Jammu & Kashmir Article 370: साल 2019 के अगस्त महीने में जम्मू कश्मीर में भारत सरकार द्वारा आर्टिकल 370 को हटा दिया गया था. लेकिन जैसे ही आर्टिकल 370 को हटाया गया वैसे ही कई लोगों ने इसके खिलाफ आवाज उठानी शुरू कर दी और कोर्ट में इसके खिलाफ याचिकाएं भी दायर करनी शुरू कर दी. बता दें इस मामले में अलग-अलग कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गयी है. केंद्र सरकार के आर्टिकल 370 को हटाए जाने के फैसले के खिलाफ एक बार फिर से बहस शुरू हो गई है. इस मामले पर बात करते हुए आज सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि वो अनुच्छेद 370 रद्द किए जाने के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर विचार करेगी. इसके लिए वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन ने मांग की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि- वह जम्मू-कश्मीर को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को जल्द सूचीबद्ध करने पर फैसला करेगा. प्रधान न्यायाधीश डी.वाई. चंद्रचूड़ एवं न्यायमूर्ति पी. एस. नरसिम्हा तथा न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला की पीठ ने एक पक्ष की ओर से पेश हुए वरिष्ठ अधिवक्ता राजू रामचंद्रन की दलीलों पर गौर किया कि इन याचिकाओं पर तत्काल सुनवाई आवश्यक है. प्रधान न्यायाधीश ने कहा -ठीक है मैं इस पर फैसला करूंगा.
पिछले साल 14 दिसंबर को लंबित मामलों में हस्तक्षेप कर रही पीठ के समक्ष अकादमिक एवं लेखक राधा कुमार ने याचिकाओं को जल्द सूचीबद्ध करने का अनुरोध किया था. इससे पहले पिछले साल 25 अप्रैल और 23 सितंबर को तत्कालीन प्रधान जस्टिस एन. वी. रमण (अब सेवानिवृत्त) की अगुवाई वाली पीठ अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को हटाने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं को सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करने पर सहमत हुई थी.
हाई कोर्ट को इन याचिकाओं पर सुनवाई के लिए पांच न्यायाधीशों की पीठ का फिर से गठन करना होगा. क्योंकि, इन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही पांच न्यायाधीशों की पीठ का हिस्सा रहे पूर्व प्रधान जस्टिस रमण एवं न्यायमूर्ति आर. सुभाष रेड्डी सेवानिवृत्त हो चुके हैं. दो पूर्व न्यायाधीशों के अलावा न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति बी. आर. गवई और जस्टिस सूर्यकांत उस पीठ का हिस्सा थे जिसने 5 अगस्त, 2019 को अनुच्छेद 370 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं को दो मार्च, 2020 को सात-न्यायाधीशों की एक बड़ी पीठ को भेजने से मना कर दिया था.
अनुच्छेद 370 और जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम, 2019 के प्रावधानों को निरस्त करने के केंद्र के फैसले को चुनौती देने वाली कई याचिकाएं 2019 में तत्कालीन प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई ने न्यायमूर्ति रमण की अध्यक्षता वाली एक संविधान पीठ को भेजी थी. केंद्र के इस फैसले के बाद जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित प्रदेशों जम्मू-कश्मीर और लद्दाख में विभाजित किया गया. केंद्र सरकार ने अनुच्छेद 370 को निरस्त कर जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को रद्द कर दिया था. (भाषा इनपुट के साथ)