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बजट से किसानों की उम्मीद
योगेंद्र यादव अध्यक्ष, स्वराज इंडिया yyopinion@gmail.com एक पत्रकार ने सवाल पूछा- ‘इस साल के बजट में आप किसानों के लिए क्या नयी घोषणाएं चाहते हैं?’ उस पत्रकार को उम्मीद थी कि मैं अपनी मांगों की एक लंबी लिस्ट उसे दे दूंगा. मैंने उसे निराश करते हुए कहा, ‘मुझे एक भी नयी घोषणा नहीं चाहिए. हर […]
योगेंद्र यादव
अध्यक्ष, स्वराज इंडिया
yyopinion@gmail.com
एक पत्रकार ने सवाल पूछा- ‘इस साल के बजट में आप किसानों के लिए क्या नयी घोषणाएं चाहते हैं?’ उस पत्रकार को उम्मीद थी कि मैं अपनी मांगों की एक लंबी लिस्ट उसे दे दूंगा. मैंने उसे निराश करते हुए कहा, ‘मुझे एक भी नयी घोषणा नहीं चाहिए. हर बजट में नयी घोषणाओं का क्या फायदा, जब उन पर अमल ही नहीं होता? मैं तो बस इतना चाहता हूं कि निर्मला सीतारमण जी इस साल फरवरी के अंतरिम बजट में पीयूष गोयल जी की सभी घोषणाओं को पूरा कर दें. पिछले कृषि मंत्री राधामोहन सिंह द्वारा किसानों को किये गये वादों के लिए बजट में पैसा दे दें. बस.’
पिछले कार्यकाल में मोदी सरकार ने कृषि के लिए छह साल में किसानों की आय दोगुना करने का नारा दिया था. यह लक्ष्य पूरा करने के लिए हर साल महंगाई के असर को छोड़कर किसानों की वास्तविक आय में 10.5 प्रतिशत वृद्धि होनी चाहिए थी. उन छह में से तीन साल अब तक बीत चुके हैं.
इस बीच किसानों की आय कितनी बढ़ी, इसका आंकड़ा तक सरकार ने नहीं दिया है. कुछ सरकारी रपट देखें, तो अनुमान लगा सकते हैं कि अब तक सिर्फ दो या तीन प्रतिशत सालाना की वृद्धि हुई है. यानी कि अब आनेवाले तीन साल में कम से कम महंगाई को निकाल कर 15 प्रतिशत सालाना वृद्धि करनी होगी. खेती की आमदनी में इतनी तेजी से वृद्धि भारत में पहले कभी नहीं हुई है! दुनिया में भी शायद ही कभी हुई हो!
वित्त मंत्री से ऐसे में किसी जादू की अपेक्षा नहीं है. मगर इतनी उम्मीद तो करनी चाहिए कि वे कम-से-कम पिछले तीन सालों का आंकड़ा बतायेंगी और बचे हुए तीन सालों के लिए किसानों की आय बढ़ाने की योजना पेश करेंगी.
इस बारे में एक सरकारी समिति पिछले साल अपनी सिफारिश दे चुकी है. अब सरकार को उसे लागू करने का माद्दा दिखाना है. इस रिपोर्ट को लागू करने का मतलब होगा कृषि क्षेत्र में बहुत बड़े पैमाने पर लगभग 20 से 25 लाख करोड़ रुपये का पूंजी निवेश करना. खेती, पशुपालन, मत्स्य पालन, बागवानी और वनोपज को बढ़ाने के लिए बेहतर व्यवस्था खड़ी करनी होगी. देश की आयात-निर्यात नीति बदलनी होगी, ताकि व्यापारियों के हित की बजाय किसान को फायदा हो सके.
सरकार ने इस फरवरी में चुनाव से पहले आनन-फानन में किसानों को ₹6,000 रुपये प्रति वर्ष देने की प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना घोषित की थी. उसके बाद से देश के कोई 12 करोड़ किसान परिवारों में से सिर्फ दो या तीन करोड़ किसान परिवारों को 2,000 रुपये की एक या दो किस्त मिली है.
कई किसानों के अकाउंट में पैसा आया और फिर वापस चला गया. किसान संगठनों ने इस राशि को कम बताते हुए इसे बढ़ाने की मांग की थी. लेकिन वह बाद की बात है. फिलहाल तो सरकार यही राशि सभी किसानों तक पहुंचाने की व्यवस्था कर दे. सच यह है कि अब तक सरकार के पास देश भर के किसानों की कोई सूची ही नहीं है. ऐसे में सरकार की प्राथमिकता यह होनी चाहिए कि सभी किसानों की शिनाख्त कर उन्हें यह लाभ पहुंचाने की व्यवस्था की जाये.
पीएम किसान योजना की एक खामी यह थी कि इसने पांच एकड़ से अधिक के किसानों को इस लाभ से वंचित कर दिया था. चुनाव के बाद इस प्रावधान को समाप्त करने की घोषणा सरकार कर चुकी है. अब जरूरत है कि इस योजना के दायरे में देश के सबसे छोटे और कमजोर किसान को लाया जाये.
सच यह है कि देश में जमीन के मालिक किसानों से अधिक संख्या में वह किसान हैं, जो भूमिहीन हैं, या तो मजदूर के रूप में खेती करते हैं या फिर बटाई और ठेके पर खेत लेकर किसानी करते हैं. अभी तक देश में इन किसानों को चिन्हित करने और उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ पहुंचाने की कोई व्यवस्था नहीं है. अगर इस बजट में सरकार इसके लिए प्रावधान करती है, तो वह किसानों के लिए वाकई बहुत बड़ा कदम होगा.
मोदी सरकार की एक और बड़ी योजना थी, पीएम आशा, जिसका बड़े गाजे-बाजे के साथ 2018 में उद्घाटन किया गया था. इस योजना का उद्देश्य यह था कि सभी किसानों को अपनी पूरी फसल एमएसपी पर बेचने की सुविधा मिले. सरकार ने स्वीकार किया था कि अधिकांश किसान अपनी अधिकांश फसल सरकारी रेट पर नहीं बेच पाते हैं और उसके लिए एक नयी व्यवस्था की घोषणा की थी. सच यह है कि पिछले साल यह योजना पूरी तरह असफल हो गयी. जैसी आधी-अधूरी खरीद इस योजना से पहले होती थी, वैसी ही पिछले साल भी हुई.
सच यह है कि इस योजना को सफल बनाने के लिए सरकार को जितना पैसा आवंटित करना चाहिए था, सरकार ने उसका छोटा सा अंश भी नहीं दिया था. अगर निर्मला सीतारमण किसानों के कल्याण के बारे में चिंतित हैं, तो उन्हें सबसे पहले किसानों की फसल खरीदने के लिए सरकार के बजट में कम-से-कम 50,000 करोड़ रुपये देने चाहिए.
किसानों से जुड़ी मोदी सरकार की तीसरी बड़ी योजना थी पीएम फसल बीमा योजना. यह योजना भी बुरी हालत में चल रही है. सच यह है कि इस योजना को लागू करने से न तो लाभार्थी किसानों की संख्या बढ़ी, न ही किसानों को फसल के नुकसान का मिलनेवाला मुआवजा बढ़ा. बस एक चीज बढ़ी, और वह था निजी कंपनियों का मुनाफा.
इस साल देश के बड़े इलाके में सूखे की आशंका है. जून के महीने में बारिश में 33 प्रतिशत का घाटा हो चुका है. किसानों को प्राकृतिक आपदा से राहत दिलानेवाली किसी भी योजना की परीक्षा इस बार होगी. वित्त मंत्री से आशा करनी चाहिए कि वह प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना की समीक्षा करेंगी और इसके किसान विरोधी प्रावधानों को बदलेंगी.
इस साल किसानों को इस योजना में क्लेम मिलने की व्यवस्था करनी होगी. फसल बीमा के सिवा सूखे की स्थिति से निपटने के लिए सरकार के पास राष्ट्रीय आपदा कोष से राहत देने का प्रावधान भी है. वित्त मंत्री से उम्मीद करनी चाहिए कि वे इस वर्ष इस कोष को बढ़ायेंगी, ताकि इस बार सूखे में देश के किसानों को बेरुखी का सामना ना करना पड़े.
सूखे की स्थिति से देश में सिंचाई की योजनाओं पर ध्यान जाता है. अपने पिछले कार्यकाल में मोदी सरकार ने 99 सिंचाई परियोजनाओं और अनेक लघु सिंचाई परियोजनाओं को पूरा करने का लक्ष्य रखा था. वह लक्ष्य आज भी अधूरा पड़ा है. अगर निर्मला सीतारमण इस बजट में इन योजनाओं को पूरा करने के लिए राशि आवंटित करती हैं, तो किसानों को तात्कालिक राहत से आगे भी कुछ उम्मीद बंधेगी.
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