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नये साल के संकल्प
आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in बाबा नागार्जुन की नववर्ष पर कविता है- बत्तख हों, बगले हों, मेंढक हों, मराल पूछिए चलकर वोटरों से मिजाज का हाल मिला टिकट ? आपको मुबारक हो नया साल अब तो बांटिए मित्रों में कलाकंद ! एक और साल ने दस्तक दी है. पुराना साल खट्टी-मीठी यादें […]
आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
बाबा नागार्जुन की नववर्ष पर कविता है-
बत्तख हों, बगले हों, मेंढक हों, मराल
पूछिए चलकर वोटरों से मिजाज का हाल
मिला टिकट ? आपको मुबारक हो नया साल
अब तो बांटिए मित्रों में कलाकंद !
एक और साल ने दस्तक दी है. पुराना साल खट्टी-मीठी यादें छोड़ कर जा रहा है और नया साल नयी उम्मीदों के साथ हमारे सामने है. नया साल इस मायने में अहम है, क्योंकि इसमें लोकतंत्र के सबसे बड़े उत्सव आम चुनाव होने जा रहे हैं. आम चुनाव देश की राजनीतिक दिशा और दशा तय करते हैं. इन चुनावों के माध्यम से हम और आप सत्ता की कुंजी किसी दल और व्यक्ति को सौंपते हैं. अटकलों का बाजार गर्म है. मौजूदा प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वापसी होगी या फिर राहुल गांधी आयेंगे या मिली-जुली सरकार बनेगी, भविष्य के गर्भ में इन सारे सवालों के जवाब हैं.
मौजूदा दौर में हमारे समक्ष अनेक चुनौतियां हैं. हम अभी तक बुनियादी समस्याओं को हल नहीं कर पाये हैं.
अनेक क्षेत्रों में उल्लेखनीय उपलब्धि के बावजूद प्रति व्यक्ति आय के मामले में हम पिछड़े हुए हैं. हम अब भी शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली और पानी की समस्या से जूझ रहे हैं.
देश के अधिकांश लोग कृषि से जीवन यापन करते हैं, लेकिन कृषि के क्षेत्र में मुश्किलें बढ़ी हैं. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि किसानों को अपनी मांगों के लिए सड़कों पर उतरना पड़ा है. किसानों की चिंताजनक स्थिति का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि पिछले 10 वर्षों में देश की अर्थव्यवस्था में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले लगभग तीन लाख किसानों ने आत्महत्या की है.
दरअसल, कर्ज-माफी किसानों की समस्या का महज एक पक्ष है. उनकी सबसे बड़ी समस्या फसल का उचित मूल्य है. किसान अपनी फसल में जितना लगाता है कि उसका आधा भी नहीं निकलता है. यही वजह है कि आज किसान कर्ज में डूबा हुआ है. किसानों पर बैंक से ज्यादा साहूकारों का कर्ज है. कृषि भूमि के मालिकाना हक को लेकर भी विवाद पुराना है. जमीनों का एक बड़ा हिस्सा बड़े किसानों, महाजनों और साहूकारों के पास है, जिस पर छोटे किसान काम करते हैं. ऐसे में अगर फसल अच्छी नहीं होती, तो छोटे किसान कर्ज में डूब जाते हैं.
हमें युवाओं को शिक्षा और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराने होंगे. इसमें कोई दो राय नहीं है कि अच्छी शिक्षा के बगैर बेहतर भविष्य की कल्पना नहीं की जा सकती. किसी भी देश की आर्थिक और सामाजिक प्रगति उस देश की शिक्षा पर निर्भर करती है, लेकिन शिक्षा के मामले में हिंदी पट्टी के राज्यों के मुकाबले दक्षिण के राज्य हमसे कहीं आगे हैं.
इसके पिछले 70 वर्षों में हमने अपनी शिक्षा व्यवस्था की अनदेखी की है. पिछले साल झारखंड, बिहार समेत अनेक बोर्डों के नतीजे आये, लेकिन एक गंभीर बात उभरकर सामने आयी है कि बिहार और झारखंड, दोनों राज्यों में विज्ञान पढ़ने वाले आधे से अधिक छात्र फेल हो गये हैं. यह चिंताजनक स्थिति है, क्योंकि देश के अधिकांश बच्चे विज्ञान पढ़ रहे हैं और इंजीनियर बनना चाहते हैं. हमें इस दिशा में सार्थक प्रयास करने होंगे.
यह साल गांधी की 150वीं जन्मशती का वर्ष भी है. यह गांधी के विचारों की ताकत ही है कि उनके विचार आज भी जिंदा हैं और देश-दुनिया में बड़ी संख्या में लोग आज भी उनके विचारों से प्रेरणा लेते हैं. गांधी की बातें सरल और सहज लगती हैं, लेकिन उनका अनुसरण करना बेहद कठिन होता है.
सन् 1909 में गांधीजी ने एक चर्चित पुस्तक हिंद स्वराज्य लिखी थी. उन्होंने यह पुस्तक इंग्लैंड से अफ्रीका लौटते हुए जहाज पर लिखी थी. यह पुस्तक संवाद शैली में लिखी गयी है. गांधी इसमें लिखते हैं कि हिंदुस्तान अगर प्रेम के सिद्धांत को अपने धर्म के एक सक्रिय अंश के रूप में स्वीकार करे और उसे अपनी राजनीति में शामिल करे, तो स्वराज स्वर्ग से हिंदुस्तान की धरती पर उतर आयेगा. महात्मा गांधी का मानना था कि नैतिकता, प्रेम, अहिंसा और सत्य को छोड़ कर भौतिक समृद्धि और व्यक्तिगत सुख को महत्व देने वाली आधुनिक सभ्यता विनाशकारी है.
गीता ने गांधीजी को सबसे अधिक प्रभावित किया था. यह उनकी प्रिय आध्यात्मिक पुस्तक थी. गीता के दो शब्दों को को गांधीजी ने आत्मसात कर लिया था. इनमें एक था- अपरिग्रह, जिसका अर्थ है मनुष्य को अपने आध्यात्मिक जीवन को बाधित करने वाली भौतिक वस्तुओं का त्याग कर देना चाहिए. दूसरा शब्द है समभाव. इसका अर्थ है दुख-सुख, जीत-हार, सब में एक समान भाव रखना, उससे प्रभावित नहीं होना.
मौजूदा दौर की सबसे बड़ी चिंता पर्यावरण को बचाये रखने की है. इस चुनौती का विश्व व्यापी आयाम है. हिंदी पट्टी में पर्यावरण की चेतना उतनी नहीं दिखाई देती है.
सामान्य-सी दिखने वाली और बहुउपयोगी पॉलिथीन हम सबके जी का जंजाल बन गयी है. यह पूरे पर्यावरण के लिए बेहद खतरनाक है और इसमें वह जहर घोल रही है. इनसान, जानवर और पेड़-पौधों इसने किसी को नहीं छोड़ा है. प्रकृति के लिए यह अत्यंत घातक है. माना जाता है कि पॉलिथीन अजर अमर है और इसको नष्ट होने में एक हजार साल लग जाते हैं. इसके नुकसान की लंबी-चौड़ी सूची है. जलाने पर यह ऐसी गैसें छोड़ती है, जो जानलेवा होती हैं.
यह जल चक्र में बाधक बनकर बारिश को प्रभावित करती है. नदी-नालों को अवरुद्ध करती है. खेती की उर्वरा शक्ति को प्रभावित करती है. पशु खासकर, गाएं इसको खा जाती हैं और यह उनकी आंतों में अटक जाती है, जिससे गाय की मौत तक हो जाती है. हम लोग अक्सर खाने की वस्तुएं पॉलिथीन में रख लेते हैं, जिससे कैंसर की आशंका बढ़ जाती है. हाल में बिहार सरकार ने इस पर प्रतिबंध की पहल की है.
झारखंड सरकार इस पर पहले ही प्रतिबंध लगा चुकी है. इसमें सहयोग के लिए हम सबको आगे आना होगा और यह प्रण लेना होगा कि पॉलिथीन का इस्तेमाल नहीं करेंगे. तभी यह प्रतिबंध प्रभावी होगा. जब तक हम साफ-सफाई और पर्यावरण के प्रति सचेत नहीं होंगे, कोई उपाय कारगर साबित नहीं होने वाला है. आज समय की मांग है कि हम इस विषय में संजीदा हों. पर्यावरण बचाना एक सामूहिक जिम्मेदारी है.
और अंत में सर्वेश्वरदयाल सक्सेना की कविता की कुछ पंक्तियां-
नये साल की शुभकामनाएं
खेतों की मेड़ों पर धूल भरे पांव को
कुहरे में लिपटे उस छोटे से गांव को
नये साल की शुभकामनाएं
जांते के गीतों को बैलों की चाल को
करघे को कोल्हू को मछुओं के जाल को
नये साल की शुभकामनाएं!
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