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मझधार में कांग्रेस पार्टी
आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in किसी भी लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष जरूरी होता है, लेकिन लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और अन्य दलों की जो गत हुई है, उसने विपक्ष को बेहद कमजोर कर दिया है. अब हालत यह है कि 1885 में स्थापित कांग्रेस पार्टी आज अपनी प्रासंगिकता के लिए संघर्ष कर […]
आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
किसी भी लोकतंत्र में मजबूत विपक्ष जरूरी होता है, लेकिन लोकसभा चुनावों में कांग्रेस और अन्य दलों की जो गत हुई है, उसने विपक्ष को बेहद कमजोर कर दिया है. अब हालत यह है कि 1885 में स्थापित कांग्रेस पार्टी आज अपनी प्रासंगिकता के लिए संघर्ष कर रही है. राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष पद से इस्तीफा देकर पार्टी को मझधार में छोड़ कर चले गये हैं.
कांग्रेस असमंजस में है. नतीजा यह है कि कर्नाटक में कांग्रेस गठबंधन सरकार संकट में है और गोवा में कांग्रेस के 10 विधायक भाजपा में शामिल हो गये हैं. वहां पार्टी के अस्तित्व पर संकट गहरा गया है. सोशल मीडिया पर एक लतीफा चल रहा है कि मॉनसून गोवा एवं कर्नाटक पहुंच गया है और मध्य प्रदेश व राजस्थान पहुंचने वाला है, लेकिन नेतृत्व के अभाव में कांग्रेस पार्टी कोई ठोस कदम नहीं उठा पा रही है. यह सब इसलिए, क्योंकि कांग्रेस राहुल गांधी के उत्तराधिकारी को लेकर ऊहापोह की स्थिति में है.
हालांकि इन चुनाव नतीजों से एक बात स्पष्ट हो गयी है कि लगातार प्रयासों के बावजूद राहुल गांधी को देश की जनता कांग्रेस के नेता के बतौर स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं. साथ ही एक और संदेश साफ है कि वंशवाद की राजनीति का दौर उतार पर है. प्रियंका गांधी को इन चुनावों में जोरशोर से उतारा गया था, लेकिन वह कोई कमाल नहीं दिखा पायीं. इसे जितनी जल्दी कांग्रेस स्वीकार कर लेगी, उतना उसके लिए बेहतर होगा, लेकिन कांग्रेस में ऐसे लोगों की कमी नहीं है, जो यह मानते हैं कि नेहरू-गांधी परिवार के बिना कांग्रेस का वजूद नहीं रहेगा. कुल मिला कर, लोकतांत्रिक व्यवस्था में मुख्य विपक्षी दल की यह स्थिति शुभ संकेत नहीं है.
सबसे पहले राहुल गांधी ने शुरुआत में ट्विटर के माध्यम से अपने इस्तीफे की जानकारी दी. लोकसभा चुनाव में उन्हें पारंपरिक सीट अमेठी से हार का मुंह देखना पड़ा था, हालांकि वह केरल की वायनाड सीट से जीत गये.
25 मई को कांग्रेस कार्यसमिति की बैठक में राहुल गांधी ने लोकसभा चुनाव में कांग्रेस को मिली हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया था, जिसे शुरुआत में किसी ने गंभीरता से नहीं लिया. माना गया कि यह हार के बाद की तात्कालिक प्रक्रिया है और वह कुछ समय बाद इस्तीफा वापस ले लेंगे, लेकिन राहुल गांधी ने स्पष्ट कर दिया कि वह अपने फैसले पर अडिग हैं.
उन्होंने बाद में चार पन्नों का लंबा पत्र भी जारी कर दिया. इस पत्र में उन्होंने लिखा कि अध्यक्ष के नाते लोकसभा चुनाव में हार के लिए वह जिम्मेदार हैं. इसलिए इस्तीफा दे रहे हैं. पत्र में लिखा कि पार्टी को बुनियादी रूप से बदलना होगा. पार्टी अपने प्रतिद्वंद्वियों को तब तक नहीं हरा सकती, जब तक नेता सत्ता की चाहत नहीं छोड़ देते और विचारधारा की लड़ाई नहीं लड़ते.
भाजपा सदस्यता अभियान के प्रमुख और मध्यप्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने राहुल गांधी पर तंज कसा कि वह कांग्रेस को बचाने की अंत तक कोशिश करने की बजाय पार्टी के डूबते जहाज को छोड़ कर जाने वाले पहले शख्स हैं. कोई नहीं जानता है कि कांग्रेस का मौजूदा अध्यक्ष कौन है? उन्होंने कहा कि हमने सुना था कि जब जहाज डूबता है, तो कप्तान इसे बचाने के लिए सबसे अंत तक रहता है, लेकिन कप्तान कांग्रेस के जहाज से कूदने वाले पहले व्यक्ति हैं.
यह सही है कि बेहतर होता कि राहुल गांधी तब तक पार्टी अध्यक्ष बने रहते, जब तक उनका उत्तराधिकारी तय नहीं हो जाता या फिर एक ऐसी व्यवस्था होती, जिसमें एक कार्यवाहक नेता होता, जो आये दिन के राजनीतिक फैसलों को लेता. अब स्थिति यह है कि कांग्रेस में फैसला लेने की प्रक्रिया ठप हो गयी है. दरअसल, एक समस्या यह भी है कि कांग्रेस को बिना नेहरू-गांधी परिवार के नेतृत्व के कार्य करने की आदत नहीं रही है और यही वजह है कि पार्टी की यह स्थिति है. दूसरी ओर भाजपा को देखें. पार्टी अध्यक्ष अमित शाह जैसे ही गृह मंत्री बने, तत्काल जेपी नड्डा ने कार्यकारी अध्यक्ष का पद संभाल लिया.
राहुल गांधी के नेतृत्व में पार्टी की लोकसभा चुनावों में बहुत बुरी हार हुई है. कई राज्यों में तो कांग्रेस पार्टी का सूपड़ा साफ हो गया है. ऐसे राज्यों की सूची खासी लंबी है.
कांग्रेस दिल्ली, गुजरात, आंध्र प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, हिमाचल प्रदेश, उत्तराखंड, अरुणाचल प्रदेश, जम्मू कश्मीर, ओड़िशा, त्रिपुरा, मणिपुर, मिजोरम, नागालैंड, सिक्किम, दमन दीव, दादर नगर हवेली, लक्षद्वीप और चंडीगढ़ में अपना खाता खोलने में भी नाकाम रही है. और तो और, कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी अपनी अमेठी सीट को भी नहीं बचा पाये. इसके पहले राहुल गांधी अमेठी से लगातार तीन बार सांसद चुने गये थे. अमेठी से उनसे पहले भी गांधी परिवार के लोग लड़ते रहे हैं. इमरजेंसी के बाद हुए चुनाव में संजय गांधी के हारने के बाद यह दूसरा मौका है, जब अमेठी से गांधी परिवार का कोई सदस्य हारा है.
इन लोक सभा चुनावों में कांग्रेस को पूरे देश में मात्र 52 सीटें मिली हैं और 80 सीटों वाले उत्तर प्रदेश से एक मात्र सीट रायबरेली से सोनिया गांधी जीत पायी हैं. हालत यह है कि कांग्रेस को इस बार भी लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष बनने का भी मौका नहीं मिलेगा, क्योंकि इसके लिए कम-से-कम 55 सीटें जरूरी हैं. यह दूसरा मौका है, जब लोकसभा में विपक्ष का नेता नहीं होगा.
कांग्रेस के लिए लोकसभा चुनावों के नतीजे खतरे की घंटी हैं, क्योंकि कुछ महीने पहले जिन तीन राज्यों- राजस्थान, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ में कांग्रेस ने जीत दर्ज की थी, उनमें भी उसका प्रदर्शन बेहद खराब रहा. उप्र में कांग्रेस का हश्र तो हम सबके सामने है. इस लोकसभा चुनाव में पार्टी के प्रचार की कमान खुद राहुल गांधी ने संभाली थी.
उन्होंने सैकड़ों रैलियां और रोड शो किये. लगा कि राहुल गांधी कांग्रेस को शायद पुनर्जीवित करने में सफल होंगे, लेकिन ऐसा नहीं हुआ. उन्होंने सबसे ज्यादा प्रचार उप्र में किया, जहां कांग्रेस केवल एक सीट रायबरेली से जीत पायी. प्रियंका गांधी भी कामयाब नहीं हो सकीं.
राहुल गांधी की नेतृत्व क्षमता पर लगातार सवाल उठते रहे हैं, लेकिन पार्टी लगातार उनकी अनदेखी कर रही थी. कुछ समय पहले राहुल गांधी के सामने एक ऐतिहासिक अवसर आया था, जब वह मप्र और राजस्थान में सत्ता की कमान युवाओं को सौंप सकते थे, पर उन्होंने मप्र की कमान 72 वर्षीय कमलनाथ को सौंपी और राजस्थान में 67 वर्षीय अशोक गहलौत को सौंपा.
ज्योतिरादित्य सिंधिया और सचिन पायलट जैसे युवा नेताओं को किनारे कर दिया गया. राहुल गांधी युवा नेतृत्व को मौका देकर राजनीतिक जोखिम उठा सकते थे, पर वह चूक गये. मौजूदा दौर में यदि कांग्रेस को प्रासंगिक रहना है, तो उसे पार्टी नेतृत्व व कार्य संस्कृति में बदलाव लाना होगा और संगठन को मजबूत करना होगा, अन्यथा उसके अप्रासंगिक होने का खतरा है.
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