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रिजर्व बैंक के लाभ पर अधिकार!
डॉ अश्विनी महाजन एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू ashwanimahajan@rediffmail.com पिछले दिनों रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से रिजर्व बैंक पर दबाव बनाया जा रहा है कि वह अपने रिजर्व को केंद्र सरकार को स्थानांतरित कर दे. उन्होंने इसे खतरनाक माना. सवाल उठता है कि रिजर्व बैंक […]
डॉ अश्विनी महाजन
एसोसिएट प्रोफेसर, डीयू
ashwanimahajan@rediffmail.com
पिछले दिनों रिजर्व बैंक आॅफ इंडिया के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने कहा कि केंद्र सरकार की ओर से रिजर्व बैंक पर दबाव बनाया जा रहा है कि वह अपने रिजर्व को केंद्र सरकार को स्थानांतरित कर दे. उन्होंने इसे खतरनाक माना. सवाल उठता है कि रिजर्व बैंक के रिजर्व पर किसका अधिकार है. आरबीआई अधिनियम के अंतर्गत आरबीआई को केवल पांच करोड़ रुपये का रिजर्व फंड बनाना था.
साथ ही रिजर्व बैंक का बोर्ड बैंक की बैलेंस शीट को बनाने का अधिकार रखता है, लेकिन उसे इसके लिए केंद्र सरकार से अनुमति लेनी होगी. पिछले कुछ समय से आरबीआई एक्ट की धारा-47 के अंतर्गत आरबीआई बोर्ड ने अपनी परिसंपत्तियों के मूल्य में उतार-चढ़ाव और अचानक आनेवाले खर्चों को पूरा करने के लिए अपने अधीन एक आॅपरेशनल रिजर्व एंड रिवैल्यूशन खाता बना दिया.
जून 2018 तक रिजर्व बैंक के पास 9.63 खरब रुपये का रिजर्व हो गया, जो उसकी कुल परिसंपत्तियों का 28 प्रतिशत है. यह रिकॉर्ड है कि दुनियाभर में किसी भी देश के केंद्रीय बैंक के पास इतना बड़ा रिजर्व नहीं है.
भारतीय रिजर्व बैंक कोई सामान्य बैंक नहीं है और वाणिज्यिक बैंकों के विपरीत इसकी साख का जोखिम न के बराबर होता है. इसलिए केंद्रीय बैंक को रिजर्व रखने की जरूरत न्यूनतम है. आईएमएफ के पूर्व प्रमुख अर्थशास्त्री प्रो आॅलीवियर ब्लैनचर्ट का मानना है कि किसी भी देश का केंद्रीय बैंक ऋणात्मक अंश पूंजी पर भी चल सकता है. हालांकि, रिजर्व बैंक के बोर्ड ने जो रिजर्व रखे हुए हैं, इसकी पूर्व अनुमति केंद्र सरकार से ली ही नहीं गयी है, जो कानूनी रूप से जरूरी थी.
अंश पूंजी के संदर्भ में भी कोई फ्रेमवर्क तैयार नहीं किया गया है, यानी आरबीआई एक्ट के अनुसार रिजर्व बैंक को मात्र पांच करोड़ रुपये का रिजर्व फंड चाहिए, इसलिए बोर्ड को इस बारे में चर्चा करके किसी फैसले पर पहुंचना जरूरी है.
दुनियाभर में केंद्रीय बैंकों का लाभ उनकी सरकारों को दिया जाता है. कहा जा सकता है कि रिजर्व बैंक के जो रिजर्व हैं, उन पर हालांकि उनका कोई अधिकार नहीं है, लेकिन चूंकि इतने वर्षों में जो रिजर्व बनाये गये (चाहे उनके लिए केंद्र सरकार की अनुमति नहीं ली गयी हो), इन्हें सरकार को स्थानांतरित करने के नफा-नुकसान के बारे में चर्चा जरूर हो सकती है.
जाहिर है कि इतना सारा रिजर्व जब केंद्र सरकार को ट्रांसफर किया जायेगा, तो उसका असर मुद्रा स्फीति पर पड़ सकता है, इसलिए इस बात पर गौर किया जा सकता है. लेकिन समझना होगा कि सैद्धांतिक रूप से रिजर्व बैंक को एक ओर तो रिजर्व रखने की जरूरत नहीं है और दूसरे उसके द्वारा अर्जित लाभों पर उसका नहीं, बल्कि समाज का यानी सरकार का अधिकार है.
रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य की यह आपत्ति कि रिजर्व बैंक के रिजर्व को यदि सरकार को स्थानांतरित कर दिया जाता है, तो भारत का हाल अर्जेंटीना जैसा हो सकता है. वास्तव में यह बयान भ्रामक है, क्योंकि भारत और अर्जेंटीना के वित्तीय प्रबंधन में जमीन और आसमान का अंतर है. अर्जेंटीना विदेशी ऋणों के भुगतान में कई बार कोताही कर चुका है और उसकी वित्तीय साख बहुत नीचे गिर चुकी है. ऐसे में रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर का यह बयान देश की छवि को धूमिल करनेवाला है.
देश के कानूनों के हिसाब से भी केंद्रीय बैंक के पास पड़े किसी भी रिजर्व पर सरकार का ही अधिकार होता है. एक ओर तो इस रिजर्व फंड के लिए रिजर्व बैंक ने नियमानुसार केंद्र सरकार का अनुमोदन नहीं लिया, तो दूसरी ओर आरबीआई बोर्ड को इस बाबत जो नियम बनाने चाहिए थे, वे भी उसने नहीं बनाये.
रिजर्व बैंक की 2015 की वार्षिक रपट में यह कहा गया था कि रिजर्व बैंक अपनी अंश पूंजी के संदर्भ में एक फ्रेमवर्क बनायेगा, लेकिन ऐसा अभी तक हुआ नहीं है और खास बात यह है कि आरबीआई एक्ट के अनुसार रिजर्व बैंक को केवल पांच करोड़ के रिजर्व फंड की ही जरूरत है. रिजर्व बैंक बोर्ड को यह विचार करना होगा कि नियमों का पालन करते हुए बाकी रिजर्व का क्या किया जाये.
आगामी 19 नवंबर को बुलायी गयी रिजर्व बैंक बोर्ड की बैठक में इस बाबत चर्चा होनी चाहिए कि रिजर्व फंड का उपयोग कैसे होगा. इस रिजर्व फंड को सरकार को स्थानांतरित करने के नफा-नुकसानों के बारे में भी चर्चा हो सकती है. नियमों के प्रतिकूल जो रिजर्व फंड इकट्ठा हो गया है, उसे तुरंत सरकारी खजाने में भेजने के कुछ नुकसान जरूर हो सकते हैं, जैसे कि इसके कारण महंगाई पर प्रतिकूल असर पड़ सकता है. इसलिए आरबीआई बोर्ड इसे सरकार के खजाने में स्थानांतरित करने हेतु कोई समय-सीमा जरूर तय कर सकता है.
अब देखना होगा कि आनेवाले दिनों में रिजर्व बैंक के डिप्टी गवर्नर द्वारा शुरू की गयी इस अवांछनीय बहस की क्या परिणिति होती है. लेकिन यह स्पष्ट है कि रिजर्व बैंक बोर्ड को इस बाबत कुछ कड़े और स्पष्ट निर्णय लेने होंगे. वहीं रिजर्व बैंक अधिकारियों को भी समझना होगा कि रिजर्व बैंक बोर्ड कोई रबड़ स्टैंप नहीं है और रिजर्व बैंक बोर्ड में स्पष्ट चर्चा से इस मुद्दे समेत देश की वित्तीय व्यवस्था के संबंध में अन्य महत्वपूर्ण मुद्दों पर समाधान खोजे जा सकते हैं.
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