नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को 2002 के गोधरा ट्रेन अग्निकांड में आजीवन कारावास की सजा पाए आठ लोगों को जमानत दे दी. ट्रेन के डिब्बे को आग लगाए जाने के बाद पूरा गुजरात सांप्रदायिक हिंसा की चपेट में आ गया था. भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) डीवाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति पीएस नरसिम्हा की पीठ ने आठ दोषियों को राहत देते हुए इस बात पर गौर किया कि वे कितना समय जेल में बिता चुके हैं और उनकी अपील के जल्द निस्तारण की संभावना नहीं है. पीठ ने कहा कि हम निर्देश देते हैं कि दोषियों को सत्र न्यायालय द्वारा लगाए गए नियमों और शर्तों के अधीन जमानत पर रिहा किया जाए.
चार दोषियों को जमानत देने से इनकार
सुप्रीम कोर्ट की ओर से गोधरा ट्रेन अग्निकांड के जिन दोषियों को जमानत दी गई है, उनमें अब्दुल सत्तार इब्राहिम गद्दी असला, यूनुस अब्दुल हक्क समोल, मोहम्मद हनीफ अब्दुल्ला मौलवी बादाम, अब्दुल रऊफ अब्दुल मजीद ईसा, इब्राहिम अब्दुलरजाक अब्दुल सत्तार समोल, अयूब अब्दुल गनी इस्माइल पटालिया, सोहेब यूसुफ अहमद कलंदर और सुलेमान अहमद हुसैन शामिल हैं. हालांकि, सर्वोच्च अदालत ने चार दोषी अनवर मोहम्मद मेहदा, शौकत अब्दुल्ला मौलवी इस्माइल बादाम, महबूब याकूब मिथा और सिद्दीक मोहम्मद मोरा को जमानत देने से इनकार कर दिया. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता द्वारा घटना में उनकी भूमिका को उजागर करते हुए उनकी जमानत याचिकाओं का विरोध किया गया था.
सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं लंबित
सुप्रीम कोर्ट की ओर जिन याचिकाकर्ताओं की जमानत याचिका खारिज हुई थी, उनकी तरफ से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता संजय हेगड़े ने पीठ से उनकी अर्जियों पर सुनवाई स्थगित करने का अनुरोध करते हुए कहा कि कल त्योहार है. गुजरात सरकार का प्रतिनिधित्व करने वाले मेहता ने पहले कहा था कि यह केवल पथराव का मामला नहीं है, क्योंकि दोषियों ने साबरमती एक्सप्रेस की एक बोगी में आग लगा दी थी, जिससे 59 यात्रियों की मौत हो गई थी. सजा के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं लंबित हैं.
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फरवरी 2002 में हुआ था गोधरा ट्रेन अग्निकांड
मीडिया की रिपोर्ट्स के अनुसार, गुजरात के गोधरा में 27 फरवरी 2002 को साबरमती एक्सप्रेस ट्रेन की एस-6 बोगी में आग लगा दी गई थी, जिससे 59 लोगों की मौत हो गई थी. इसके बाद गुजरात के कई हिस्सों में दंगे भड़क उठे थे. गुजरात हाईकोर्ट ने अक्टूबर, 2017 के अपने फैसले में गोधरा ट्रेन अग्निकांड मामले में 11 दोषियों को दी गई मौत की सजा को उम्रकैद में बदल दिया था. उसने 20 अन्य को दी गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा था.