Special Status For States: हाल ही में लोकसभा चुनाव संपन्न हुए हैं, जिसमें किसी भी राजनीतिक पार्टी को पूर्ण बहुमत प्राप्त नहीं हुआ, हालांकि एनडीए गठबंधन को पूर्ण बहुमत मिला. अभी देश में एनडीए की सरकार है. एनडीए में बीजेपी, टीडीपी, जेडीयू और एलजेपी (रामविलास), शिवसेना (शिंदे गुट) आदि प्रमुख दल है. चूंकि सरकार बनाने में टीडीपी और जेडीयू जैसे दलों ने काफी अहम भूमिका निभाई है, इसलिए अब राजनीतिक गलियारे में बिहार और आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जा देने की चर्चा चल रही है और यह बात भी हो रही है कि संभवत: टीडीपी और जेडीयू की ओर से इस तरह की मांग भी उठे. अब ये देखना काफी दिलचस्प होगा कि केंद्र सरकार इस तरह की मांगों को कैसे देखती है और उनपर निर्णय कैसे करती है. इसमें सबसे बड़ी दुविधा ये है कि मौजूदा प्रावधानों के तहत, राज्यों के लिए विशेष दर्जा मौजूद नहीं है. अगस्त 2014 में 13वें योजना आयोग के भंग होने के साथ, 14वें वित्त आयोग ने विशेष राज्य के दर्जे के प्रावधान को समाप्त कर दिया है. अब विशेष राज्य और सामान्य श्रेणी के राज्यों के बीच कोई अंतर नहीं किया जाता है. विशेष राज्य के स्थान पर अब राज्यों को विशेष वित्तीय सहायता प्रदान की जाती है. विशेष दर्जा दिए गए राज्यों के लिए सबसे बड़ा लाभ यह था कि केंद्र प्रायोजित योजनाओं के तहत 90 प्रतिशत धनराशि केंद्र द्वारा दी जाती थी. जबकि राज्य का योगदान केवल 10 प्रतिशत होता था. अन्य सभी राज्यों के लिए, यह विभाजन 60 और 40 के अनुपात में होता था. जिसमें केंद्र 60 प्रतिशत देता था और 40 प्रतिशत राज्यों को लगाना पड़ता था. वर्तमान में 14वें और 15वें वित्त आयोग की सिफारिशों और योजना आयोग के विघटन के बाद विशेष श्रेणी के राज्यों को दी जाने वाली वित्तीय सहायता को अलग तरीके से शामिल किया गया है. वित्त आयोग की सिफारिशों के मुताबिक़, सामान्य तौर पर राज्यों को दी जाने वाली यह राशि 32 फीसदी से बढ़ाकर 41 फीसदी कर दी गई है.
राज्य को विशेष दर्जा मिलने की है कुछ शर्तें
किसी राज्य को विशेष दर्जा देने के लिए कुछ शर्तें होती है. जैसे कोई पहाड़ी राज्य कम जनसंख्या घनत्व वाला हो. कोई राज्य जनजातीय आबादी का बड़ा हिस्सा हो तब भी उसे विशेष राज्य का दर्जा मिलता था. इसके अतिरिक्त यदि राज्य पड़ोसी देशों के साथ सीमाओं पर रणनीतिक महत्व वाला क्षेत्र हो या फिर आर्थिक और बुनियादी ढांचे में पिछड़ा हुआ राज्य हो.जिनके पास स्वयं के संसाधन स्रोत सीमित होते थे.
संविधान में नहीं है विशेष राज्य का प्रावधान
बता दें कि विशेष श्रेणी का दर्जा, किसी राज्य को उनकी विकास दर के आधार पर दिया जाता है. यदि कोई भी राज्य भौगोलिक, सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़ा होता है तब उन्हें यह दर्जा मिलता है. इसके अंतर्गत राज्यों को शुल्क में विशेष छूट देने के लिए विशिष्ट दर्जा दिया जाता है.स्पेशल स्टेटस पाने वाले राज्य के लिए एक्साइज ड्यूटी में भी महत्वपूर्ण छूट दिए जाने का प्रावधान किया गया था ताकि वहां बड़ी संख्या में कंपनियां मैनुफैक्चरिंग फैसिलिटीज़ स्थापित कर सकें. हालांकि संविधान में किसी राज्य को उसके समग्र विकास के लिए विशेष दर्जा देने का कोई प्रावधान नहीं है.
विशेष दर्जे से अलग है विशेष श्रेणी राज्य
बताते चलें कि विशेष श्रेणी राज्य, विशेष दर्जे से अलग है. एक तरफ जहां विशेष दर्जा विधायी और राजनीतिक अधिकारों को बढ़ाता है. वहीं स्पेशल स्टेटस स्टेट यानी एससीएस केवल आर्थिक और वित्तीय पहलुओं से संबंधित है. 2014 में तत्कालीन यूपीए सरकार के तहत 18 फरवरी 2014 को संसद ने विधेयक पारित करके तेलंगाना को आंध्र प्रदेश से अलग कर विशेष दर्जा दिया था. इसके बाद 14वें वित्त आयोग ने पूर्वोत्तर और तीन पहाड़ी राज्यों को छोड़कर अन्य सभी राज्यों के लिए ‘विशेष श्रेणी का दर्जा’ समाप्त कर दिया था.
जम्मू और कश्मीर समेत इन राज्यों को मिला था विशेष दर्जा
बता दें कि विशेष राज्यों के प्रावधान से पहले ही जम्मू और कश्मीर को विशिष्ट दर्जा मिला था. लेकिन 2019 में अनुच्छेद 370 के निरस्त होने के बाद अब वो एक केंद्र शासित प्रदेश है. जम्मू और कश्मीर के बाद पूर्वोत्तर के असम और नगालैंड ऐसे पहले राज्य थे जिन्हें 1969 में विशेष दर्जा दिया गया था. इसके बाद में हिमाचल प्रदेश, मणिपुर, मेघालय, सिक्किम, त्रिपुरा, अरुणाचल प्रदेश, मिजोरम, उत्तराखंड और तेलंगाना सहित 11 राज्यों को विशेष श्रेणी राज्य का दर्जा दिया गया. बताते चलें कि 1969 में पांचवें वित्त आयोग की सिफारिश पर पिछड़े राज्यों को विशेष श्रेणी का दर्जा देने का प्रावधान किया गया था. गाडगिल कमेटी के फॉर्मूले के तहत स्पेशल कैटगिरी का स्टेटस पाने वाले राज्य के लिए संघीय सरकार की सहायता और टैक्स छूट में प्राथमिकता देने का सुझाव दिया गया था.