सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि प्रत्येक वैध विवाह के लिए सार्वजनिक घोषणा और किसी भी तरीके के पारंपरिक अनुष्ठान की जरूरत नहीं होती है. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले द्वारा तमिलनाडु में प्रचलित एक स्वाभिमान मैरिज एक्ट को मजबूती प्रदान की है. कोर्ट ने यह कहा कि कानूनी शादी के लिए यह जरूरी नहीं कि धार्मिक अनुष्ठान संपन्न कराए जाएं या उस शादी की सार्वजनिक घोषणा की जाए.
तमिलनाडु के इस खास कानून में यह कहा गया है कि विवाह करने वाले दो लोग किसी भी भाषा में यह घोषणा कर सकते हैं कि वे दोनों एक दूसेर को पति-पत्नी के रूप में रूप में स्वीकार करते हैं. कानून के हिसाब से वे एक दूसरे को माला पहनाकर शादी कर सकते हैं या फिर अंगूठी पहना सकते हैं. थाली को बांधने की परंपरा भी इस विवाह के अधीन आती है.
न्यायाधीश एस रवींद्र भट और अरविंद कुमार की पीठ ने कहा कि स्वाभिमान विवाह एक्ट उन लोगों की मदद कर सकता है जो जोड़े परिवार के विरोध की वजह से या फिर अपनी सुरक्षा कारणों से विवाह को उजागर नहीं करना चाहते हैं. विवाह की घोषणा से इन लोगों के जीवन पर खतरा हो सकता है या इन्हें अपने संबंध तोड़ने पड़ सकते हैं.
तमिलनाडु सरकार ने 1967 में हिंदू विवाह अधिनियम में एक संशोधन किया और उसकी धारा 7-एक के अनुसार रिश्तेदारों की उपस्थिति में किए गए किन्हीं दो हिंदुओं के बीच के विवाह को वैध ठहराया है. गौरतलब है कि 5 मई को मद्रास उच्च न्यायालय ने अधिवक्ताओं द्वारा अपने कार्यालयों में आयोजित विवाह को अस्वीकार कर दिया था. कोर्ट ने कहा था कि अधिवक्ताओं द्वारा उनके कार्यालय में किया गया विवाह तब तक वैध नहीं है, जब तक कि यह तमिलनाडु विवाह पंजीकरण अधिनियम, 2009 के तहत पंजीकृत न हो. अदालत ने आगे कहा कि विवाह रजिस्ट्रार के समक्ष विवाह के पक्षों की शारीरिक उपस्थिति आवश्यक है.
उच्च न्यायालय ने यह फैसला उस याचिका के खिलाफ दिया था जिसमें एक व्यक्ति ने यह शिकायत की थी कि उसकी पत्नी को उसके माता-पिता जबरन उठाकर ले गये जबकि उन्होंने अधिवक्ताओं के समक्ष एक समारोह में शादी की थी. सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज करते हुए, सुप्रीम कोर्ट के 2001 के फैसले को सही ठहराया जिसमें यह कहा गया था कि धारा 7-ए के तहत वैध विवाह के लिए पुजारी की उपस्थिति आवश्यक नहीं है. साथ ही कोर्ट ने यह भी कहा कि शादी के लिए किसी सार्वजनिक घोषणा की भी जरूरत नहीं है.
समाज में समानता लाने और जाति व्यवस्था को समाप्त करने के लिए तमिलनाडु में स्वाभिमान मैरिज की शुरुआत हुई थी. जब 1967 में सी एन अन्नादुरई तमिलनाडु के मुख्यमंत्री बने, तो उन्होंने द्रविड़ आंदोलन के मूल स्वाभिमान आंदोलन की तर्ज पर एक एक्ट बनाया जिसके तहत शादी के लिए ब्राह्मण पुरोहित की आवश्यकता समाप्त कर दी गयी और साथ ही सार्वजनिक घोषणा की बाध्यता भी नहीं रही. 1925 में पेरियार ने आत्मसम्मान आंदोलन शुरू किया था.