लोकसभा में कांग्रेस के बाद सबसे बड़ी विपक्षी पार्टी तृणमूल कांग्रेस है. अब तृणमूल कांग्रेस दूसरी पार्टियों को अपने साथ जोड़ने में लगी है. इनकी रणनीति है कि एक मजबूत विपक्ष का विकल्प खड़ा किया जाये जो कांग्रेस के बगैर होगा.
तृणमूल अब खुद को मजबूत करने की दिशा में काम कर रही है. पश्चिम बंगाल विधानसभा चुनाव के बाद तृणमूल कांग्रेस का उत्साह बढ़ा है. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी ने भाजपा को शिकश्त दी है. अब 19 जुलाई से शुरू हो रहे मानसून सत्र में तृणमूल वैसी पार्टियों को जोड़ने में लगा है जो एनडीए का हिस्सा नहीं है.
तृणमूल वैसी पार्टियों को एक कर रहा है जो कांग्रेस के साथ नहीं है जैसे आम आदमी पार्टी, शिरोमणि अकाली दल ये तृणमूल के साथ काम करने की रणनीति तैयार कर रहे हैं. तृणमूल समाजवादी पार्टी को भी अपने साथ लाने की कोशिश कर रही है क्योंकि ऐसा माना जा रहा है कि यूपी चुनाव में कांग्रेस की नीतियों के साथ अखिलेश असहमत नजर आ रहे हैं.
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तृणमूल कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने दावा किया है कि विधानसभा चुनावों में बहुत कुछ बदल कर रख दिया है. हमें सदन में एक तय एजेंडा के साथ जाना होगा. कांग्रेस के साथ एक बड़ी समस्या यह भी है कि उनके पास कोई ऐसा नेता नहीं है जो इन पार्टियों तक पहुंच कर उन्हें जोड़े रखने की कोशिश करे. किसी को तो एक मंच पर आकर इन पार्टियों को इकट्ठा करना होगा.
ममता बनर्जी तीसरी बार विधानसभा चुनाव जीतने के बाद दिल्ली का दौरा इसी योजना के तहत कर रहीं थी. वह पांच दिन दिल्ली में रहेंगी और संसद भी आखिरी के दो दिन आ सकती हैं . ममता बनर्जी सात बार पश्चिम बंगाल से सांसद रहीं है उन्होंने साल 2011 में राज्य का रुख कर लिया.
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तृणमूल और कांग्रेस सदन में अलग- अलग मुद्दों के साथ जा रहा है. कांग्रेस राफेल मुद्दे को सदन मे उठाने की योजना बना रही है तो तृणमूल महंगाई और किसानों बिल को लेकर आगे बढ़ेगी.