भारत का राष्ट्रपति देश का सांविधानिक प्रधान है, यानी वह देश का सबसे सशक्त व्यक्ति है . वह कार्यपालिका का प्रधान होता है और उसके आदेश पर कार्यपालिका कार्य करती है. कार्यपालिका देश की सरकार होती जो चुनकर आती है.
भारत में संसदीय प्रणाली की सरकार है. यहां की कार्यपालिका अर्थात सरकार संसद के प्रति उत्तरदायी है, जहां जनता के प्रतिनिधित्व चुनकार आते हैं. सांविधानिक तौर पर तो राष्ट्रपति सरकार का प्रमुख होता है, लेकिन सच्चाई यह है कि राष्ट्रपति शासन संबंधी सभी कार्य प्रधानमंत्री की सलाह पर करता है.
संविधान की धारा 74 (1) में यह व्यवस्था की है कि राष्ट्रपति की सहायता के एक मंत्रिमंडल होगा जिसका प्रधान प्रधानमंत्री होगा और उनकी सलाह पर ही राष्ट्रपति तमाम कार्य करेंगे. इसका आशय यह है कि संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति भले ही देश का प्रधान हो, लेकिन उसके अधिकार प्रधानमंत्री के पास हैं और वही उनका उपयोग करता है.
भारत का राष्ट्रपति एक गरिमा और सम्मान से परिपूर्ण पद है, जिसका सम्मान पूरे देश में है. भले ही कार्यपालिका के तमाम अधिकार प्रधानमंत्री में निहित हैं, लेकिन कई बार प्रधानमंत्री की नियुक्ति के वक्त वह भी तब जबकि किसी सरकार को बहुमत प्राप्त ना हो, राष्ट्रपति की भूमिका महत्वपूर्ण हो जाती है. अभी तक देश में यह परंपरा रही है कि अगर किसी भी पार्टी को स्पष्ट बहुमत ना हो तो राष्ट्रपति ने सबसे बड़ी पार्टी को सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया, लेकिन इस निर्णय में राष्ट्रपति अपने विवेक से निर्णय ले सकते हैं. वे यह तय कर सकते हैं कि कौन सी पार्टी की सरकार ज्यादा स्थिर होगी और किसे मौका दिया जाना चाहिए. वीपी सिंह जब 1989 में प्रधानमंत्री बने थे, उस वक्त कांग्रेस सबसे बड़ी पार्टी थी, राष्ट्रपति आर वेंकटरमण ने कांग्रेस को पहले सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया, जब कांग्रेस सरकार नहीं बना पाई तो वीपी सिंह को न्यौता दिया गया. ऐसे और भी उदाहरण देखने को मिलते हैं.
राष्ट्रपति के पास देश में आपातकाल घोषित करने का अधिकार भी है, वे तीन परिस्थितियों में आपातकाल की घोषणा कर सकते हैं. राष्ट्रीय आपातकाल, जिसके तहत 1975 में इमरजेंसी की घोषणा की गयी थी. वहीं राज्यों में जब सरकार फेल हो जाती है तो वहां राष्ट्रपति शासन लगाया जाता है और तीसरा है वित्तीय आपातकाल. देश में इस आपातकाल को अबतक नहीं लगाया गया है.
देश के राष्ट्रपति का मूल कर्तव्य कार्यकारी शक्तियों का निर्वहन करना है. वे प्रधानमंत्री की नियुक्ति के साथ ही वे सेना के प्रमुखों की नियुक्ति भी करते हैं. राष्ट्रपति के पास संविधान के संरक्षण का दायित्व भी है. इन कार्यों को वे कई बार अपने विवेक से तय करते हैं. कोई भी अधिनियम उनकी मंजूरी के बिना पारित नहीं हो सकता. वो मनी बिल को छोड़कर किसी भी बिल को पुनर्विचार के लिए लौटा सकते हैं.
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