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Tribal Community: बदल रही है जनजातीय समुदाय की तस्वीर, बढ़ रही है समृद्धि, सम्मान और समानता

Tribal Community: भारत के इतिहास में पहली बार देश के जनजातीय समुदाय परिवर्तनकारी पहलों की एक ऐसी लहर का अनुभव कर रहे हैं, जो उन्हें जीवन के सभी क्षेत्रों में पहचान दिला रही है. साथ ही उनका भी उत्थान कर रही है.

Tribal Community: भारत के इतिहास में पहली बार देश के जनजातीय समुदाय परिवर्तनकारी पहलों की एक ऐसी लहर का अनुभव कर रहे हैं, जो उन्हें जीवन के सभी क्षेत्रों में पहचान दिला रही है. साथ ही उनका भी उत्थान कर रही है. सालों की उपेक्षा के बाद, जनजातीय लोगों के कल्याण पर बिल्कुल नए सिरे से दिया जा रहा ध्यान न केवल अंतरालों को पाट रहा है, बल्कि उनकी विरासत का उत्सव मना रहा है. उनके युवाओं को सशक्त बना रहा है. उनके लिए स्वास्थ्य सेवाओं को और अधिक सुलभ बना रहा है. उन्हें आर्थिक अवसर भी प्रदान कर रहा है. इन महत्वपूर्ण कदमों के माध्यम से भारत अपने जनजातीय नागरिकों के साथ अपने संबंधों को नया आकार दे रहा है. लंबे समय से उपेक्षित समुदायों में समृद्धि, सम्मान और समानता ला रहा है. यहां उन ऐतिहासिक पहली बार होने वाले बदलावों की एक बानगी प्रस्तुत है, जो एक अपेक्षाकृत अधिक उज्जवल व अधिक समावेशी भविष्य का निर्माण कर रहे हैं.

जनजातीय कल्याण निधि में 5.7 गुना वृद्धि

पहली बार, भारत ने जनजातीय कल्याण हेतु अपनी वित्तीय प्रतिबद्धता को रिकॉर्ड स्तर तक बढ़ाया है. अनुसूचित जनजाति से संबंधित विकास कार्य योजना के लिए निर्धारित निधि में पांच गुना वृद्धि की गई है. वर्ष 2013-14 में 24,600 करोड़ रुपये से कम रहने वाली यह निधि 2024-25 में अविश्वसनीय रूप से बढ़कर 1.23 लाख करोड़ रुपये हो गई है. वित्त पोषण (फंडिंग) में यह बढ़ोतरी शिक्षा, स्वास्थ्य संबंधी देखभाल, आवास और अन्य क्षेत्रों में विभिन्न पहलों को प्रोत्साहित कर रही है, जो जनजातीय समुदायों को सशक्त बनाने की एक शक्तिशाली प्रतिबद्धता को दर्शाती है.

विद्यालय, छात्रवृत्तियां और अपेक्षाकृत अधिक अवसर!

जनजातीय विद्यार्थियों को आखिरकार वे सभी शैक्षिक अवसर मिल रहे हैं जिनके वे हकदार हैं. विद्यालयों में नामांकन 2013-14 में 34,000 से बढ़कर 2023-24 में 1.3 लाख से अधिक हो गया है. एकलव्य मॉडल आवासीय विद्यालयों (ईएमआरएस) का विकास इस बदलाव की आधारशिला रहा है. केवल एक दशक में ही इन विद्यालयों की संख्या लगभग चौगुनी होकर 123 से 476 हो गई है. ये विद्यालय देश भर के जनजातीय युवाओं को न केवल शिक्षित कर रहे हैं, बल्कि उनकी संभावनाओं में भी बदलाव ला रहे हैं.

पहली बार सिकल सेल एनीमिया के उन्मूलन के लिए एक देशव्यापी मिशन

पहली बार सिकल सेल एनीमिया उन्मूलन मिशन के माध्यम से, भारत एक ऐसी स्वास्थ्य समस्या से निपट रहा है जो जनजातीय समुदायों को प्रतिकूल रूप से प्रभावित करता है. पहले ही, 4.6 करोड़ से अधिक लोगों की जांच की जा चुकी है और तीन वर्ष के भीतर 7 करोड़ लोगों तक पहुंचाने का लक्ष्य है. सिकल सेल रोग को खत्म करने का यह मिशन केवल स्वास्थ्य से ही संबंधित नहीं है. इसका संबंध देश की जनजातीय आबादी के लिए एक स्वस्थ और अपेक्षाकृत अधिक सुदृढ़ भविष्य के निर्माण से है.

जनजातीय विद्यार्थियों के लिए बेजोड़ वित्तीय सहायता!

पहली बार, जनजातीय विद्यार्थियों को व्यापक छात्रवृत्ति सहायता मिल रही है. इन छात्रवृत्तियों से अब प्रत्येक वर्ष 30 लाख से अधिक विद्यार्थियों को लाभ हो रहा है. पिछले 10 वर्षों में छात्रवृत्ति के रूप में कुल 17,000 करोड़ रुपये का वितरण हुआ है. ये छात्रवृत्तियां वित्तीय सहायता से कहीं बढ़कर हैं. वास्तव में वे जनजातीय युवाओं के सशक्तिकरण का मार्ग हैं.

पहली बार जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों और विरासत का व्यापक सम्मान

जनजातीय स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान को अब राष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिल रही है. उनके सम्मान में 10 म्यूजियम बनाए गए हैं. भगवान बिरसा मुंडा की विरासत और देश के जनजातीय समुदायों की दृढ़ता के प्रति श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए, उनकी जयंती को ‘जनजातीय गौरव दिवस’ के रूप में भी नामित किया गया है. पहली बार, जनजातीय गौरव को बढ़ावा देते और सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करते हुए जनजातीय नायकों की कहानियों का उत्सव मनाया जा रहा है.

वन धन केंद्र के माध्यम से आत्मनिर्भरता

जनजातीय उद्यमिता के विकास को प्रोत्साहित करने के एक ऐतिहासिक प्रयास में, 3900 वन धन विकास केंद्र स्थापित किए गए हैं. ये केन्द्र लगभग 12 लाख जनजातीय उद्यमियों को संसाधन प्रदान कर रहे हैं. ये केन्द्र जनजातीय लोगों को अपने पारंपरिक कौशल को लाभदायक उद्यमों में बदलने, आर्थिक आत्मनिर्भरता और नवाचार को बढ़ावा देने में सक्षम बना रहे हैं.

प्रतिनिधित्व के मामले में एक ऐतिहासिक उपलब्धि

भारत की प्रथम जनजातीय राष्ट्रपति के रूप में श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का निर्वाचन जनजातीय समुदायों के उपयुक्त प्रतिनिधित्व की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो सरकार के उच्चतम स्तर पर समावेशन और बाधाओं को तोड़ने का एक शक्तिशाली संदेश है. राष्ट्रपति के रूप में श्रीमती द्रौपदी मुर्मू का नेतृत्व देश के जनजातीय समुदायों के लाखों लोगों के लिए आशा और अवसर का प्रतीक है.

पहली बार दूर दराज के जनजातीय समुदायों को बुनियादी सेवाएं

पीएम-जन मन के तहत आवास, स्वच्छ पानी, स्वच्छता और स्वास्थ्य सेवा जैसी आवश्यक सेवाएं पहली बार सबसे कमजोर जनजातीय समूहों तक पहुंच रही हैं. 75 विशेष रूप से कमजोर जनजातीय समूहों (पीवीटीजी) और 45 लाख से अधिक परिवारों को समर्पित 24,000 करोड़ रुपये से अधिक के बजट के साथ, यह पहल दूरदराज के जनजातीय समुदायों के लिए एक जीवन रेखा जैसी है.

जम्मू एवं कश्मीर के जनजातीय समुदायों के लिए खुले दरवाजे: नौकरियों और शिक्षा तक नई पहुंच

अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के साथ, जम्मू एवं कश्मीर में अनुसूचित जनजाति समुदायों के लिए अब शिक्षा और रोजगार के अवसरों की सुलभता बढ़ गई है, जिससे उनके उज्जवल भविष्य के द्वार खुल गए हैं और इस क्षेत्र में जनजातीय समूहों के समावेशन को बढ़ावा मिला है.

आय का एक नया स्रोत: बांस, जनजातीय समृद्धि का ‘हरा सोना’

पहली बार, बांस को एक पेड़ के रूप में वर्गीकृत किया गया है. इससे जनजातीय समुदायों को मुक्त रूप से इसकी खेती करने की अनुमति मिल गई है. इस बदलाव ने जनजातीय परिवारों के लिए आय के नए स्रोत और स्थायी अवसर पैदा किए हैं. इस प्रकार, जनजातीय समृद्धि के लिए बांस को ‘हरा सोन में बदल दिया गया है.

शत – प्रतिशत जनजातीय कवरेज को एक मिशन बनाया गया

धरती आबा जनजातीय ग्राम उत्कर्ष अभियान के माध्यम से, पहली बार जनजातीय समुदायों की सामाजिक-आर्थिक स्थिति में सुधार हो रहा है. इस अभियान में 63,000 गांव शामिल हैं और 5 करोड़ जनजातीय लोगों को लाभ मिल रहा है. इसका लक्ष्य लाभों की शत- प्रतिशत संतृप्ति है. कुल 80,000 करोड़ रुपये के अभूतपूर्व बजट वाली इस पहल का उद्देश्य भारत के जनजातीय क्षेत्रों में समग्र विकास और सशक्तिकरण प्रदान करना है.

न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) जनजातीय सशक्तिकरण के लिए एक उपकरण बना

पहली बार, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) का ढांचा जनजातीय समुदायों के लिए एक सशक्त उपकरण बन गया है. यह एमएसपी समर्थन प्राप्त करने वाले लघु वन उपज वस्तुओं की संख्या से स्पष्ट होता है जो 12 वस्तुओं से बढ़कर 87 हो गई है. इससे जनजातीय समुदायों को स्थिर आय के अवसर मिले हैं और स्थायी संसाधन उपयोग को प्रोत्साहन मिला है. पहली बार लंबे समय से प्रतीक्षित मान्यता, संसाधन और अवसर मुहैया कराने से हमारे जनजातीय भाइयों और बहनों का जीवन हमेशा के लिए बदल रहा है. दशकों तक उपेक्षित रखे जाने के बाद, अब वे भारत के विकास में सबसे आगे खड़े हैं और सशक्त व सुदृढ़ बनकर अपना भविष्य खुद संवारने को तैयार हैं.

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