प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि रूस-यूक्रेन युद्ध के, खासकर ‘ग्लोबल साउथ’ के देशों पर पड़ने वाले असर को लेकर भारत बहुत चिंतित है. फ्रांसीसी समाचार पत्र ‘लेस इकोस’ को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि, रूस-यूक्रेन संघर्ष पर उन्होंने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की से कई बार बात की है और इस संघर्ष को समाप्त करने में मदद करने वाले सभी वास्तविक प्रयासों का समर्थन करने की भारत की इच्छा को रेखांकित किया.
अगर आप मोटे तौर पर देखेंगे तो पृथ्वी के उत्तरी गोलार्द्ध में स्थित ज्यादातर देश विकसित हैं और संपन्न है, जबकि पृथ्वी के दक्षिणी गोलार्ध में स्थित ज्यादातर देश अविकसित अथवा विकासशील हैं और गरीबी से जूझ रहे हैं. यानी एक तरह का एक छिपा हुआ डिवाइड है जो विकसित और अविकसित देशों के बीच लाइन खींचता है. इसकी कोई तय परिभाषा नहीं है लेकिन उत्तरी गोलार्ध में विकसित देशों के समूह के लिए ग्लोबल नॉर्थ, जबकि दक्षिणी गोलार्ध में स्थित विकासशील या विकसित देशों के लिए ग्लोबल साउथ शब्द का इस्तेमाल किया जाता है.
1960 के दशक में पनपा ‘ग्लोबल साउथ’ शब्द आम तौर पर लैटिन अमेरिका, एशिया, अफ्रीका और ओशिनिया के क्षेत्रों के लिए इस्तेमाल किया जाता है. खासकर इसका मतलब, यूरोप और उत्तरी अमेरिका के बाहर, दक्षिणी गोलार्द्ध और भूमध्यरेखीय क्षेत्र में स्थित ऐसे देशों से है जो ज्यादातर कम आय वाले हैं और राजनीतिक तौर पर भी पिछड़े हैं. ज्यादातर ‘ग्लोबल साउथ’ देश औद्योगीकरण वाले विकास की दौड़ में पीछे रह रह गए. इनका उपनिवेश वाले देश के पूंजीवादी और साम्यवादी सिद्धांतों के साथ विचारधारा का भी टकराव रहा है.
दरअसल वैश्विक एजेंडे में आर्थिक और सामाजिक रूप से पिछड़े देशों की आवाज हर बार अनकही और अनसुनी रह जा रही है और ये देश लगातार पिछड़ते जा रहे हैं. अगर हाल ही की विकासात्मक बाधा को देखें तो हम पाएंगे कि कोविड महामारी, रूस-यूक्रेन युद्ध के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन मुख्य भूमिका में हैं. वैश्विक संसाधनों तक अपर्याप्त पहुंच और अंतर्राष्ट्रीय राजनीति पर अमेरिका का हावी होना और चीन की कर्ज-जाल वाली नीतियां भी इसके लिए जिम्मेदार हैं.
ग्लोबल साउथ और जियो-पॉलिटिक्स की बात करें तो दुनिया की एक बड़ी आबादी दक्षिणी विश्व में रहती है और इन देशों में प्राकृतिक संसाधन भी अधिक हैं, लेकिन फिर भी वैश्विक नीतियां और योजनाएं बहुत हद तक ग्लोबल नॉर्थ द्वारा ही निर्धारित की जाती हैं. अगर जी20 को देखा जाये तो इसमें ‘ग्लोबल नॉर्थ’ और ‘ग्लोबल साउथ’ दोनों समूहों के देश शामिल हैं, लेकिन ग्लोबल नॉर्थ के देशों की संख्या ज्यादा होने के नाते ग्लोबल साउथ की समस्याएं इस मंच पर भी अब तक अनसुनी रह गयी हैं.
ऐसे में जब भारत जी-20 का अध्यक्ष बना है तो यह G20 की अध्यक्षता को न केवल देश बल्कि विश्व हित में भुनाना चाहता है. इसी सपने को साकार करने के लिए भारत ने ग्लोबल साउथ की आवाज बनने का जिम्मा लिया है. अभी हाल ही में बीते 12 जनवरी को भारत की अगुवाई में हुआ ‘वॉयस ऑफ ग्लोबल साउथ शिखर सम्मेलन” इसका बड़ा उदाहरण है. इस ग्लोबल साउथ समिट के दौरान उन तमाम मुद्दों पर चर्चा हुई जो इसके विकास के लिए अहम हैं. इस दो दिवसीय वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट में 120 से अधिक विकासशील देशों की भागीदारी देखी गई. जिसके चलते इसे दक्षिणी विश्व का सबसे बड़ा ऐतिहासिक सम्मलेन कहा जा रहा है. वॉयस ऑफ द ग्लोबल साउथ समिट को विकासशील देशों के लिए चिंताओं, दृष्टिकोणों और प्राथमिकताओं को साझा करने का एक मंच कह सकते हैं.
समकालीन वैश्विक राजनीति में भारत सक्रिय भूमिका में हैं. इसके उदाहरण के तौर पर मोटा अनाज वर्ष और योग दिवस के साथ-साथ सौर ऊर्जा और अन्य जलवायु परिवर्तन से संबंधित योजनाओं की लोकप्रियता को देख जा सकता है. इस अवसर का प्रयोग दुनियादारी के हित में किया जाना जरुरी है. दरअसल ग्लोबल साउथ भारत की वर्तमान G20 अध्यक्षता का एक महत्वपूर्ण फोकस है. जिसके तहत भारत लगातार ग्लोबल साउथ के मुद्दों को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर उठाने का प्रयास कर रहा है. भारत अपनी मौजूदा जी20 अध्यक्षता के साथ ग्लोबल साउथ के विकास की पृष्ठभूमि भी तैयार कर रहा है, जो आने वाले समय में ग्लोबल साउथ के विजन को और मजबूत करेगा क्योंकि भारत के बाद, G20 की अध्यक्षता मैक्सिको और फिर दक्षिण अफ्रीका करेगा और ये दोनों देश ग्लोबल साउथ का हिस्सा हैं. भारत ने इससे पहले भी इस तरह के सहयोग की कई पहलें की है …. जैसे वैक्सीन के लिए पड़ोसी देशों को प्राथमिकता देना, बौद्धिक अधिकारों वाले व्यापार में छूट देकर कोविड के उपचार तक पहुंच सुनिश्चित करना, BRICS को विकास केंद्रित बनाना इसके प्रमुख उदाहरण हैं
पीएम मोदी फ्रांस के लिए रवाना हो चुके हैं. ग्लोबल साउथ के सवाल के साथ चीन की ‘आक्रामकता’ के बारे में पूछे गए एक सवाल पर फ्रांसीसी समाचार पत्र ‘लेस इकोस’ को दिए साक्षात्कार में उन्होंने कहा कि भारत हमेशा वार्ता और कूटनीति के माध्यम से मतभेदों के शांतिपूर्ण समाधान और सभी देशों की संप्रभुता का सम्मान करने का पक्षधर रहा है. चीन के बारे में यह पूछे जाने पर कि क्या रक्षा क्षमताओं में उसके भारी निवेश से क्षेत्र की सुरक्षा को खतरा है, मोदी ने कहा कि भारत जिस भविष्य का निर्माण करना चाहता है, उसके लिए शांति जरूरी है
उन्होंने कहा, “हिंद-प्रशांत क्षेत्र में हमारे हित व्यापक हैं और हमारे संबंध गहरे हैं. मैंने इस क्षेत्र के लिए हमारे दृष्टिकोण का एक शब्द में वर्णन किया है – सागर, जो इस क्षेत्र में सभी के लिए सुरक्षा और विकास से जुड़ा है. हम जिस भविष्य का निर्माण करना चाहते हैं, उसके लिए शांति जरूरी है, लेकिन यह सुनिश्चित नहीं है. उन्होंने कहा कि भारत संबंधित अंतरराष्ट्रीय कानूनों और नियम आधारित अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था का समर्थन करता है. पीएम मोदी ने कहा, “आपसी विश्वास और भरोसे को बनाए रखने के लिए यह पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण है. हमारा मानना है कि इसके माध्यम से ही स्थायी क्षेत्रीय और वैश्विक शांति और स्थिरता की दिशा में सकारात्मक योगदान दिया जा सकता है.”
आपको बताएं कि, पीएम मोदी 14 जुलाई को फ्रांस में बैस्टिल दिवस समारोह में विशिष्ट अतिथि होंगे. इसमें भारतीय सेना के तीनों अंगों की एक टुकड़ी भी हिस्सा ले रही है. इस यात्रा के दौरान फ्रांस के साथ सामारिक, वैज्ञानिक, अकादमिक और आर्थिक सहयोग जैसे विविध क्षेत्रों में भविष्य के सहयोग का रास्ता तलाशने पर भी चर्चा होगी. इसमें रक्षा, अंतरिक्ष, कारोबार एवं निवेश के क्षेत्र शाामिल हैं. बैस्टिल दिवस समारोह में हिस्सा लेने के लिए भारतीय सशस्त्र बलों की 269 सदस्यीय तीनों सेनाओं की टुकड़ी दो सी-17 ग्लोबमास्टर विमानों में सवार होकर बृहस्पतिवार को पेरिस के लिए रवाना हुई थी. इसमें फ्रांसिसी लड़ाकू विमानों के साथ भारतीय वायु सेना के कम से कम तीन राफेल लड़ाकू विमान भी हिस्सा लेंगे. इससे पूर्व उन्होंने क फ्रांसीसी न्यूज एजेंसी को साक्षात्कार दिया.
Dhyeya IAS के लेख के साथ.
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