नई दिल्ली : राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के अध्यक्ष शरद पवार ने शनिवार को सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को पार्टी का कार्यकारी अध्यक्ष घोषित किया है. हालांकि, उनकी इस घोषणा को पार्टी में पीढ़ीगत बदलाव के तौर पर देखा जा रहा है. लेकिन, राजनीतिक विश्लेषकों की ओर से सवाल खड़े किए जाने लगे हैं कि क्या सुप्रिया सुले को ‘फुल पावर’ देकर शरद पवार उन्हें राष्ट्रीय राजनीति में ‘डेब्यू’ कराना चाहते हैं? हालांकि, सुप्रिया सुले को कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने पर शरद पवार के भतीजे और एनसीपी के बागी नेता अजित पवार ने अपनी चचेरी बहन को ‘बधाई’ दी है और उनकी मौजूदगी में ही शरद पवार ने अपनी बेटी को ‘फुल पावर’ देते हुए कार्यकारी अध्यक्ष बनाए जाने की घोषणा की है. लेकिन, राजनीतिक हलकों में दबे सुर में इस बात पर चर्चा शुरू हो गई है कि शरद पवार ने राष्ट्रीय राजनीति में ‘डेब्यू’ कराने के लिए ही अपने भतीजे अजित पवार को दरकिनार कर बेटी सुप्रिया को ‘फुल पावर’ देने का काम किया है.
भतीजे को पता है कि ‘काका’ कितना करते हैं भरोसा
हालांकि, सुप्रिया सुले को भारतीय राजनीति के राष्ट्रीय फलक पर लाने के लिए शरद पवार की कोशिश का आभास उसी समय हो गया था, जब 2 मई 2023 को महाराष्ट्र में अपनी आत्मकथात्मक पुस्तक के लोकार्पण कार्यक्रम में एनसीपी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने का ऐलान किया था. इसके साथ ही, शरद पवार का पार्टी के अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने से लेकर त्यागपत्र वापस लेने तक के घटनाक्रम में सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल के गठजोड़ की ताकत भी उभरकर सामने आ गई थी. इतना ही नहीं, शरद पवार के भतीजे अजित पवार को भी उसी समय यह भी पता चल गया था कि उनके ‘काका’ उन पर कितना भरोसा करते हैं?
अजित पवार के बगावती तेवर ने सुप्रिया को बनाया पावरफुल?
राजनीतिक विश्लेषकों और मीडिया की रिपोर्टों को मानें, तो अजित पवार को दरकिनार कर सुप्रिया सुले और प्रफुल्ल पटेल को ‘पावरफुल’ बनाने का फैसला एनसीपी के अध्यक्ष शरद पवार ने इत्तफाकन नहीं ले लिया है, बल्कि लंबे अरसे से भतीजे अजित पवार की बगावत को देखते हुए उन्होंने यह कदम उठाया है. मीडिया की रिपोर्ट्स के अनुसार, सितंबर 2022 में दिल्ली में एनसीपी का राष्ट्रीय अधिवेशन का आयोजन किया गया था, तो अजित पवार बीच अधिवेशन में ही ‘काका’ शरद पवार की मौजूदगी में ही मंच छोड़कर बाहर चले गए थे. हालांकि, बाद में उन्होंने इसका स्पष्टीकरण भी दिया था, लेकिन उनके बगावती तेवर में कमी नहीं देखी गई.
काम न आया ‘वफादारी का सबूत’
इतना ही नहीं, अजित पवार के बागी तेवर 17 सितंबर 2022 के राष्ट्रीय अधिवेश के समापन के साथ समाप्त नहीं हो गया. अप्रैल 2023 में भी एनसीपी की राजनीति में एक बार फिर अजित पवार के बागी तेवर तब दिखाई दिए, जब महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस से मुलाकात के बाद उनका भाजपा में शामिल होने की अटकबाजियां शुरू हो गई थीं. अजित पवार का भाजपा में शामिल होने का मुद्दा राष्ट्रीय राजनीति में इतना उछला कि आखिर में अजित पवार को यह कहकर अपनी ‘वफादारी का सबूत’ देना पड़ा कि ‘मैं मरते दम तक राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी में रहूंगा.’ लेकिन, शरद पवार की सोच के आगे अजित पवार का वफादारी का यह सबूत भी काम न आया. माना यह जा रहा है कि भाजपा नेता और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस के साथ बढ़ती नजदीकियों ने भी अजित पवार को एनसीपी में दरकिनार करने में अहम भूमिका निभाई है.
2019 से ही अजित को लेकर सचेत रहे शरद पवार
बताते चलें कि कांग्रेस की पूर्व अध्यक्ष सोनिया गांधी के विदेशी मुद्दे पर मतभेद और विरोध बढ़ने के बाद पूर्व लोकसभा अध्यक्ष पीए संगमा के साथ मिलकर शरद पवार ने वर्ष 1999 में राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) का गठन किया था. तब से लेकर आज तक शरद पवार ही उसके राष्ट्रीय अध्यक्ष के तौर पर पार्टी की कमान संभाल रहे हैं. अजित पवार ने वर्ष 2019 में भाजपा के साथ हाथ मिलाकर तड़के ही उपमुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर न केवल भारत के राजनेताओं को चौंका दिया था, बल्कि शरद पवार के कान भी खड़े कर दिए थे. उस समय देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने थे और अजित पवार उपमुख्यमंत्री. माना यह जा रहा है कि उसी समय से अजित पवार की पार्टी में भूमिका को लेकर शरद पवार सचेत रहने लगे और यही वजह है कि अजित पवार को दरकिनार करते हुए शरद पवार ने सुप्रिया सुले को राष्ट्रीय राजनीति में अपने उत्तराधिकारी के तौर पर ‘डेब्यू’ करने का फैसला किया.