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Women’s Day 2021 : अपने हौसले और जज्बे से सपनों की उड़ान भरती इन महिलाओं को जानते हैं आप?

international women's day : आज दिन है महिलाओं का, उन हौसलों और इरादों को सैल्यूट करने का जिनके बल पर महिलाओं ने इस समाज में अपने लिए जगह बनायी है. कई महिलाएं बहुत ही कम संसाधनों में भी मिसाल कायम कर देती हैं और दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बनती हैं, तो आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ महिलाओं के बारे में

international women’s day : आज दिन है महिलाओं का, उन हौसलों और इरादों को सैल्यूट करने का जिनके बल पर महिलाओं ने इस समाज में अपने लिए जगह बनायी है. कई महिलाएं बहुत ही कम संसाधनों में भी मिसाल कायम कर देती हैं और दूसरों के लिए प्रेरणास्रोत बनती हैं, तो आइए जानते हैं ऐसी ही कुछ महिलाओं के बारे में

रसोई गैस वेंडर की बेटी बनीं मरीन इंजीनियर

वक्त और हालात कब किसका साथ छोड़ दें और कब किसकी किस्मत चमका दें, यह कहना मुश्किल है. बिहार के गया जिला निवासी 24 वर्षीया नीलोफर यास्मीन इसका जीवंत उदाहरण है. उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बावजूद कभी ढंग की जॉब न मिलने की वजह से कुंठित हो रही नीलोफर आज बिहार की पहली मरीन इंजीनियर के रूप में नीदरलैंड की राजधानी एमस्टरम में में ट्रेनिंग ले रही हैं.

रसोई गैस वेंडर पिता और गृहिणी मां की तीन संतानों में से एक नीलोफर ने कभी सपने में भी नहीं सोचा था कि उनकी किस्मत उन्हें अपने देश से इतनी दूर समुद्र की लहरों के बीच चुनौतियों का सामना करने और उसकी पहेलियों से रूबरू होने का मौका देगी.

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वर्ष 2017 में कलकत्ता से बीटेक करने के बाद नीलोफर जॉब की तलाश कर ही रही थीं कि उन्हें सिनर्जी ग्रुप के द्वारा आयोजित कंपीटिटिव एक्जाम में बैठीं और अपनी मेहनत व प्रतिभा के दम पर बतौर मरीन इंजीनियर सेलेक्ट हुईं. फिलहाल वह नॉड कोलंबिया शिप पर कुल 22 पुरुषों के बीच एक अकेली महिला फोर्थ मरीन इंजीनियर के रूप में नियुक्त हैं.

सिनर्जी ग्रुप के फाउंडर और सीइओ कैप्टन राजेश उन्नी की मानें, तो ‘मेरीटाइम क्षेत्र अब तक मेल डोमिनेटेड ही रहा है. वैश्विक स्तर पर मात्र 2 % महिलाएं ही इस क्षेत्र में शामिल हैं और उनमें से भी उच्च पदों पर 1% से भी कम हैं. हमारा उद्देश्य इस क्षेत्र में महिलाओं की संख्या को बढ़ा कर जेंडर गैप को कम करना है. बिहार में प्रतिभाओं की कमी नहीं है. इसी वजह से हमने यहां अपना सेंटर स्थापित किया है.’

2013 से ऑटो चला रही हैं गुड़िया सिन्हा

ऑटो ड्राइविंग का काम ज्यादातर पुरुषों का माना जाता है लेकिन इस क्षेत्र में महिलाएं भी अपनी सहभागिता निभा रही हैं. गुड़िया सिन्हा साल 2013 से ऑटो चला रही है. इस क्षेत्र में आने का कारण पारिवारिक परिस्थिति होने के साथ-साथ अपनी एक अलग पहचान बनाना था. ड्राइविंग की शुरुआत पटना जंक्शन से हुई थी, उस वक्त काफी परेशानी का सामना करना पड़ा. वहां के ऑटो ड्राइवर काफी नाराज हुए और कहने लगे कि आप हमारे पेट पर लात मारने आयी है. फिर भी कुछ दिनों तक वहां पर ड्राइविंग किया. अब एयरपोर्ट परिसर में मौजूद अन्य ऑटो चालकों के साथ गाड़ी चला रही है. हालांकि यहां भी कुछ ही महिला ऑटो ड्राइवर रह गयी है. ऑटो स्टैंड के लिए जगह नहीं है ऐसे में एयरपोर्ट से पहले पैसेंजर लेती है फिर बाहर ऑटो तक आती है. दिक्कत तब आती है जब पैसेंजर चलने के बाद ऑटो किराया कम करने के लिए लड़ाई करते हैं. यही नहीं ऑटो चलाते वक्त कई पुरुष ड्राइवर ओवरटेक कर गंदी बातें बोल कर चले जाते हैं.

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अब हम भी पलट कर जवाब देना सीख गयी है. कई अच्छे ड्राइवर भी है जो हमें प्रोत्साहित भी करते हैं. वॉशरूम की दिक्कत हमेशा बनीं रहती है. एयरपोर्ट परिसर में वॉशरूम की सुविधा है लेकिन अन्य जगहों पर महिलाओं के लिए कोई सुविधा नहीं है. सरकार की ओर से हम ऑटो ड्राइवर के लिए कोई खास सुविधाएं नहीं मिलती है, यही कारण है कि कोरोना के बाद महिला ड्राइवर की संख्या कम हुई है. पेट्रोल के दाम बढ़ जाने के बाद परेशानी भी बढ़ी है.

संयुक्त राष्ट्र के नये सलाहकार समूह में शामिल हुई अर्चना सोरेंग

पटना वीमेंस से पासआउट हो चुकी अर्चना सोरेंग का चयन संयुक्त राष्ट्र महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने अपने नये सलाहकार समूह में शामिल किया है. इस यूथ एडवाइजरी समूह में युवा नेता शामिल हैं जो कोविड 19 के दौरान बिगड़ते जलवायु संकट से निपटने के लिए दृष्टिकोण और समाधान प्रदान करेंगे. यूथ एडवाइसरी ग्रुप ऑन क्लामेट चेंज के अंतर्गत अर्चना समेत अलग-अलग देशों से छह युवाओं का चयन किया गया है.

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अर्चना बताती हैं कि वे 2019 में यूएन के यौंगो(यूथ कॉन्सीट्वेंस ऑफ यूएनएफ सीसीसी) से जुड़ी हुई है. तब से लेकर अब तक उनकी लेखनी नेशनल और इंटरनेशनल यूथ वेबसाइट पर आती रही हैं. वे रीजनल और नेशनल लेवल पर युवा समूहों से जुड़ी हुई है. वे समुदाय से पारंपरिक जानकारियों को संरक्षित करने के साथ-साथ उसे प्रमोट करती हैं. वहीं उन्होंने 66 वां सीइएससीआर(कमेटी ऑन इकोनॉमिक, सोशल एंड कल्चरल राइट्स) के डिस्कशन में जीनेवा में अपना प्रेजेंटेशन दिया था. वह भारत से इकलौती प्रतिभागी थी. साल 2020 जून में यूथ एडवाइजरी समूह की चयन की प्रक्रिया शुरू हुई. उस वक्त यौंगो की ओर से 40 प्रतिभागियों में तीन लोगों का नाम प्रस्तावित किया जिसमें अर्चना का नाम शामिल था. फिर यूएन की टीम ने उनका नाम सात फाइनलिस्ट में चयन किया. जिसका रिजल्ट 27 जुलाई को जारी किया गया.

पिछले साल 12 दिसंबर को यूनाइटेड नेशन, यूनाइटेड किंगडम, फ्रांस, चिली और इटली के सहयोग से आयोजित क्लाइमेट एम्बिशन समिट का हिस्सा बनीं. यूनाइटेड नेशन समिट ऑन बायोडायवर्सिटी में उन्होंने यूथ रिप्रेंसटेटिव के तौर पर जेनरल एसंबली में प्रेसिडेंट के सामने अपना प्रेजेंटेशन ऑनलाइन दिया था.वहीं इसी साल फरवरी में उन्होंने ग्लोबल यूथ आउटरीच आउटकम रिपोर्ट की प्रस्तुति यूएन सेक्रेटरी जेनरल के समक्ष रखा था.

(इनपुट : रचना प्रियदर्शिनी, जूही स्मिता)

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