नयी दिल्ली : ‘आत्मनिर्भर भारत’ के तहत बजट में नागरिक केंद्रित सुधार लागू करनेवाले राज्यों को प्रोत्साहन पैकेज के रूप में कुछ अतिरिक्त वित्तीय सहायता दिये जाने की उम्मीद है. वित्तीय वर्ष 2020-21 में उधार सीमा को सकल घरेलू उत्पाद का दो फीसदी यानी करीब 4.27 लाख करोड़ से अधिक की राशि बढ़ायी गयी थी.
कोविड-19 महामारी से बेहाल हुई अर्थव्यवस्था में तेजी लाने में राज्यों की भूमिका महत्वपूर्ण है. राज्यों को तेजी से आर्थिक विकास दर हासिल करने के लिए अतिरिक्त संसाधनों की जरूरत होगी. इसका अर्थ है कि सकल राज्य घरेलू उत्पाद की उधार की सीमा तीन फीसदी से ऊपर बढ़ायी जाये.
मालूम हो कि केंद्र सरकार एक फरवरी को वित्तीय वर्ष 2021-2022 के लिए बजट पेश करनेवाली है. इसमें आर्थिक विकास को पुनर्जीवित करने पर ध्यान केंद्रित किये जाने की उम्मीद है. कोविड महामारी को लकर पिछले साल 25 मार्च को देश में लॉकडाउन लगाये जाने से आर्थिक विकास प्रभावित हुआ है.
देश में लॉकडाउन लगाये जाने से भारतीय अर्थव्यवस्था 23.9 फीसदी और सितंबर माह में खत्म हुई तिमाही में 7.5 फीसदी पर संकुचित हो गयी है. हालांकि, राष्ट्रीय सांख्यिकी कार्यालय के अनुमान के मुताबिक, वित्त वर्ष 2020-21 में 7.7 फीसदी तक जीडीपी संकुचित होने की उम्मीद है.
राजकोषीय उत्तरदायित्व और बजट प्रबंधन अधिनियम के तहत राज्य अपने वित्तीय घाटे को सकल राज्य घरेलू उत्पाद का तीन फीसदी रख सकते हैं. सरकार ने 2020-21 में 17 मई, 2020 को सकल राज्य घरेलू उत्पाद की अतिरिक्त उधारी की सीमा दो फीसदी तक बढ़ा दी थी, जो करीब 4.27,300 करोड़ थी.
चार नागरिक केंद्रित सुधारों (एक राष्ट्र-एक राशनकार्ड, व्यापार करने में आसानी, शहरी स्थानीय निकायों और बिजली क्षेत्र में सुधार) की शर्त पर एक फीसदी अतिरिक्त उधार की राशि बढ़ा दी गयी थी. शेष 0.5 फीसदी चार सुधारों में से तीन को लागू करनेवाले राज्यों पर सशर्त था.
केंद्रीय वित्त मंत्रालय ने कहा है कि 10 राज्यों ने अब तक एक राष्ट्र, एक राशनकार्ड प्रणाली को लागू किया है. इनमें से सात ने व्यापार करने में आसानी के उपाय किये हैं. और तीन राज्यों ने शहरी निकायों में सुधार लागू किये हैं. उन्हें 54190 करोड़ की अतिरिक्त उधारी की अनुमति दी गयी है.
विशेषज्ञों ने भी तेजी से आर्थिक सुधार के लिए राज्यों को सामान्य से अधिक उधार लेने की अनुमति की पैरवी की है. हालांकि, राज्यों को विवेकपूर्ण तरीके पैसे खर्च करने होंगे. साथ ही संभावना जतायी है कि केंद्र और राज्यों सरकारों को राजकोषीय घाटे पर निर्भर रहना पड़ सकता है.