डॉ अश्विनी महाजन
एसोसिएट प्रोफेसर, दिल्ली विश्वविद्यालय
ashwanimahajan@rediffmail.com
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 4 मार्च, 2019 को अमेरिकी कांग्रेस को पत्र लिखकर भारत को व्यापार में दी जानेवाली सुविधा जीएसपी यानी जनरलाइज्ड सिस्टम ऑफ प्रिफ्रेरेंसेस को वापस लेने की इच्छा जतायी थी.
उनका कहना है कि अमेरिका को अपने बाजारों में उपयुक्त पहुंच का आश्वासन देने में भारत असफल रहा है. ट्रंप ने तुर्की से भी इस सुविधा को वापस लेने का फैसला लिया है. अब अमेरिकी सरकार ने भारत से भी जीएसपी के अंतर्गत वरीयता के आधार पर आयात की सुविधा वापस ले ली है.
अमेरिका कई देशों को जीएसपी की सुविधा देता है. इसके अंतर्गत अमेरिका में कई भारतीय सामानों को शुल्क के बिना आयात की अनुमति है.
यह सुविधा वस्त्र, चमड़े की वस्तुओं, इंजीनियरिंग वस्तुओं तथा कीमती पत्थरों एवं आभूषणों आदि पर उपलब्ध है. वर्ष 2018 में अमेरिका को होनेवाले भारतीय निर्यात का कुल मूल्य 54.5 अरब डाॅलर था, जिसमें से मात्र 5.6 अरब डाॅलर के निर्यात में ही जीएसपी सुविधा है और इससे भारत को मात्र 0.19 अरब डाॅलर के आयात शुल्क की बचत होती है.
भारत से आयात कम करने के लिए अमेरिका अन्य तरीके से भी पूरा प्रयास कर रहा है.
पिछले कुछ समय से वह हमारे सामान पर आयात शुल्क बढ़ा रहा है, जिससे हमारे निर्यात प्रभावित हो रहे हैं, वहीं भारत का इस बारे में रुख ज्यादा नरम रहा है. जब भी कोई देश किसी दूसरे देश के सामान पर आयात शुल्क बढ़ाता है, तो जबाव में वह देश भी आयात शुल्क बढ़ाता है. लेकिन, अमेरिका के प्रति भारत की अपेक्षित जवाबी कार्यवाही स्थगित की जा रही है. ऐसी नरमी दूसरे देश को आक्रामक होने का मौका देती है.
संकेत हैं कि अमेरिकी वस्तुओं पर जो आयात शुल्क 16 मई से बढ़ाये जाने थे, उन्हें एक महीने के लिए टाल दिया गया है. शायद सरकार को उम्मीद है कि अमेरिका अपने फैसले पर पुनर्विचार करेगा. फिलहाल, अमेरिका को भारत के साथ व्यापार में मात्र 21.3 अरब डाॅलर का ही घाटा है, जबकि चीन के साथ उसका घाटा 566 अरब डाॅलर है.
इसके बावजूद अमेरिकी प्रशासन का भारत के प्रति ऐसा व्यवहार दोस्ती पर प्रश्न-चिह्न लगाता है. अफगानिस्तान में ढांचागत विकास के भारतीय प्रयासों का मजाक उड़ाना और दूसरी तरफ पाकिस्तान के साथ आवश्यक सख्ती न दिखाना, अमेरिका पर संदेह को पुख्ता करता है. अमेरिका को लग रहा है कि ट्रंप की अफगानिस्तान से निकलने की नीति में पाकिस्तान सहयोगी हो सकता है.
अमेरिका अपनी कंपनियों के हित के लिए हमेशा प्रयासरत रहता है और वह सरकारों पर दबाव बनाता है. भारत में कई ऐसी अमेरिकी कंपनियां हैं, जिनके कार्यकलाप भारतीय हितों के अनुरूप नहीं हैं.
कुछ समय पहले अमेरिका ने भारत सरकार पर दबाव बनाया कि वह अपना पेटेंट कानून बदल कर अमेरिकी कंपनियों को दवाइयों पर पेटेंट अवधि खत्म होने के बाद भी फिर से पेटेंट की अनुमति दे दे. पेटेंट कानूनों में बदलावों के लिए भी दबाव बनाया गया. भारत सरकार ने जब अमेरिकी ई-कॉमर्स कंपनी एमेजॉन पर शिकंजा कसा, तो अमेरिका ने फिर से इस नीति को बदलने की मांग की. यह आश्चर्यजनक भी है क्योंकि ट्रंप अपने देश में स्वयं एमेजॉन के घोर विरोधी हैं.
आज अमेरिका को व्यापार में भारत से 25 गुणा ज्यादा घाटा चीन से है, उसके बावजूद वह चीन से समझौते का हाथ बढ़ा रहा है और भारत के प्रति सख्ती कर रहा है. उसने सूचना प्रौद्योगिकी उत्पादों पर आयात शुल्क घटाने की मांग भी की है. पिछले साल भारत ने इन उत्पादों पर आयात शुल्क 10 प्रतिशत से बढ़ा कर 20 प्रतिशत कर दिया था.
अमेरिका की इस मांग को मानने पर उसे तो कोई फायदा होगा नहीं, अलबत्ता चीन के मोबाइल फोन पहले से कहीं ज्यादा मात्रा में भारत आने लगेंगे. भारतीय नेतृत्व को अमेरिका के साथ सख्ती से पेश आना जरूरी है, क्योंकि अमेरिका का यह रुख उसके आर्थिक हितों से ज्यादा उसकी दादागिरी को दर्शाता है.
अमेरिका को नहीं भूलना चाहिए कि भारत उसके आर्थिक और सामरिक हितों के लिए उपयोगी देश है. आगे बढ़ती भारतीय अर्थव्यवस्था उसकी अर्थव्यवस्था के लिए शुभ संकेत है. अमेरिका द्वारा भारत को निर्यात होनेवाली एक बड़ी मद पेट्रोलियम तेल और गैस है, जो 4.5 अरब डाॅलर के बराबर है.
इसके और बढ़ने की संभावना है. अमेरिका द्वारा भारत को अगले सात सालों में 300 बोइंग विमान बेचे जाने है, जिनकी कुल लागत 39 अरब डाॅलर है. इसके अतिरिक्त अमेरिका से अनेक रक्षा सौदे भी हो रहे हैं. इसलिए अमेरिका के साथ भारतीय व्यापार का अधिशेष घाटे में बदल सकता है.
अमेरिका को समझना होगा कि भारत के साथ सहयोग से वह अपने हितों को बेहतर ढंग से संरक्षित कर सकता है. भारत सरकार के लिए देश में रोजगार, जन स्वास्थ्य और अपने उद्योगों की रक्षा प्राथमिक कर्तव्य है.
इसलिए चाहे एमेजॉन और वालमार्ट पर शिकंजा कसने की बात हो या भारत के इलेक्ट्रॉनिक और टेलीकॉम उद्योग के संरक्षण हेतु आयात शुल्क बढ़ाने की बात हो, भारत की चिंताओं को समझते हुए अमेरिका को अपना रुख ठीक करना होगा. यदि ऐसा नहीं होता है, तो भारत को अपने हितों की रक्षा करनी ही होगा.