनी शक्तियों से इतर कार्रवाई की और उनका निर्णय कानूनी रूप से अस्वीकार्य था, क्योंकि यह मुद्दे से संबंधित किसी भी प्रासंगिक सामग्री पर आधारित नहीं था.
महापौर की कार्रवाई कानूनी तौर पर गलत
जस्टिस पुरुषेंद्र कुमार कौरव ने ने अपने 76 पन्नों के आदेश में कहा कि छानबीन के चरण तक पहुंचने और कोटा सफलतापूर्वक सुनिश्चित होने के बाद मतपत्र को खारिज करने और इसे अमान्य घोषित करने की महापौर अथवा आरओ की कार्रवाई कानून की दृष्टि से गलत है. उन्होंने आदेश दिया कि प्रतिवादी संख्या 4-मेयर अथवा आरओ को निर्देश दिया जाता है कि वह विवादित वोट को पंकज लूथरा के पक्ष में वैध रूप से डाला गया मानते हुए तुरंत फॉर्म नंबर 4 में परिणाम घोषित करें.
छह सीटों पर दोबारा वोटिंग कराना चाहती थीं महापौर
अदालत का यह आदेश भाजपा के पार्षदों कमलजीत सहरावत और शिखा रॉय की याचिका पर आया है, जिसमें एमसीडी स्थायी समिति की छह सीटों पर दोबारा मतदान कराने के महापौर के फैसले को चुनौती दी गई थी. अदालत ने आदेश में कहा कि रिट याचिका स्वीकार की जाती है. आक्षेपित आदेश को दरकिनार किया जाता है. निर्वाचन अधिकारी को तत्काल परिणाम घोषित करने का निर्देश दिया जाता है.
जांच में नहीं मिला अवैध मतपत्र
याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया था कि महापौर आम आदमी पार्टी (आप) से संबंधित हैं और निर्वाचन अधिकारी थीं, उन्होंने गलत तरीके से एक मत को अमान्य करार दिया और राजनीतिक रूप से अप्रिय परिणाम मिलने पर चुनाव प्रक्रिया को बाधित किया. अदालत ने कहा कि छह निर्वाचित उम्मीदवारों में भाजपा और आप के तीन-तीन सदस्य थे, जिनकी जांच के बाद कोई अवैध मतपत्र नहीं मिला, लेकिन बाद में महापौर ने एक वोट को अमान्य घोषित कर दिया और परिणाम घोषित न करके दोबारा वोटिंग की घोषणा की.
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दोबारा नहीं हो सकती मतपत्रों की जांच
अदालत ने जोर देकर कहा कि एक बार जांच का चरण समाप्त हो जाने के बाद मतपत्रों की फिर से जांच करना कानून के तहत विधिक रूप से स्वीकार्य नहीं हो सकता है. अगर इस तरह की कवायद की अनुमति दी जाती है, तो चुनाव प्रक्रिया कभी भी नहीं रुक सकती है. अदालत ने आदेश दिया कि रिट याचिका स्वीकार की जाती है. 24 फरवरी 2023 के आक्षेपित आदेश को तदनुसार खारिज किया जाता है.