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विजयादशमी विशेष : हिंदी साहित्य में भी है राम की जीवन लीला का संदेश

Vijayadashami 2024 : बुराई पर अच्छाई की जीत के प्रतीक दुर्गा पूजा के अवसर पर गांवों-कस्बों, छोटे शहरों के साथ-साथ मेट्रो शहरों में भी रामलीला का आयोजन होता है. नकारात्मक शक्तियों पर सकारात्मक शक्तियों की विजय के प्रतीक स्वरूप खेली जाती है राम के जीवन-प्रसंगों पर आधारित रामलीला. मानव जीवन में इस संदेश की महत्ता को हिंदी साहित्य में भी कविता-कहानियों के जरिये दर्शाया गया है. जानते हैं रामलीला पर आधारित कुछ प्रमुख कृतियों को.

Vijayadashami 2024 : (स्मिता, स्वतंत्र पत्रकार ) भारतीय संस्कृति और साहित्य का आधार हैं रामायण-रामचरितमानस ग्रंथ और रामलीला. प्रत्येक भारतीय की चेतना में बसा है रामलीला के रूप में राम का जीवन संदेश. मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम, कर्तव्यनिष्ठ लक्ष्मण, दुख-सुख में एक समान रहने वाली सीता, कभी विचलित नहीं होने वाली उर्मिला, सर्वोत्तम सेवक हनुमान, त्यागमूर्ति भरत और महाबली रावण और कुंभकर्ण. ये सभी रामलीला के पात्र कुछ न कुछ सीख दे रहे हैं, इसलिए हिंदी साहित्य में भी रामलीला का उल्लेख मिलता है. जानते हैं किन-किन कृतियों में मौजूद है रामलीला.

हिंदी साहित्य में राम का जीवन

प्रेमचंद की कहानी ‘रामलीला’

यदि आप अमेजन पर सर्च करें, तो महान कथाकार प्रेमचंद का कहानी संग्रह ‘रामलीला व अन्य कहानियां’ आसानी से मिल जायेगी. रामलीला के बहाने इस कहानी में लेखक ने तात्कालिक सामाजिक परिवेश पर तंज कसा है. इसमें व्यक्ति परोपकार पर खर्च नहीं करना चाहता है. वहीं दूसरी ओर, झूठी शान-शौकत और दिखावे के लिए वह अपना धन लुटा देना चाहता है.

‘निराला’ का काव्य ‘राम की शक्तिपूजा’

”रवि हुआ अस्त; ज्योति के पत्र पर लिखा अमर
रह गया राम-रावण का अपराजेय समर…”
ये पंक्तियां महान कवि सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ के राम के जीवन की एक खास लीला पर आधारित काव्य ‘राम की शक्तिपूजा’ से ली गयी है. यह काव्य उनके कविता संग्रह ‘अनामिका’ के प्रथम संस्करण में मौजूद है. निराला ने ‘राम की शक्ति पूजा’ में राम को अंतर्द्वंदों से जूझकर शक्ति अर्जित करते हुए दिखाया है. इस काव्य में कवि ने अलौकिक जगत के निवासी राम को लौकिक जगत में स्थापित कर दिया है. राम भावबोध से जुड़ जाते हैं. ‘राम की शक्ति पूजा ‘ में कवि ने राम को रावण जय-पराजय की आशंका को दूर कर शक्ति अर्जित करते हुए दिखाया है.

नरेंद्र कोहली की ‘दीक्षा’

राम की जीवनलीला पर नरेंद्र कोहली ने कई पुस्तकें लिखीं, लेकिन सबसे अधिक लोकप्रिय “रामकथा” और “दीक्षा” हुईं. “दीक्षा” उपन्यास का तो कई देशी-विदेशी भाषाओं में अनुवाद भी हुआ. राम की लीला पर आधारित यह किताब सर्वकालिक पुस्तक बन गयी और नरेंद्र कोहली सर्वमान्य पौराणिक आख्यानकार. “दीक्षा” पुस्तक में राम राजा रामचंद्र नहीं, बल्कि जन-जन के राम हैं. वे सामान्य इंसान की तरह स्वयंवर के धनुष तोड़ने के लिए प्रयास करते हैं, पत्नी से बिछड़ने और भाई के मरणासन्न होने पर बिलख-बिलख कर रोते भी हैं. ऐसे राम जो सत्य और न्याय को प्रतिष्ठित करने के लिए वन में रहते हैं, कंद -मूल खाते हैं. “दीक्षा” के राम पत्नी प्रिय हैं, जो जनता की मांग पर सीता का परित्याग कर देते हैं. लेकिन सीता के वनगमन करने पर स्वयं भी राजमहल में वनवासी-सा जीवन जीते हैं.

डॉ महेश विद्यालंकार की ‘मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम’

डॉ महेश विद्यालंकार ने राम के जीवन लीलाओं पर पुस्तक लिखी “मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का प्रेरक स्वरूप”. इसमें राम के जीवन से जुड़े प्रेरक प्रसंगों को लिया गया है. राम के सत्य, न्याय, परोपकार, क्षमा, दान, सेवा, यज्ञ, धर्म पालन और गरिमामय जीवन को इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है. इस पुस्तक के माध्यम से लेखक बताना चाहते हैं कि व्यक्ति जीवन से मरण तक (शव ले जाते समय राम नाम सत्य है का उच्चारण) राम नाम लेता रहता है, लेकिन उनके आदर्शों और जीवन दर्शन का अनुसरण करने की कोशिश कभी नहीं करता.

बद्री सिंह चौहान की “रामरस सुधा”

यह भगवान राम के चरित्र पर लिखी गयी रामलीला की पुस्तक है. इसकी रचना लेखक बद्री सिंह चौहान ने की है. इसमें रामलीला के प्रसंगों को रोचकता के साथ प्रस्तुत किया गया है. श्री राम जन्म, श्री राम वनगमन, सीता हरण, राम-रावण युद्ध आदि को सरलता के साथ प्रस्तुत किया गया है. साथ ही साथ, कुछ न कुछ संदेश देने की भी कोशिश की गयी है. हालांकि उत्तर प्रदेश में कई रामलीला मंच इस पुस्तक को आधार बनाकर राम के जीवन को मंचित करते हैं, लेकिन अब इस किताब के संस्करण का बाजार में मिलना मुश्किल है. “रामरस सुधा” की तर्ज पर कई आध्यात्मिक गुरुओं की किताबें भी रामलीला का वर्णन करती हैं.

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राम का संदेश रामलीला में है मौजूद

(आशा प्रभात, वरिष्ठ कहानीकार) मैंने रामलीला से जुड़े पात्र सीता पर “मैं जनक नंदिनी’ और उर्मिला पर ‘उर्मिला’ लिखा है. मैंने स्त्री मनोभावों को ध्यान में रखकर ये किताबें लिखीं. जब मैं छोटी थी, तो सुना था कि स्त्री की ‘ना’ भी ‘हां’ के समान है. यह स्त्री की त्रासदी है. सीता और उर्मिला के मनोभावों को मैंने शब्द दिया. आज भी स्त्रियों की स्थिति बहुत अधिक नहीं बदली है. पुरुष वर्ग स्त्री की त्रासदी को चाह कर भी नहीं समझ सकता है. अगर रामलीला की बात की जाये, तो जन-जन में आज भी राम-सीता की जीवन लीलाएं जिंदा हैं. इसका बड़ा कारण गांव, कस्बे और शहर में भी रामलीला का आयोजित होना है. रामलीला ने पात्रों को जन-जन में जीवित रखा. जो कथा बाल्मीकि रामायण में नहीं है, वह संदेश के रूप में रामलीला में मौजूद है, जैसे कि लक्ष्मण का लक्ष्मण रेखा खींचना. लक्ष्मण ऐसा कर सीता की शक्ति को कम आंकने की धृष्टता नहीं कर सकते थे.

कब शुरू हुआ रामलीला का मंचन

यह स्पष्ट नहीं कहा जा सकता है कि रामलीला का पहला प्रदर्शन कब हुआ था. माना जाता है कि 16वीं शताब्दी में तुलसीदास रचित रामचरितमानस का पहला मंचन हुआ था. उनके शिष्य मेघा भगत ने 1625 में रामचरितमानस पर आधारित रामलीला शुरू की थी. 19 वीं शताब्दी में काशीराज के संरक्षण में वाराणसी के रामनगर में शुरू हुई रामलीला यूनेस्को के विश्व धरोहरों की सूची में भी शामिल है.

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