25.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

समाज को हिंसक होने से रोकिए

कुमार प्रशांत गांधीवादी विचारक k.prashantji@gmail.com मुझे यह जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है कि अलीगढ़ में अखिल भारत हिंदू महासभा के जिन लोगों ने 30 जनवरी, 2019 को महात्मा गांधी को ‘सामने खड़ा करके░’ फिर से गोली मारने का कुत्सित खेल खेला, वे कौन थे, उनकी गिरफ्तारी हुई या नहीं अौर गिरफ्तारी नहीं हुई, तो […]

कुमार प्रशांत
गांधीवादी विचारक
k.prashantji@gmail.com
मुझे यह जानने में कोई दिलचस्पी नहीं है कि अलीगढ़ में अखिल भारत हिंदू महासभा के जिन लोगों ने 30 जनवरी, 2019 को महात्मा गांधी को ‘सामने खड़ा करके░’ फिर से गोली मारने का कुत्सित खेल खेला, वे कौन थे, उनकी गिरफ्तारी हुई या नहीं अौर गिरफ्तारी नहीं हुई, तो क्यों नहीं हुई? कोई मुझसे पूछे, तो मैं बार-बार यह कहने को तैयार हूं कि न तो उनकी गिरफ्तारी होनी चाहिए अौर न उनके पीछे पुलिस छोड़ी जानी चाहिए.
उन्होंने जो किया, उसके पीछे की उनकी वैचारिक दृढ़ता अौर अपने किये के परिणाम के सामने खड़े रहने का उनका साहस तो हमें पता ही है कि ऐसा करने के बाद वे सब भाग खड़े हुए अौर उनके खिलौना बंदूकबाज पदाधिकारी अब तक छिपे-भागे फिर रहे हैं. ये सब उसी परंपरा के ‘वीर’ हैं, जिस परंपरा के लोग 30 जनवरी, 1948 को बिरला भवन में असली नाथूराम गोडसे के साथ मौजूद थे. सभी बला के कायर थे.
उनकी योजना 80 साल के बूढ़े, निहत्थे अादमी की हत्या करके वहां से निकल भागने की थी. वे भगत सिंह नहीं थे, जिन्होंने बम फेंकने के बाद वहां से भाग निकलने की चंद्रशेखर अाजाद की योजना को मानने से सिर्फ इनकार ही नहीं कर दिया था, बल्कि बम फेंकने के बाद भाग निकलने का पूरा अवसर होने पर भी न भागे अौर न छिपे. वह वहीं खड़े रहे, नारे लगाते रहे अौर फिर डर से बिलबिलाते सुरक्षाकर्मियों को बताते रहे कि हमारे पास दूसरा कोई हथियार नहीं है कि जिसका तुम्हें खतरा हो, अाअो अौर हमें गिरफ्तार कर लो! ऐसे लोगों के लिए अर्नेस्ट हेमिंग्वे ने साहस की परिभाषा गढ़ी थी- ‘घोर विपदा के समय भी व्यक्तित्व का सहज सौंदर्य अक्षुण्ण रहे, यही साहस है.’ अौर, गांधी इसलिए ही इन बहादुरों के समक्ष नतमस्तक हुए थे अौर कहा था कि इन नौजवानों ने मृत्युभय को जीत लिया है, जिसकी साधना मैं भी ताउम्र करता अा रहा हूं.
कायरों की अलग-अलग पहचान नहीं होती है, कायरों की जाति होती है, लेकिन मैं जानना चाहता हूं कि महात्मा गांधी कि हत्या करनेवाले 1948 के उन कायरों अौर 2019 के इन कायरों के नामलेवा अाज कहां छिपे बैठे हैं?
वे अागे अा कर इनकी पीठ क्यों नहीं ठोकते कि इन्होंने वह किया है, जो अाप भी करना चाहते तो थे अौर करना चाहते तो हैं, लेकिन हिम्मत नहीं होती? वर्ष 1947 से लेकर 2014 से पहले तक जो लोग दिल्ली अौर राज्यों की कुर्सियों पर बैठे थे, उनमें से कोई भी ‘गांधी का अादमी’ नहीं था.
जवाहरलाल नेहरू पर तो यह इल्जाम है कि अाजाद भारत को गांधी की तरफ पीठ करने का रास्ता उन्होंने ही बताया अौर तब देश की तथाकथित बौद्धिक बिरादरी में गांधी के विचारों के प्रति उपहास का भाव पैदा किया, लेकिन उनमें इतना साहस था कि गांधी के रहते हुए भी अौर उनकी अनुपस्थिति में भी उन्होंने कहा कि वह गांधी-विचार में विश्वास नहीं रखते हैं अौर देश के विकास का उनका अपना नक्शा है, लेकिन ऐसा कहनेवाले वह अकेले नहीं थे.
क्या सरदार पटेल, क्या राजेंद्र प्रसाद अौर क्या मौलाना अाजाद अौर क्या दूसरे कई नेता, सबको गांधी का बोझ भारी लगता था अौर सबने उनसे मुक्ति पाकर राहत ही पायी थी? लेकिन एक फर्क था- बहुत बड़ा फर्क! वे सब कबूल करते थे कि गांधी का रास्ता इतना कठिन है कि हम उसके सही-गलत का विश्लेषण करने में वक्त लगाने की न तैयारी रखते हैं, न योग्यता. वे सभी गांधी नामक इंसान का गहरा सम्मान करते थे- पूजा का भाव रखते थे. हालांकि गांधी की नजर से देखें, तो ऐसे सम्मान का कोई मतलब नहीं होता है, लेकिन गांधी की नजर यदि उनके पास होती भी, तो यह खाई पैदा ही कैसे होती? जब तक नेहरू की समझ में अाया कि देश को लेते हुए वह इस खाई में गहरे गर्त हो चुके हैं, तब तक बहुत देर हो चुकी थी. नि:संदेह उनकी यह देरी, उनकी यह चूक बड़ी थी, जिसकी गवाही हमारा इतिहास, पूरी मानव सभ्यता दे रही है.
यहां किस्सा एकदम ही दूसरा है. ये ऐसे लोग हैं, जो गांधी को समझने की कुव्वत ही नहीं रखते हैं, लेकिन असभ्य इतने हैं कि उनका सम्मान करने का शील भी नहीं रखते हैं. अलीगढ़ में जो हुअा, उसकी भूमिका कहां, किसने बनायी? सता की कमान जिनके हाथ में है, उनका मुखौटा हटा कर देखें, तो वे वही लोग मिलेंगे, जो हमें ऊना में मिले थे, जो बुलंदशहर मिले थे. मैं समझता हूं कि असहिष्णुता अौर संकीर्णता का, सांप्रदायिकता अौर झूठ का हर पैरोकार गांधी का हत्यारा है.
उद्दात्त मन का समाज बनाना एक लंबी, सामाजिक-राजनीतिक प्रक्रिया है, जिसमें अापको तलवार की धार पर चलना पड़ता है, बाजवक्त गोली झेलनी पड़ती है, फिर चाहे वह ईसा हों, केनेडी हों, मार्टीन लूथर किंग हों या गांधी हों! समाज को हिंसक, खूंखार अौर संकीर्ण मतवादी बनाना बहुत अासान है. यह बच्चों के फिसलपट्टी के खेल की तरह होता है.
एक बार धक्का लगा दो, बस! फिर तो वह अपने वेग से ही नीचे उतरता चला जाता है. यही देश में हो रहा है. इसे कौन, कैसे रोकेगा? ऐसे तत्वों की गिरफ्तारी जिन्हें करनी हो, वे करें, लेकिन समाज को तो इनका प्रतिकार करना ही होगा. जहां-जहां भारत में भारत के कद का इंसान रहता है, वहां-वहां यह प्रतिकार मनसा-वाचा-कर्मणा करना होगा- हमें भी अौर अापको भी!

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें