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Modi Surname Case: राहुल गांधी की याचिका 4 अगस्त को अगली सुनवाई, सुप्रीम कोर्ट ने पूर्णेश मोदी को दिया नोटिस

Modi Surname Case: मोदी सरनेम मामले में आज राहुल गांधी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने शिकायतर्ता पूर्णेश मोदी को नोटिस जारी कर उन्हें 10 दिनों के अंदर जवाब देने को कहा है. इस मामले पर अगली सुनवाई 4 अगस्त 2023 को होगी.

Modi Surname Case: मोदी सरनेम मामले में आज राहुल गांधी की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने शिकायतर्ता पूर्णेश मोदी को नोटिस जारी कर उन्हें 10 दिनों के अंदर जवाब देने को कहा है. इस मामले पर अगली सुनवाई 4 अगस्त 2023 को होगी. बता दें, राहुल गांधी की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी ने 18 जुलाई को मामले का उल्लेख किया था और याचिका पर तत्काल सुनवाई का अनुरोध किया था, जिसके बाद प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पीठ याचिका पर सुनवाई के लिए सहमत हो गई थी. बता दें, राहुल गांधी ने अपनी याचिका में कहा है कि यदि सात जुलाई के आदेश पर रोक नहीं लगाई गई तो इससे स्वतंत्र भाषण, स्वतंत्र अभिव्यक्ति, स्वतंत्र विचार और स्वतंत्र वक्तव्य का दम घुट जाएगा.

बता दें, सुप्रीम कोर्ट मोदी सरनेम मामले में सात जुलाई को गुजरात हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ सुनवाई करेगी. गुजरात कोर्ट ने राहुल गांधी मानहानि मामले (Rahul Gandhi Defamation Case) में उन्हें दो साल की सजा सुनाई गई थी. वहीं, गुजरात हाईकोर्ट ने मानहानि मामले में राहुल गांधी की दोषसिद्धि पर रोक लगाए जाने का अनुरोध करने वाली याचिका को भी खारिज कर दिया था.

राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट से की है यह अपील
कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने सुप्रीम कोर्ट में दी अपनी याचिका में कहा कि यदि उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक नहीं लगाई गई तो यह लोकतांत्रिक संस्थानों को बार-बार कमजोर करेगा. उन्होंने कहा कि  इसके परिणाम स्वरूप लोकतंत्र का दम घुट जाएगा, जो भारत के राजनीतिक माहौल और भविष्य के लिए गंभीर रूप से हानिकारक होगा. राहुल गांधी ने 13 अप्रैल, 2019 को कर्नाटक के कोलार में एक चुनावी रैली के दौरान टिप्पणी की थी कि सभी चोरों का समान उपनाम मोदी ही क्यों होता है.

इस टिप्पणी को लेकर गुजरात सरकार के पूर्व मंत्री पूर्णेश मोदी ने गांधी के खिलाफ 2019 में आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज कराया था. इस मामले में सूरत की मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अदालत ने 23 मार्च को राहुल गांधी को भारतीय दंड संहिता की धाराओं 499 और 500 (आपराधिक मानहानि) के तहत दोषी ठहराते हुए दो साल जेल की सजा सुनाई थी. मामले में फैसले के बाद गांधी को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के तहत संसद की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया था. राहुल गांधी 2019 में केरल के वायनाड से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए थे.

हो सकती थी राहुल गांधी की संसद सदस्यता बहाल

सूरत की मेट्रोपोलिटन मजिस्ट्रेट अदालत के इस फैसले के बाद कांग्रेस नेता को जनप्रतिनिधित्व अधिनियम के प्रावधानों के तहत संसद की सदस्यता से 24 मार्च, 2023 को अयोग्य ठहराया गया था. यदि दोषसिद्धि पर रोक लग जाती, तो इससे राहुल गांधी की संसद सदस्यता बहाल होने का रास्ता साफ हो जाएगा. हाई कोर्ट ने इस मामले में दोषसिद्धि पर रोक संबंधी राहुल गांधी की याचिका खारिज करते हुए सात जुलाई को कहा था कि ‘राजनीति में शुचिता’ अब समय की मांग है. न्यायमूर्ति हेमंत ने याचिका खारिज करते हुए टिप्पणी की थी कि जनप्रतिनिधियों को स्वच्छ छवि का व्यक्ति होना चाहिए. इसके अलावा अगर राहुल गांधी अपने बयान पर खेद जता देते तो भी उनकी सदस्यता बरकरार रहती.

पूर्णेश मोदी ने भी सुप्रीम कोर्ट में दायर की कैविएट
राहुल गांधी मानहानि मामले में कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ओर से सुप्रीम कोर्ट में की गई अपील के खिलाफ शिकायतकर्ता और बीजेपी विधायक पूर्णेश मोदी ने भी एक कैविएट अपील दायर की है. अपने कैविएट में पूर्णेश मोदी ने कहा है कि इस मामले में उनकी भी दलील सुनी जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि मानहानि मामले में वो भी सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रखना चाहते हैं.

क्या है पूरा मामला
बता दें, राहुल गांधी ने 13 अप्रैल, 2019 को कर्नाटक के कोलार में एक चुनावी रैली के दौरान कहा था कि सभी चोरों का समान उपनाम मोदी ही क्यों होता है? इस टिप्पणी को लेकर गुजरात सरकार के पूर्व मंत्री सह बीजेपी नेता पूर्णेश मोदी ने राहुल गांधी के खिलाफ 2019 में आपराधिक मानहानि का मामला दर्ज कराया था. गांधी ने अपनी याचिका में कहा कि यदि उच्च न्यायालय के फैसले पर रोक नहीं लगाई गई तो यह लोकतांत्रिक संस्थानों को व्यवस्थित तरीके से, बार-बार कमजोर करेगा और इसके परिणामस्वरूप लोकतंत्र का दम घुट जाएगा, जो भारत के राजनीतिक माहौल और भविष्य के लिए गंभीर रूप से हानिकारक होगा. राहुल गांधी ने यह भी कहा कि आपराधिक मानहानि के इस मामले में अप्रत्याशित रूप से अधिकतम दो साल की सजा दी गई, जो अपने आप में दुर्लभतम है.

भाषा इनपुट से साभार

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