एम वेंकैया नायडू, उपराष्ट्रपति
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अत्यंत अहम है परिवार प्रणाली
एम वेंकैया नायडू, उपराष्ट्रपति delhi@prabhatkhabar.in यदि परंपरागत भारतीय समाज के केंद्र में कोई एक योजक शक्ति, इकलौता ऐसा सामर्थ्यवान तंतु है, जो सदियों से हमारी विविधताभरी, समृद्ध सामाजिक संरचना को एक वितान में बुनता आया है, तो वह हमारी परिवार प्रणाली ही है. प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में परिवार स्वयं में ही एक […]
यदि परंपरागत भारतीय समाज के केंद्र में कोई एक योजक शक्ति, इकलौता ऐसा सामर्थ्यवान तंतु है, जो सदियों से हमारी विविधताभरी, समृद्ध सामाजिक संरचना को एक वितान में बुनता आया है, तो वह हमारी परिवार प्रणाली ही है.
प्राचीन काल से ही भारतीय समाज में परिवार स्वयं में ही एक संस्था तथा भारत की सामूहिक संस्कृति का सुंदर प्रतीक रहा है. हमारे घर-परिवार पर शहरीकरण तथा पाश्चात्य प्रभाव का मिश्रित असर पड़ने तक संयुक्त परिवार प्रणाली अथवा एक विस्तारित परिवार भारतीय संस्कृति की एक अहम विशेषता बना रहा.
अब खासकर, शहरी क्षेत्रों में एकल परिवार का चलन निकल पड़ा है और बेशक इसमें सामाजिक-आर्थिक कारकों की अपनी भूमिका रही है. मुझे दुख के साथ यह महसूस होता है कि पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तांतरित होनेवाले हमारे सांस्कृतिक मूल्यों, परंपराओं तथा रीतियों के संरक्षण में संयुक्त परिवार प्रणाली की अहम भूमिका को आधुनिक जीवन शैली गंभीर नुकसान पहुंचा रही है. पर हम भारतीय इस मामले में दूसरों से अब भी बेहतर हैं, क्योंकि ‘वसुधैव कुटुंबकम’ की अवधारणा हमारे डीएनए में ही निहित है.
संभवतः आज के युवा यह समझते हैं कि वे दो विरोधी दुनिया के बीच फंसे हैं. यह तो साफ है कि संयुक्त तथा एकल दोनों परिवारों के गुणावगुण के विषय में काफी कुछ कहा जा सकता है. बदलते वक्त के साथ ही समाज विकसित हुआ करते हैं और सभी को चाहिए कि वे किसी भी ऐसी प्रक्रिया का स्वागत करें, जो प्रगतिशील प्रथाओं तथा व्यवहारों को प्रचलित करती है.
बाल विवाह, दहेज प्रथा, महिलाओं के विरुद्ध हिंसा एवं अंधविश्वासगत प्रथाओं जैसी प्रतिगामी सामाजिक समस्याओं की जकड़ से मुक्त होने हेतु शिक्षा के द्वारा महिलाओं की मुक्ति आवश्यक है. महिलाओं को इस हेतु भी प्रोत्साहित किया जाना चाहिए कि वे पुरुषप्रधान समाज के प्रतिरोध के बावजूद, अंधविश्वासों और उनसे संबद्ध प्रथाओं से संघर्ष में अगले मोर्चे पर रहें.
संयुक्त परिवार प्रणाली के फायदों में एक प्रमुख यह है कि यह बच्चों को सुरक्षा बोध प्रदान करते हुए भाई-बहनों तथा परिवार के अन्य सदस्यों के बीच एक मजबूत लगाव पैदा करती है. ऐसा यकीन किया जाता है कि जो बच्चे एक विस्तारित परिवार में दादा-दादी, चाचा-चाचियों तथा चचेरे भाई-बहनों के बीच बड़े होते हैं, वे साझा करने, ख्याल रखने, परानुभूति तथा समझदारी के गुण भी पा जाते हैं.
साधारणतः, एकल परिवारों में ये फायदे नहीं मिला करते. हालांकि, संयुक्त परिवारों में सब कुछ सही नहीं होता और उनके हिस्से भी कुछ अवगुण तो आते हैं.बुजुर्गों का आदर और उनका ख्याल रखना भारतीय परिवार प्रणाली के केंद्रीय सिद्धांतों में एक है. यह दुखद है कि अब उन्हें वृद्धाश्रमों में रखने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है. इसके बहुत सारे कारण हो सकते हैं, पर मैं समझता हूं कि बुजुर्गों की अनदेखी करना दीर्घावधि में देश अथवा समाज के लिए अच्छा नहीं होगा.
जब मैं उनके साथ दुर्व्यवहारों की खबरें देखता हूं, तो मैं उद्वेलित हो जाता हूं. हालांकि, सरकार ने ऐसी घटनाओं से निपटने के लिए कानून बनाये हैं, मगर सबके द्वारा ऐसे सभी संभव प्रयास किये जाने चाहिए कि बुजुर्गों के सम्मान की हमारी मूल्य प्रणाली का क्षय न हो.
संयुक्त परिवार प्रणाली का एक अन्य प्रमुख लाभ यह है कि यदि किसी बच्चे के माता-पिता काम करनेवाले हैं, तो उसके दादा-दादी या चाची जैसे परिवार के अन्य सदस्य बच्चे की देख-रेख किया करते हैं.
किसी पालनाघर अथवा प्ले स्कूल में वक्त काटने की बजाय निकटस्थ परिजनों के समीप रहना उनके बचपन को कहीं अधिक यादगार और खुशनुमा बना देता है, जो किसी व्यक्ति के समग्र व्यक्तित्व निर्माण हेतु एक अहम कारक है. यह भी याद रखना चाहिए कि परिवार प्रणाली छोटी उम्र में ही एकता का मजबूत बंधन सृजित कर देती है, जो सामाजिक लगाव विकसित होने का रास्ता साफ करती है.
परिवार के वरीयजनों द्वारा साझा करने और ख्याल रखने की यही प्रवृत्ति उन्हें स्वतः ही इस हेतु प्रेरित करती है कि वे अपने बच्चों का भविष्य सुरक्षित करने हेतु बचत करें. इससे राष्ट्रीय अर्थव्यवस्था भी मजबूत होती है. परिवार प्रणाली के तहत एक रिक्शावाला भी अपनी शादी के पूर्व अपनी बहन की शादी करने की सोचता है.
जो बच्चे विस्तारित परिवार प्रणाली में बड़े होते हैं, वे न केवल सहनशीलता, धैर्य, दूसरों का नजरिया स्वीकार करने की लोकतांत्रिक प्रवृत्ति ग्रहण करते हैं, बल्कि अपने और चचेरे भाई-बहनों के साथ खेलते हुए खेल-भावना भी विकसित कर लेते हैं.
युगों पुरानी विभिन्न परंपराएं, प्रथाएं और रहन-सहन के तरीके परिवार प्रणाली से ही पैदा हुए हैं. दिसंबर 1989 में पारित प्रस्ताव के द्वारा संयुक्त राष्ट्र महासभा ने ‘अंतरराष्ट्रीय परिवार वर्ष’ मनाने की घोषणा की. 1993 में पारित एक अन्य प्रस्ताव के द्वारा इस महासभा ने प्रतिवर्ष 15 मई को ‘अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस’ के रूप में मनाने का फैसला किया.
संयुक्त राष्ट्र के अनुसार यह दिवस एक ऐसा मौका देता है, जिसका उपयोग परिवार से संबद्ध मुद्दों के प्रति चेतना को बढ़ावा देने के साथ ही परिवार पर असर डालनेवाली सामाजिक, आर्थिक तथा लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं की जानकारी बढ़ाने में किया जा सकता है.
इस वर्ष परिवार दिवस के विषय ‘परिवार और समावेशी समाज’ का उद्देश्य परिवार तथा पारिवारिक नीतियों द्वारा उस बुनियादी भूमिका पर जोर देना है, जो वे शांतिपूर्ण एवं समावेशी समाज और सतत विकास लक्ष्यों को बढ़ावा देने में अदा कर सकते हैं.
स्वस्थ तथा प्रसन्न समाज के निर्माण में परिवार की अहम भूमिका को संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1948 में अपनायी गयी मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणा ने भी मान्यता दी, जिसके एक अनुच्छेद में यह कहा गया है कि ‘परिवार समाज का का एक नैसर्गिक तथा बुनियादी समूह-इकाई है, जिसे समाज एवं राज्य द्वारा संरक्षण का हक हासिल है.’
वसुधैव कुटुंबकम की नीति अपनाकर परिवार एक सद्भावपूर्ण, समावेशी समाज के निर्माण की बुनियादी इकाई बन जाता है. परिवार व्यक्ति की विश्वदृष्टि को आकार दे सकता है, उसकी मूल्य प्रणाली का पोषण कर उसे मजबूती प्रदान करते हुए एक ऐसे टिकाऊ, शांतिपूर्ण, समावेशी तथा समृद्ध विश्व का ताना-बाना बन सकता है, जिसकी अभिलाषा हम आनेवाले वक्त के लिए रखते हैं.
(अनुवाद: विजय नंदन)
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