मशहूर शायर राहत इंदौरी हमारे बीच नहीं रहे. मंगलवार को दिल का दौरा पड़ने से उनका इंतकाल हो गया. वे कोरोना वायरस से भी संक्रमित थे. 10 अगस्त को राहत इंदौरी को मध्यप्रदेश के इंदौर स्थित अरविंदो अस्पताल में दाखिल कराया गया. उनके चाहने वालों के हाथ दुआओं में उठे और मकबूल शायर राहत इंदौरी ने चाहने वालों की आंखों में आंसू छोड़ अलविदा कह दिया. राहत इंदौरी ने शायरी को एक नई ऊंचाई दी. स्टेज पर उनके हावभाव ऐसे रहे कि सामने वाला भी झूमने लगता. उन्होंने ना सिर्फ शेर कहे, उसे हमेशा जीते भी रहे.
ये हादसा तो किसी दिन गुजरने वाला था,
मैं बच भी जाता तो एक रोज मरने वाला था.
राहत इंदौरी अपने चाहने वालों के बीच राहत साहब के नाम से प्रसिद्ध थे. उनका जन्म 1 जनवरी 1950 को इंदौर में रिफतुल्लाह कुरैशी और मकबूल बी के घर चौथी संतान के रूप में हुआ. राहत साहब ने आरंभिक शिक्षा देवास और इंदौर के नूतन स्कूल से हासिल की. इंदौर विश्वविद्यालय से उर्दू में एमए और ‘उर्दू मुशायरा’ शीर्षक से पीएचडी की. 16 सालों तक इंदौर विश्वविद्यालय में उर्दू साहित्य के बतौर अध्यापक काम करते रहे. उन्होंने त्रैमासिक पत्रिका ‘शाखें’ का दस सालों तक संपादन भी किया. शेर लिखते रहे और मुशायरों में शिरकत करते रहे.
आंख में पानी रखो होंटों पे चिंगारी रखो,
जिंदा रहना है तो तरकीबें बहुत सारी रखो.
राहत इंदौरी पांच दशक तक देश-विदेश में मुशायरों की शान बने रहे. उनके हर शेर जिंदगी की हकीकत से निकले थे, जिसे पढ़कर आपको उनकी शख्सियत का अंदाजा होता चला जाएगा. लॉकडाउन से पहले तक राहत इंदौरी मुशायरों में शिरकत करते रहे. उनके शेर आज भी युवाओं के दिलों पर दस्तक देकर रास्ता दिखाती मालूम पड़ती है. राहत इंदौरी ने शायरी और गजलों से सरकारों को चेताया. बॉलीवुड की फिल्मों में गाने भी लिखते रहे. उनके हर शेर जिंदगी की सच्चाई बनकर हमारे सामने हमेशा आते रहे. उनके गानों में समाज का चेहरा भी दिखा.
मुझमे कितने राज हैं, बतलाऊं क्या
बंद एक मुद्दत से हूं, खुल जाऊं क्या?
आजिजी, मिन्नत, ख़ुशामद, इल्तिजा,
और मैं क्या क्या करूं, मर जाऊं क्या?
राहत इंदौरी उर्दू तहज़ीब के ऐसे नुमाइंदे रहे जिनकी छांव में कई युवा शायरों ने पनाह ली. एक मुकाम हासिल किया और बदले में राहत साहब उनकी तारीफें करते रहे. मुशायरों की जान और शान राहत साहब होते थे. वहीं, युवा शायरों को भी आगे बढ़ने की सीख देते नहीं थकते थे. शायरी और गजल को इशारे का आर्ट माना जाता है. इस फन में राहत साहब सबसे अव्वल रहे. कई दफा राहत इंदौरी को कहते सुना जाता था कि मेरा शहर अगर जल रहा है और मैं कोई रोमांटिक गजल गा रहा हूं तो अपने फन, अपने देश, अपने वक्त से दगा कर रहा हूं।
जुबां तो खोल, नजर तो मिला, जवाब तो दे,
मैं कितनी बार लुटा हूं, हिसाब तो दे.
अंदर का जहर चूम लिया धुल के आ गए,
कितने शरीफ लोग थे सब खुल के आ गए.
कॉलेज के सब बच्चे चुप हैं कागज की इक नाव लिए,
चारों तरफ दरिया की सूरत फैली हुई बेकारी है.
राहत इंदौरी की सबसे खास बात रही देश के मिजाज को शायरी के जरिए कहना. उनका देवास से शायरी का सफर शुरू हुआ. इंदौर, लखनऊ, दिल्ली, लाहौर हर जगह उनके शेर ने तालियां और वाहवाही बटोरी. उनकी शायरी में हर जगह के लोगों की बातें रही. लोगों की तकलीफें, युवाओं का संघर्ष, सबकुछ उनके शब्दों में उतरता था. 1986 में राहत साहब ने कराची में एक शेर पढ़ा और पांच मिनट तक तालियां गूंजती रही. अपने गुजरने के पहले ही उन्होंने एक शेर पढ़ा था जो आज उनके गुजरने के बाद उनकी शख्सियत को बताने के लिए सबसे काबिल है.
अब ना मैं हूं, ना बाकी हैं जमाने मेरे,
फिर भी मशहूर हैं शहरों में फसाने मेरे.
Posted By: Abhishek.