Somnath Chatterjee Death Anniversary: सोमनाथ चटर्जी (25 जुलाई 1929 – 13 अगस्त 2018) एक जाने माने राजनीतिज्ञ थे, जिनकी आज पुण्यतिथि है. यूं तो उनके जीवन से जुड़ी कई बातें हैं जिनकी चर्चा होती है लेकिन 1984 में जो बंगाल की राजनीति में चटर्जी के साथ हुआ उसे कभी नहीं भुलाया जा सकता है. तो आइए आपको बताते हैं कि आखिर ऐसा क्या हुआ था अस्सी के दशक में…
दरअसल, 1984 में देश में लोकसभा का चुनाव होना था. कांग्रेस नेता राजीव गांधी को नए चेहरे की तलाश थी जो पश्चिम बंगाल की जादवपुर सीट के लिए से लड़े. यह वह सीट थी जहां से माकपा के दिग्गत नेता सोमनाथ चटर्जी को हराना काफी मुश्किल था. यह वाम का गढ़ था जहां से कांग्रेस का कोई भी दिग्गज चुनावी मैदान में नहीं उतरना चाहता था. बंगाल कांग्रेस का कोई भी नेता सोमनाथ चटर्जी के खिलाफ खड़ा नहीं होना चाहता था. कांग्रेस नेता सुब्रत मुखर्जी ने प्रदीप घोष और सुशोवन बनर्जी से इस संबंध में बात की, लेकिन हार निश्चित थी, यह सोचकर उन्होंने साफ इनकार कर दिया.
सोमनाथ चटर्जी को किसने दी टक्कर ?
सुब्रत मुखर्जी को एक ऐसे नेता की तलाश थी जो सोमनाथ चटर्जी को जादवपुर सीट से टक्कर दे. उनके पास एक ऑपशन था ममता बनर्जी, जो वर्तमान में पश्चिम बंगाल की सीएम हैं. ममता बनर्जी को सक्रिय राजनीति में लाने में सुब्रत की अहम भूमिका रही है. उन्होंने दिल्ली शीर्ष नेतृत्व को ममता का नाम सुझाया. तत्कालीन केंद्रीय मंत्री प्रणब मुखर्जी से इस बाबत उन्होंने फोन पर बात भी की. कलकत्ता में हुई कांग्रेस कमिटी की एक बैठक में ममता को अहम जिम्मेदारी सौंपी गई थी. राजीव गांधी भी इस बैठक में शिरकत करने पहुंचे थे. सुब्रत के याद दिलाने के बाद प्रणब मुखर्जी ने हामी भरी और राजीव गांधी के आगे ममता का नाम सुझाया. यही ममता बनर्जी के जीवन का टर्निंग पॉवाइंट रहा.
कैसे सोमनाथ चटर्जी को वाम के गढ़ में ममता ने कैसे दी टक्कर ?
वाम के गढ़ में ममता बनर्जी की लड़ाई दिग्गज वाम नेता से थी. इसी वजह से मुकाबला रोचक था. ममता ने खूब मेहनत की. जनता को अपने भाषणों से लुभाया. यही नहीं ममता बनर्जी खुद से ही अपना पोस्टर तैयार करतीं और रात में दीवारों पर चिपकातीं. ये एंटी-लेफ्ट पोस्टर्स होते थे जिसे सुबह में कम्युनिस्ट कार्यकर्ता फाड़ देते. अगली सुबह फिर से वहां दूसरे पोस्टर्स ममता के समर्थन में नजर आने लगते थे. ममता फिर पोस्टर तैयार कर चिपकवाती थीं.
सोमनाथ चटर्जी किससे हारे चुनाव ?
ममता बनर्जी हर क्षेत्र में प्रचार कर रहीं थीं. कबीरतीर्थ कंस्टीच्यूएंसी को लेकर सोमनाथ चटर्जी की चिंता बनी हुई थी. इसकी वजह वहां हिंदू-मुस्लिम आबादी का 50-50 प्रतिशत होना था. हिंदू-मुस्लिम वोटर्स के बीच वो यहां एक बैठक सोमनाथ करना चाहते थे. निर्मल रे के सामने उन्होंने प्रस्ताव भी रखा था, पर उन्हें समझाया गया कि इस क्षेत्र में कोई दिक्कत नहीं है. चुनाव परिणाम आए तो सोमनाथ का डर सही साबित हुआ. कबीरतीर्थ में खराब प्रदर्शन के कारण वो जादवपुर सीट से चुनाव हार गए. इसी जीत के साथ ममता बनर्जी भारतीय राजनीति में उभरीं. यही नहीं ममता बनर्जी का नाम सबसे कम उम्र में सांसद बननेवाली नेताओं में शामिल हो चुका था.
किस वजह से सोमनाथ चटर्जी रहे चर्चा में ?
1. बीजेपी के नेतृत्व वाले NDA ने 2004 में 14वीं लोकसभा के अध्यक्ष के रूप में सोमनाथ चटर्जी का समर्थन किया था जबकि वह सीपीएम से आते थे.
2. सोमनाथ चटर्जी सबसे लंबे समय तक सांसद रहने वाले नेताओं की लिस्ट में शामिल हैं. वह 1971 से 2009 तक 10 बार लोकसभा सांसद रहे. इस दौरान केवल एक बार 1984 के चुनाव में वे ममता बनर्जी से हार गए थे.
3. 2008 में उनकी पार्टी CPM ने उन्हें निष्कासित कर दिया गया था. वजह यह थी कि सीपीएम ने यूपीए गठबंधन से अपना समर्थन वापस ले लिया था जबकि चटर्जी ने स्पीकर के पद से इस्तीफा देने से मना कर दिया था.
Read Also : आडवाणी के बाद अब सोमनाथ चटर्जी ने भी कहा, आपातकाल का डर अब भी बरकरार