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बजट लोकलुभावन ही होगा
संदीप बामजई आर्थिक मामलों के जानकार sandeep.bamzai@gmail.com सुनने में यह आया है कि मोदी सरकार आज पूरा बजट पेश करनेवाली है. अगर यह खबर सही है, तो मैं समझता हूं कि संवैधानिक एतबार से ऐसा नहीं होना चाहिए. संविधान की मानें, तो मौजूदा सरकार को अपने आखिरी बजट में सिर्फ जून-जुलाई तक के लिए ही […]
संदीप बामजई
आर्थिक मामलों के जानकार
sandeep.bamzai@gmail.com
सुनने में यह आया है कि मोदी सरकार आज पूरा बजट पेश करनेवाली है. अगर यह खबर सही है, तो मैं समझता हूं कि संवैधानिक एतबार से ऐसा नहीं होना चाहिए. संविधान की मानें, तो मौजूदा सरकार को अपने आखिरी बजट में सिर्फ जून-जुलाई तक के लिए ही बजट तैयार करना चाहिए, क्योंकि अप्रैल में आम चुनाव है, जिसके बाद नयी सरकार बननी है.
चुनाव बाद सरकार चाहे जिसकी भी बने, वह नयी सरकार ही जून-जुलाई में अगले नौ महीनों के लिए बजट पेश करती है. लेकिन, मौजूदा सरकार का मानना है कि वह पूरा बजट पेश करेगी. जनता के हितों के लिए ऐसा करना वह जरूरी मान रही है. कांस्टीट्यूशनल प्रॉप्राइटी (संवैधानिक औचित्य) के हिसाब से यह गलत है और सिर्फ उम्मीद ही है कि सरकार ऐसा नहीं करेगी.
अब जहां तक आज पेश होनेवाले बजट का सवाल है कि वह कैसा होगा, तो यह तय है कि वह लोकलुभावन ही होगा. सरकार के रुख को देखते हुए यह अंदाजा लगाना आसान है कि इस बजट में किसानों के लिए बड़ा पैकेज हो सकता है, साथ ही एमएसएमइ (सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय) के लिए भी बड़ा पैकेज हो सकता है.
कहने का अर्थ है कि जो भी कुछ परेशान वर्ग है, मसलन किसान-व्यापारी आदि, उनके लिए अच्छा पैकेज होगा. यह भी हो सकता है कि जो ढाई लाख और पांच लाख के टैक्स स्लैब हैं, इसे सरकार एक कर दे. कुछ भत्ते वगैरह को लेकर मैंने सुना है कि मिडिल क्लास को सालाना साढ़े बारह हजार का फायदा होगा. कॉरपोरेट टैक्स में 25 प्रतिशत तक ले आने की बात चली आ रही थी, संभव है कि यह भी हो जाये.
ओड़िशा में किसानों के लिए एक सफलतम ‘कालिया योजना’ शुरू की गयी है, जिसके तहत सभी पात्र किसानों को कृषि के लिए वित्तीय सहायता दी जानी है और उनकी आजीविका, खेती, सहायता और बीमा सुविधाएं भी मिलनी हैं. सुनने में आया है कि केंद्र सरकार भी बजट में ऐसी ही किसी योजना पर विचार कर रही है. ऐसा करने के लिए कृषि के लिए एक बड़े पैकेज की दरकार तो है ही.
जहां तक भारत में गरीबों के लिए आय की बात है, तो केंद्र सरकार यूनिवर्सल बेसिक इनकम का पाइलट प्रोजेक्ट भी ला सकती है, जिसे देश के सौ जिलों में लागू किया जा सकता है.
राहुल गांधी के न्यूनतम आय वाले बयान के बाद तो इस पर चर्चा तेज हो गयी है, इसलिए यूनिवर्सल बेसिक इनकम के आने की उम्मीद ज्यादा है. वहीं एमएसएमइ में इसलिए पैकेज आ सकता है, क्योंकि इस वक्त व्यापारी वर्ग बहुत परेशान है. इसमें टैक्स लाभ देने और कुछ सब्सिडी भी देने की बात चल रही थी, संभव है कि ये लाभ इस वर्ग को मिल जाएं. ऐसे में कोई संदेह नहीं है कि यह बजट लोकलुभावन राजनीतिक बजट होगा, जो एक अर्थ में वोट कैचिंग बजट भी कहा जा सकता है.
फिच रेटिंग एजेंसी ने कहा है कि अगर मोदी सरकार लोकलुभावन बजट पेश करती है, तो सरकार अपने लक्ष्यों को नहीं पा सकेगी. यह सही बात है, क्योंकि पिछले साल का आंकड़ा देखें, तो सरकार ने राजकोषीय घाटे (फिस्कल डेफिसिट) के लक्ष्य को पकड़ नहीं पायी और इस साल भी इसकी संभावना है.
ऐसे में अगर यूनिवर्सल बेसिक इनकम को लाने और किसानों के लिए पैकेज देने, इन दोनों को मिला कर देखें, तो सरकार को बहुत खर्च करना होगा, जिसका असर राजकोषीय घाटे पर पड़ना तय है. यही नहीं, इसके अलावा भी कुछ अन्य क्षेत्रों में जो बड़े पैकेज आयेंगे, तो उससे राजाकोषीय घाटा बढ़ेगा और सरकार अपने कई लक्ष्यों से चूक जायेगी.
इस बार बजट सत्र एक फरवरी से शुरू होकर 13 फरवरी तक चलेगा. यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि भारत सरकार में बजटीय चीजों के नोटिफिकेशन में चार-पांच महीने लग जाते हैं.
ऐसे में जो चीज लेजिस्लेशन (विधान निर्माण) की होगी यानी मनी बिल होगी, वह इस सत्र में पास नहीं हो पायेगी, क्योंकि विपक्ष उसको पास नहीं होने देगा. लेकिन, अगर सरकार उसे कार्यकारी आदेश के तहत ले आयेगी, (मसलन अभी घोषणा करके कैबिनेट से स्वीकृति ले ले, जिसे संसद में वापस न ले जाना हो) तो इसको सरकार पास कर ले जायेगी.
इस तरह के सारे विकल्पों के बारे में सरकार ने विचार किया है और बीते कुछ दिनों में कई तरह के पैकेजों की सूची पीएमओ को भेजी गयी है कि कौन सा विकल्प बेहतर रहेगा. यहां तक कि कालिया योजना या फिर यूनिवर्सल बेसिक इनकम का फायदा लोगों तक पहुंचाने के लिए डायरेक्ट ट्रांसफर बेनेफिट की प्रक्रिया अपनायी जा सकती है.
इन दोनों को मिला कर 25-26 लाख करोड़ रुपये का खर्च आयेगा, जिसकी बात सरकार कर रही है. अब सवाल यह है कि इतने पैसे देश में कहां हैं? अगर इतने पैसे देश के पास होते, तो क्या देश का यह हाल होता, तो आज है? यह बड़ा सवाल है.
इस सवाल से यही तर्क निकलता है कि सरकार के पास पैसे नहीं हैं, तो आखिर वह बड़ी-बड़ी योजनाओं को बजट में कैसे ला पायेगी? इसके लिए सरकार के पास एक ही विकल्प है, वह है- रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया.
अब देखना यह है कि सरकार क्या करती है. इसका स्पष्ट अर्थ यह है कि यह बजट लोकलुभावन होगा. बजट से नौकरियां नहीं निकलतीं. देश में जॉबलेस ग्रोथ जारी है. नौकरियां सृजन के लिए काफी वक्त लगता है. मसलन, अगर आज एलान हुआ कि एक फैक्टरी लगायी जायेगी, तो इसके लिए महीनों क्या वर्ष लग सकते हैं. पहले जमीन खरीदी जायेगी, बिल्डिंग बनायी जायेगी, उसके बाद 35 तरह के रजिस्ट्रेशन होंगे, जो बहुत ज्यादा समय की मांग करते हैं.
भारतीय रेलवे दुनिया का सबसे बड़ा नियोक्ता है, लेकिन उसमें भी 1.2 लाख नौकरियां हैं, लेकिन सरकार ने आज तक नहीं भरा. मीडिया में जब यह खबर आयी, तब सरकार ने नौकरियों की घोषणा कर दी. लेकिन, क्या वे पद भरे गये? रेलवे का वह दौर अब चला गया कि जब रेल मंत्री रेल बजट में एलान करता था कि यहां से वहां इतनी ट्रेनें चलायी जायेंगी. फलां जगह पर रेल कोच फैक्टरी बनायी जायेगी, जिससे हजारों लोगों को रोजगार मिलेगा.
कुल मिला कर, अब तक बजट को लेकर जितनी भी खबरें आयी हैं, उसके मद्देनजर यही कहा जा सकता है कि यह बजट लोकलुभावन और वोटरों को ध्यान में रखकर ही पेश किया जायेगा. लेकिन, जो बीते पांच साल में करना चाहिए था, सरकार अब आखिर में सब कुछ करने की कोशिश करेगी, तो जनता बेवकूफ नहीं है.
(वसीम अकरम से बातचीत पर आधारित)
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