राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) ने टेरर फंडिंग मामले में यासीन मलिक (प्रतिबंधित जम्मू-कश्मीर लिबरेशन फ्रंट के प्रमुख) के लिए मौत की सजा की मांग करते हुए दिल्ली उच्च न्यायालय का रुख किया है. आपको बताएं कि ट्रायल कोर्ट ने पिछले साल यासीन मलिक को उम्रकैद की सजा सुनाई थी.
National Investigation Agency (NIA) moves Delhi High Court seeking death penalty for Yasin Malik (chief of the banned Jammu and Kashmir Liberation Front) in terror funding case. Trial Court sentenced him to life imprisonment last year.
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— ANI (@ANI) May 26, 2023
आपको बाताएं जम्मू-कश्मीर लिब्रेशन फ्रंट के प्रमुख यासीन मलिक को दिल्ली की स्पेशल एनआईए कोर्ट ने 2017 टेरर फंडिंग केस में उम्र कैद की सजा सुनाई थी. यासीन मलिक मूल रूप से श्रीनगर का ही रहने वाला है और उसपर 4 एयरफोर्स जवानों की हत्या समेत कई गंभीर आरोप हैं. यासीन मलिक का नाम पूर्व में कश्मीर में हिंसा की तमाम साजिशों में शामिल रहा है. इसके अलावा उसे 1990 में कश्मीरी पंडितों के पलायन के प्रमुख जिम्मेदार के रूप में जाना जाता है.
3 अप्रैल 1966 को श्रीनगर के मायसूमा इलाके में जन्मे यासीन मलिक के पिता गुलाम कादिर मलिक यहां एक सरकारी बस चलाया करते थे. यासीन मलिक की पढ़ाई श्रीनगर में हुई है और वह यहां के प्रताप कॉलेज का स्टूडेंट रहा है. यासीन मलिक के परिवार के तमाम लोग अब विदेश में रहते हैं और वो लंबे वक्त से दिल्ली की तिहाड़ जेल में बंद है. 1980 के दशक में यासीन मलिक ने आतंक का रास्ता थामा था और ताला पार्टी नाम का एक राजनीतिक संगठन बनाया था. सबसे पहले यासीन मलिक का नाम 1983 के इंडिया वेस्ट इंडीज मैच के दौरान गड़बड़ी करने के आरोप में सामने आया था. इसके बाद 1984 में वह पहली बार जेकेएलएफ के चीफ मकबूल भट की फांसी के बाद इस संगठन के लिए खुलकर सामने आया.
मकबूल भट सोपोर (बारामूला) का रहने वाला था और यासीन को उसके करीबियों में जाना जाता था. 1984 में जब कश्मीरी पंडित जज नीलकंठ गंजू की कोर्ट ने उसे फांसी की सजा सुनाई, तो यासीन मलिक ने इसका जमकर विरोध किया. यासीन मलिक की ताला पार्टी ने कश्मीर में मकबूल भट को फांसी देने के फैसले के खिलाफ पोस्टर लगाए और प्रदर्शन किए. इस आरोप में यासीन को जेल भेज दिया गया. 1986 में यासीन मलिक ने जेल से निकलकर ताला पार्टी का नाम इस्लामिक स्टूडेंट लीग कर दिया और इससे कश्मीरी स्टूडेंट को जोड़ने की शुरुआत की. कुछ वक्त में इस्लामिक स्टूडेंट लीग का संगठन बड़ा हो गया और इसके साथ अशफाक वानी, जावेद मीर और अब्दुल हमीद शेख जैसे नाम भी जुड़े. अशफाक वानी का नाम 1989 के दौरान उस वक्त देश भर ने जाना जब उसने गृहमंत्री मुफ्ती मोहम्मद सईद की बेटी का अपहरण किया.
रुबैया के अपहरण की घटना के बाद जनवरी 1990 में यासीन मलिक ने श्रीनगर में साथियों के साथ मिलकर 4 एयरफोर्स जवानों की हत्या की. इसी साल मार्च में यासीन मलिक के साथी अशफाक वानी को मार गिराया गया. इसके बाद अगस्त में यासीन को घायल हालत में गिरफ्तार किया गया. यासीन मलिक की गिरफ्तारी के बाद करीब 4 साल बाद उसे जमानत पर रिहा किया गया. मई 1994 में रिहा हुए यासीन मलिक ने सीजफायर का ऐलान किया और कहा कि उसने गांधीवाद का रास्ता चुन लिया है.
साल 2016 में कश्मीर घाटी की हिंसा के दौरान पत्थरबाजी पर निर्णायक कार्रवाई करते हुए सरकार ने टेरर फंडिंग केस की जांच शुरू की. इस मामले में 2017 में यासीन मलिक को भी आरोपी बनाया गया. एनआईए की जांच के दौरान यासीन के खिलाफ कई अहम सबूत भी मिले. इसके अलावा कश्मीर समेत घाटी के कई इलाकों में उसकी अवैध संपत्तियों का पता भी चला था. इसी मामले में 25 मई 2022 को अदालत में स्पेशल जज NIA प्रवीण सिंह ने उसे उम्रकैद की सजा सुनाई है.