Tripura Assembly Election 2023: त्रिपुरा में कुछ ही दिनों में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं. ऐसे में अगर किसी भी पार्टी अथवा गठबंधन को यहां बहुमत नहीं हासिल होती है तो टिपरा मोथा यहां अपनी सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती है. इस बात की घोषणा खुद टिपरा मोथा के अध्यक्ष बिजॉय कुमार हरंगखाल ने की है. घोषणा करने के बाद हरंगखाल ने यह भी कहा कि- उनकी पार्टी अथवा टिपरा मोथा ने गुवाहाटी में चुनाव से पहले होने वाली गठबंधन की संभावना को लेकर मीटिंग भी की. इस मीटिंग में असम के मुख्यमंत्री और भाजपा के दो नेताओं से उनकी मुलाक़ात हुई. लेकिन, इस मीटिंग का कोई परिणाम नहीं निकल पाया.
त्रिपुरा विधानसभा के लिए होने जा रहे चुनाव में त्रिकोणीय मुकाबले के बाद यदि किसी दल अथवा गठबंधन को बहुमत नहीं मिला तो ऐसी स्थिति में टिपरा मोथा राज्य में सरकार बनाने का दावा पेश कर सकती है. पार्टी के अध्यक्ष बिजॉय कुमार हरंगखाल ने यह बात कही है. प्रदेश के आदिवासी क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अपनी पैठ बना चुका क्षेत्रीय दल टिपरा मोथा विधानसभा में किसी भी दल या गठबंधन को बहुमत नहीं मिलने की स्थिति में उस दल या गठजोड़ को बाहर से समर्थन देने का इच्छुक है जो अलग आदिवासी राज्य बनाने की टिपरा मोथा की मांग का ‘लिखित रूप से और सदन के पटल पर’ समर्थन करेगा.
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बिजॉय कुमार हरंगखाल ने यह भी कहा कि उनकी पार्टी ने गुवाहाटी में चुनाव पूर्व गठबंधन की संभावना को लेकर बैठक की जिसमें असम के मुख्यमंत्री और भाजपा के दो अन्य नेताओं के साथ उनकी मुलाकात हुयी. लेकिन, इसका कोई परिणाम नहीं निकला उग्रवादियों के मुखिया रह चुके हरंगखाल ने एक विशेष साक्षात्कार में कहा- ऐसा हो सकता है कि हम राज्य में सबसे बड़ी पार्टी हों और चुनाव के बाद के परिदृश्य में, हम (सरकार के गठन में सक्षम किसी भी दल या गठबंधन को) बाहर से समर्थन देने को तैयार हैं, लेकिन एक नये राज्य के निर्माण के लिये आपको लिखित तौर पर और सदन में सहमत होना होगा. उन्होंने कहा- अगर वे (दूसरे दल) सहमत नहीं होते हैं, हम आगे नहीं बढ़ेंगे.
देश के पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के साथ शांति समझौते पर हस्ताक्षर करने वाले वरिष्ठ आदिवासी नेता ने इंडीजिनियस नेशनलिस्ट पार्टी ऑफ ट्विपरा की स्थापना की थी, जिसका दो साल पहले टिपरा मोथा में विलय हो गया. टिपरा मोथा प्रमुख ने यह भी संकेत दिया कि उनकी पार्टी के अध्यक्ष और पूर्व शाही परिवार के वंशज प्रद्योत किशोर माणिक्य देबबर्मा के साथ रणनीति पर चर्चा की गई थी. उन्होंने कहा कि अगर संवैधानिक गतिरोध पैदा होता है और कोई पार्टी या गठबंधन सरकार के गठन में नाकाम रहता है तो हम राज्यपाल से संपर्क कर सरकार बनाने का दावा पेश करेंगे, (बावजूद इसके कि) यह जानते हुए भी कि हम संभवत: सरकार नहीं चला पाएं क्योंकि वे (दूसरे दल) हमारे खिलाफ एकजुट हो सकते हैं ।’’
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त्रिपुरा में साठ सदस्यीय विधानसभा के लिये 16 फरवरी को मतदान होगा. इसमें से 20 सीट आरक्षित हैं. विश्लेषकों का मानना है कि प्रदेश में विधानसभा में त्रिकोणीय मुकाबला हो सकता है, कांग्रेस और वाम दलों का गठबंधन दोबारा उभर सकता है जबकि टिपरा मोथा पार्टी को आदिवासी इलाकों में बड़े पैमाने पर समर्थन मिल सकता है. त्रिपुरा में वर्ष 2018 में हुये पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को प्रदेश में 36 सीटें मिली थी और पार्टी सत्ता में आयी थी. भाजपा को प्राप्त सीटों में से आधे से अधिक आदिवासी इलाकों में मिली थी.
टिपरा मोथा के उदय के साथ करीब 20 आदिवासी सीटों में से बड़ी संख्या में बदलाव की उम्मीद की जा रही है जबकि मैदानी इलाकों में, जहां ज्यादातर गैर-आदिवासी रहते हैं, सत्ता विरोधी लहर और कानून और व्यवस्था के मुद्दे पर सत्ताधारी दल के सीटों की गिनती में सेंध लगा सकते हैं. भाजपा ने 2018 में 43.59 प्रतिशत मत हासिल किया था जबकि कांग्रेस को केवल दो फीसदी वोट प्राप्त हुये थे.
हरंगखाल ने कहा कि चुनाव से पहले गठबंधन करने का प्रयास किया गया था. लेकिन, वह सफल नहीं हुआ. हम गुवाहाटी में मिले थे….हमें असम के मुख्यमंत्री (हिमंत बिस्व शर्मा) ने आमंत्रित किया था. दिल्ली से भाजपा के दो और नेता आये थे. हमने मना कर दिया क्योंकि उन्होंने कहा कि हम (अलग टिपरालैंड की मांग पर) सहमत नहीं हो सकते हैं. पूर्व विद्रोही नेता ने यह भी कहा कि वह खरीद-फरोख्त की आशंका से इंकार नहीं कर सकते हैं. उन्होंने कहा, ‘‘कुछ लोग हो सकते हैं जो इस मौके पर अपना मन बदल लेते हैं. हम इससे इंकार नहीं कर सकते. (भाषा इनपुट के साथ)