केके मुहम्मद, पुरातत्वविद : अयोध्या नगर की पौराणिकता की बात करें, तो पुरातत्व सर्वेक्षण में प्राप्त साक्ष्यों के अनुसार यह नगर 1400 ईसा पूर्व के आसपास बसा होगा. हनुमानगढ़ी से 400 बीसी का टेराकोटा मिला है. उस जमाने में अयोध्या बड़ा नगर नहीं था. इतना जरूर कहा जा सकता है कि यह शुरुआती दौर का शहर है. इसका उल्लेख अयोध्या-माहात्म्य में मिलता है, जिसमें कहा गया है –
दर्शनम जन्म भूभेश्य: स्मरण राम-राम तम्य।
मंजनम सरयू तीरे, कृत पाप नाशनमं।।
अयोध्या जिसे साकेत और रामनगरी भी कहा जाता है, यह ऐतिहासिक और धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण नगर है. सरयू नदी के तट पर बसी अयोध्या नगरी का वाल्मीकि रामायण में अयोध्या नाम वर्णित है. अथर्ववेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया गया है – अष्टचक्र नवद्वारा देवानां पूर योध्या।
पुराणों में जब प्राचीन समपुरिया का उल्लेख किया जाता है, तब भी उस नामोल्लेख में अयोध्या शब्द का ही उपयोग मिलता है. अयोध्या का संबंध केवल भगवान राम से ही नहीं है, बल्कि यह अन्य धर्मों के लिए भी बेहद पवित्र स्थान है. अयोध्या के आसपास जैन धर्म के पांच तीर्थंकर ऋषभनाथ, अजितनाथ, अभिनंदननाथ, सुमतिनाथ और अनंतनाथ की जन्मभूमि है. अयोध्या हर भारतीयों के लिए आस्था का स्थान है. रामायण केवल भारत में हीं नहीं, बल्कि चीन, जापान, थाइलैंड, बर्मा, कंबोडिया, वियतनाम, इंडोनिशिया, मलयेशिया आदि राष्ट्रों में प्रसिद्ध है. इसलिए पुरुषोत्तम राम पूरे एशिया को एक सूत्र में बांधने वाले हैं.
चीनी यात्री ह्नेनसांग ने भारत यात्रा के दौरान अयोध्या का भी भ्रमण किया और अपने यात्रा-वृत्तांत में अयोध्या नगर के बारे में उल्लेख किया है. उसके बाद आइन-ए-अकबरी के लेखक अबुल फजल ने लिखा है कि चैत्र मास में लोग यहां बड़ी संख्या में जुटते थे. यह वर्णन विस्तार से किया गया है. उसके बाद जहांगीर के शासनकाल में भारत यात्रा पर आये विलियम फिंच ने भी भगवान राम के बारे में और उनके जन्मस्थान के बारे में उल्लेख किया है. डच ज्योग्राफर जॉन डी जहांगीर के शासनकाल में आये थे. उन्होंने यहां के राजमहल को रामचंद्र पैलेस कहा है. इसके अलावा थॉमस रॉबर्ट्स ने भी इस नगर का उल्लेख अपने यात्रा-वृत्तांत में किया है. आस्ट्रलियाई यात्री जोसफ टेलर ने भी इस प्राचीन नगरी का जिक्र किया है. इसके बाद अलेक्जेंडर कनिंघम ने भगवान राम और अयोध्या नगर के बारे में विस्तार से लिखा है.
मर्यादा पुरुषोतम सबके आदर्श रहे, इसलिए अपने रिश्तेदार मरीच को जब रावण ने कहा था कि आप अपना वेष बदल कर वहां जाएं और सीता का अपहरण करने में मदद करें. इस पर मरीच कहते हैं कि यह गलती न करो. राम मर्यादा पुरुषोत्तम और धर्म की मूर्ति हैं. इसलिए न गलत काम आप करें और न मुझसे करायें. राम के आदर्श को आत्मसात करना बहुत ही कठिन है, फिर भी कोशिश करनी चाहिए. तभी मानवजाति का कल्याण संभव है.
‘‘है राम के वजूद पे हिन्दोस्तां को नाज
अहले नजर उसको समझते हैं इमामे हिंद’’
(लेखक पुरातत्व सर्वेक्षण के क्षेत्रीय निदेशक (उत्तर) रह चुके हैं और अयोध्या में खुदाई दल के प्रमुख सदस्य थे. यह लेख उनसे संवाददाता सुबोध नंदन की बातचीत पर आधारित है.)
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