मणिपुर में हिंसा कम होने का नाम ले रही. हालात ऐसे उत्पन्न हो गए हैं की उपद्रवियों को देखते ही गोली मारने का आदेश जारी कर दिया गया है. ट्रेनें बंद हैं, इंटरनेट सेवाएं ठप हैं. अगर इन सब की वजह ढूंढने की कोशिश जाए तो सबसे पहले नाम ‘मैतेई समुदाय’ का आएगा जिसकी मांग पर मणिपुर हिंसा की आग में झुलस रहा है.
इस पूरी हिंसा की वजह मणिपुर हाई कोर्ट का एक आदेश था. इस आदेश में हाई कोर्ट ने सरकार को निर्देश दिया था कि वह 10 साल पुरानी सिफारिश को लागू करे जिसमें गैर-जनजाति मैतेई समुदाय को जनजाति में शामिल करने की बात कही गई थी.
हाई कोर्ट के इस आदेश के बाद इंफाल घाटी में स्थित मैतेई और पहाड़ी इलाकों में रहने वाले कुकी समुदाय के बीच हिंसा भड़क उठी. मैतेई मणिपुर में प्रमुख जातीय समूह है और कुकी सबसे बड़ी जनजातियों में से एक है.
मणिपुर में 16 जिले हैं. राज्य की जमीन इंफाल घाटी और पहाड़ी जिलों के तौर पर बंटी हुई है. इंफाल घाटी मैतेई बहुल हैं. मैतई जाति के लोग हिंदू समुदाय से ताल्लुक रखते हैं. पहाड़ी जिलों में नागा और कुकी जनजातियों का वर्चस्व है. हालिया हिंसा चुराचांदपुर पहाड़ी जिलों में ज्यादा देखी गई. यहां पर रहने वाले लोग कुकी और नागा ईसाई हैं. बता दें कि चार पहाड़ी जिलों में कुकी जाति का प्रभुत्व है. मणिपुर की आबादी लगभग 28 लाख है. इसमें मैतेई समुदाय के लोग लगभग 53 फीसद हैं. मणिपुर के भूमि क्षेत्र का लगभग 10% हिस्सा इन्हीं लोगों के कब्जे में हैं. ये लोग मुख्य रूप से इंफाल घाटी में बसे हुए हैं. कुकी जातीय समुह मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देने का विरोध कर रही है.
कुकी जातीय समुह में कई जनजातियाँ शामिल हैं. मणिपुर में मुख्य रूप से पहाड़ियों में रहने वाली विभिन्न कुकी जनजातियाँ वर्तमान में राज्य की कुल आबादी का 30 फीसद हैं. कुकी जनजाति मैतेई समुदाय को आरक्षण देने का विरोध करती आई है. इन जनजातियों का कहना है कि अगर मैती समुदाय को आरक्षण मिल जाता है तो वे सरकारी नौकरियों और शैक्षणिक संस्थानों में दाखिले से वंचित हो जाएंगे.
कुकी जनजातियों का ऐसा मानना है कि आरक्षण मिलते ही मैतेई लोग अधिकांश आरक्षण को हथिया लेंगे. बता दें कि अनुसूचित जनजाति मांग समिति मणिपुर बीते 10 सालों से राज्य सरकार से आरक्षण की मांग कर रहा है. किसी भी सरकार ने इस मांग को लेकर अबतक कोई भी फैसला नहीं सुनाया. आखिरकार मैतेई जनजाति कमेटी ने कोर्ट का रुख किया. कोर्ट ने इस मांग को लेकर राज्य सरकार से केंद्र से सिफारिश करने की बात कही है. इस सिफारिश के बाद ऑल ट्राइबल स्टूडेंट्स यूनियन मणिपुर ने विरोध जताना शुरू कर दिया.
बता दें कि मैतेई ट्राइब यूनियन की एक याचिका पर 19 अप्रैल को सुनवाई हुई थी. सुनवाई पूरी होने के बाद 20 अप्रैल को मणिपुर हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने की बात कही. मामले में कोर्ट ने 10 साल पुरानी केंद्रीय जनजातीय मामलों के मंत्रालय की सिफरिश पेश करने के लिए कहा था. सुनवाई में कोर्ट ने मई 2013 में जनजाति मंत्रालय के एक पत्र का हवाला दिया था. इस पत्र में मणिपुर की सरकार से सामाजिक और आर्थिक सर्वे के साथ जातीय रिपोर्ट के लिए कहा गया था.
बता दें कि शिड्यूल ट्राइब डिमांड कमिटी ऑफ मणिपुर यानी एसटीडीसीएम 2012 से ही मैतेई समुदाय को जनजाति का दर्जा देने की मांग करता आया है. हाईकोर्ट में याचिकाकर्ताओं ने ये बताया कि 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ. उससे पहले मैतेई को जनजाति का दर्जा मिला हुआ था. दलील ये थी कि मैतेई को जनजाति का दर्जा इस समुदाय, उसके पूर्वजों की जमीन, परंपरा, संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए जरूरी है.
मणिपुर उच्च न्यायालय ने 20 अप्रैल को राज्य सरकार को निर्देश दिया था कि वह मैतेई समुदाय को अनुसूचित जनजाति की लिस्ट में शामिल करने के अनुरोध पर चार सप्ताह के भीतर विचार करें. कोर्ट ने कहा कि सिफारिश को केंद्र के पास विचार के लिए भेजा जाए. मेइती को एसटी श्रेणी में शामिल करने के कदम के विरोध में कुकी संगठनों ने बुधवार को ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ निकाला. मार्च के बाद हिंसा भड़क गई.
विरोध के पीछे मुख्य कारण यह था कि मेइती एसटी का दर्जा चाहते थे. सवाल ये उठने लगा कि उन्नत होने के बावजूद उन्हें एसटी का दर्जा कैसे मिल सकता है? ऑल मणिपुर ट्राइबल यूनियन के महासचिव केल्विन नेहसियाल ने इंडिया टुडे को बताया कि अगर उन्हें एसटी का दर्जा मिलता है तो वे हमारी सारी जमीन ले लेंगे. मीडीया रिपोर्ट्स के मुताबिक विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि अगर मैतेई समुदाय को एसटी का दर्जा दे दिया गया तो उनकी जमीनें पूरी तरह से खतरे में पड़ जाएंगी और इसीलिए वो अपने अस्तित्व के लिए छठी अनुसूची चाहते हैं.