नई संसद में पहुंचने के साथ ही मोदी सरकार के कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने महिला आरक्षण बिल ‘नारी शक्ति वंदन अधिनियम’ को लोकसभा में पेश किया. इस बिल को कैबिनेट ने सोमवार को अपनी मंजूरी दे दी थी. यह बिल 2024 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए नरेंद्र मोदी सरकार का ‘मास्टरस्ट्रोक’ है. इस बिल के जरिये पीएम मोदी ने देश की आधी आबादी को साधने की कोशिश की है. इस बिल को लोकसभा में पेश करते हुए कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने बताया कि इस बिल के कानून बनते ही लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीट आरक्षित हो जाएंगे.
इस बिल के प्रावधानों के अनुसार लोकसभा की 543 सीट में से 181 अब महिलाओं के लिए आरक्षित होगी. कानून मंत्री ने बताया कि आरक्षण का प्रावधान 15 वर्षों के लिए लागू रहेगा. उसके बाद इसकी अवधि बढ़ाने पर फैसला संसद को करना होगा. यह संविधान का 128वां संशोधन विधेयक है. ‘नारी शक्ति वंदनअधिनियम’ के तहत एससी-एसटी वर्ग की महिलाओं के लिए अलग से आरक्षण की व्यवस्था नहीं होगी. लेकिन जो सीटें एससी-एसटी वर्ग के लिए आरक्षित हैं उनमें से 33 प्रतिशत अब महिलाओं के लिए आरक्षित होंगी. वहीं ओबीसी महिलाओं के लिए बिल में अलग से आरक्षण की कोई व्यवस्था नहीं है. उन्हें अनारक्षित सीटों पर ही चुनाव लड़ना होगा.
महिला आरक्षण विधेयक को पेश किए जाने से पहले प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि उनकी सरकार लोकसभा एवं राज्य विधानसभाओं में महिला आरक्षण के प्रावधान वाले ‘नारीशक्ति वंदन विधेयक’ को कानून बनाने के लिए संकल्पबद्ध है. उन्होंने नये संसद भवन में कार्यवाही के पहले दिन लोकसभा में अपने वक्तव्य में यह भी कहा कि महिला आरक्षण विधेयक पहले भी कई बार संसद में पेश किया जा चुका है, लेकिन महिलाओं को अधिकार देने, उनकी शक्ति का उपयोग करने के इस काम के लिए…….ईश्वर ने ऐसे कई पवित्र कार्यों के लिए मुझे चुना है.
महिला आरक्षण बिल की यात्रा 27 साल पुरानी है और तब से महिलाएं अपनी इस मांग को पूरा करवाने के लिए जूझ रही हैं. सबसे पहले सितंबर 1996 में एचडी देवगौड़ा की सरकार ने संसद में पेश किया था. उसके बाद आने वाली हर सरकार ने इस पेश को संसद में पेश किया और पास करवाने की कोशिश की, लेकिन यह बिल पास नहीं हो सका. 2010 में यह विधेयक राज्यसभा से पारित भी हुआ था, लेकिन राजनीतिक इच्छाशक्ति की कमी की वजह से यह बिल लोकसभा से पारित नहीं हो सका. 1996 में यह एक आश्चर्यजनक कदम था, जनता दल के कई नेता और सत्तारूढ़ गठबंधन के अन्य घटक इसके पक्ष में नहीं थे. अगले दिन विधेयक को सीपीआई की गीता मुखर्जी की अध्यक्षता वाली एक संयुक्त समिति को भेजा गया.
राजीव गांधी ने सबसे पहले 1987 में एक कमेटी गठित कर चुनावों में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए सुझाव मांगे थे. मारर्गेट अल्वा इस कमेटी की अध्यक्ष थी और उन्होंने आरक्षण की सिफारिश की थी. उसके बाद राजीव गांधी ने पंचायतों और नगरपालिकाओं में महिलाओं को आरक्षण देने संबंधी विधेयक संसद में पेश किया था, जिसे पारित नहीं करवाया जा सका. बाद में नरसिम्हा राव की सरकार ने पंचायतों में महिलाओं को आरक्षण देने का कानून बनाया.
अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार में 1998 में महिला आरक्षण बिल लोकसभा में पेश किया गया, लेकिन संख्या बल की कमी की वजह से यह बिल पास नहीं हो सका था. उस वक्त राजद के सांसद ने बिल को कानून मंत्री के हाथ से छीनकर फाड़ दिया था. इस बिल में पिछड़ा वर्ग की महिलाओं और मुस्लिम महिलाओं के लिए भी आरक्षण की मांग की गयी थी. पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में कई बार महिला आरक्षण विधेयक पेश किया गया, लेकिन उसे पार कराने के लिए आंकड़े नहीं जुटा पाए और वह सपना अधूरा रह गया.
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