शिमला : विश्व प्रसिद्ध कुल्लू दशहरा के लिए रघुनाथ रथ सज रहा है. रथ मैदान को संवारने का काम भी शुरू हो गया है. हर साल हजारों श्रद्धालु इस रथ को खींचते रहे हैं. लेकिन इस बार कोरोना के कारण रथ खींचने में सिर्फ 200 श्रद्धालु ही शामिल हो सकेंगे. कुल्लू दशहरा में इस बार ज्यादा भीड़ नहीं जुटेगी. सादगी से उत्सव का आयोजन होगा. उत्सव में देव परंपराओं को निभाने के लिए मात्र आधा दर्जन देवी-देवताओं के रथ ही भाग लेंगे. रथयात्रा से शुरू होने वाले सात दिवसीय दशहरा उत्सव के सफल आयोजन के लिए रघुनाथ के कारकूनों ने तैयारियां शुरू कर दी हैं.
कुल्लू का अंतरराष्ट्रीय दशहरा पर्व 413 साल से मनाया जा रहा है. कभी यह छोटे स्तर पर मनाया जाता था लेकिन अब इसकी ख्याति पूरी दुनिया में है. पूरेदेश में जब दशहरे की समाप्ति होती है उस दिन से कुल्लू की घाटी में इस उत्सव का उत्साह अपने चरम पर रहता है. कुल्लू दशहरा अपनी विविधता के लिए जाना जाता है. यहां की रथयात्रा और धार्मिक परंपराओं की धूम श्रद्धालुओं को उत्साह से भर देती है.
अयोध्या से प्रतिमा लाकर किया था प्रतिष्ठित
कुल्लू दशहरा की परंपरा राजा जगत सिंह ने 1637 में शुरू की थी. फुहारी बाबा के नाम से जाने जाने वाले किशन दास नामक संत ने राजा जगत सिंह को इसकी सलाह दी थी. अयोध्या से मूर्ति लाकर कुल्लू में रघुनाथ जी की स्थापना की गई. कहा जाता है कि राजाजगत सिंह किसी असाध्य रोग से पीड़ित थे. मूर्ति के चरणामृत सेवन से उसकारोग दूर हो गया और वे स्वस्थ हो गए.
दशहरे पर हिडिंबा आती हैं कुल्लू
मान्यता है कि उत्सव के पहले दिन देवी हिडिंबा मनाली से कुल्लू आती हैं. वे राजघराने की देवी हैं. प्रवेशद्वार पर राजदंड से उसका स्वागत किया जाता है और उनका राजसीठाठ-बाट से राजमहल में प्रवेश होता है. राजा के वंशज की ओर से माता को न्योता दिया जाता है. इस बार दशहरा उत्सव समिति अधिक भीड़ एकत्रित करने के पक्ष में नहीं है. भगवान रघुनाथ के मुख्य छड़ीबरदार महेश्वर सिंह ने कहा कि दशहरा में भगवान रघुनाथ की भव्य रथयात्रा की तैयारियां जोरों पर है.
Posted By : Rajneesh Anand