अवधेश कुमार
वरिष्ठ पत्रकार
awadheshkum@gmail.com
आतंकवादी संगठन अलकायदा प्रमुख अयमान अल जवाहिरी अचानक सामने आया है. अपने 14 मिनट के वीडियो में वह कश्मीर में आतंकवाद को हवा देने की कोशिश कर रहा है. वह कहता है कि कश्मीर को हमें नहीं भूलना चाहिए. विश्लेषण किया जा रहा है कि आखिर अल जवाहिरी अचानक कश्मीर को लेकर सामने क्यों आया है?
उसके वीडियो में आतंकी जाकिर मूसा की तस्वीर दिख रही है, लेकिन उसने एक बार भी उसका नाम नहीं लिया. ध्यान रहे कि मूसा को सुरक्षा बलों ने 23 मई को मौत के घाट उतार दिया था. वह पहले हिज्बुल मुजाहिदीन का कमांडर था, लेकिन उससे उसका मतभेद हो गया, तो उसने अंसार-गजवात-उल-हिंद का गठन कर लिया. इस संगठन को अलकायदा से जुड़ा माना गया था. इससे पहला निष्कर्ष निकलता है कि अलकायदा ने इस क्षति के बाद जम्मू-कश्मीर में फिर से अपने संगठन को खड़ा करने की पहल की है.
विचार करनेवाली बात यह भी है कि आखिर जाकिर मूसा के मारे जाने के एक महीना 17 दिनों के बाद अलकायदा के प्रमुख को इसकी याद क्यों आयी? इसका मतलब हुआ कि इनके बीच त्वरित सूचना तंत्र कमजोर हो चुका है, जो संगठन के जर्जर होने का सबूत है. 22 दिसंबर, 2018 को सेना ने घोषणा की थी कि जाकिर मूसा गैंग का सफाया किया जा चुका है.
उस दिन कश्मीर घाटी में छह आतंकवादी मारे गये थे. ये सब जाकिर मूसा गिरोह के सदस्य थे एवं स्थानीय थे. इसके बाद जाकिर मूसा बचा हुआ था. मूसा बुरहान वानी के बाद किंवदंती बन गया था, पर वह कश्मीर में ज्यादा कुछ कर नहीं पाया. कुछ बड़े आतंकवादी उसके साथ आये, पर पाकिस्तान तथा वहां सक्रिय आतंकी आकाओं के खिलाफ बोलने के कारण वह अलग-थलग था.
कुछ विश्लेषक मान रहे हैं कि पाकिस्तान इतने दबाव में है कि वह सीधे कश्मीर में हस्तक्षेप नहीं कर सकता, इसलिए उसने जवाहिरी को सामने लाया है. इस समय जवाहिरी संभवत: पाकिस्तान में ही कहीं हो. अफगानिस्तान से तालिबानों के शासन के अंत के बाद से वह कहीं दिखा नहीं है. अमेरिका ने 9/11 हमले के लिए 21 सर्वाधिक वांछित आतंकियों की सूची में ओसामा के बाद उसे दूसरे स्थान पर रखा था.
जवाहिरी ने अपने वीडियो में पाकिस्तान पर भी हमला किया है. उसने कहा है कि पाकिस्तानी सेना और सरकार मुजाहिदीनों का केवल विशेष राजनीतिक इस्तेमाल करने में रुचि रखती है. उसने पाकिस्तानी सेना और सरकार को अमेरिका का चापलूस कहा है. जवाहिरी ने कहा कि जब अफगानिस्तान से रूसियों को निकालने के बाद अरब मुजाहिदीन कश्मीर की तरफ बढ़नेवाले थे, तो पाकिस्तान ने उन्हें रोक दिया.
ऐसा लगता नहीं है कि पाकिस्तान इस समय जवाहिरी को सामने लायेगा. आतंकवाद को लेकर भारत की कूटनीति के कारण वह भारी अंतरराष्ट्रीय दबाव में है. बालाकोट कार्रवाई के बाद भारत की रणनीति तो उसके सामने है ही, एफएटीएफ द्वारा आतंकवाद के वित्तपोषण को रोकने के लिए पर्याप्त कदम न उठाये जाने के कारण उस पर काली सूची में डाले जाने का खतरा मंडरा रहा है. इसी महीने इमरान खान अमेरिका जानेवाले हैं.
इसलिए पाकिस्तान इस समय जवाहिरी को सामने लाने की मूर्खता नहीं करेगा. इससे यह निष्कर्ष निकलता है कि अंतरराष्ट्रीय दबाव एवं अपनी आंतरिक स्थिति के कारण पाकिस्तान खुल कर इनकी मदद करने की स्थिति में नहीं है. इसी साल आठ जुलाई को पाकिस्तानी मीडिया में एक व्यक्ति के पकड़े जाने की खबर आयी, जो खैरात के नाम पर लोगों से पैसे लेकर अलकायदा को भेजता था.
पाकिस्तान के आतंकवाद रोधी विभाग (सीटीडी) ने आतंकवाद रोधी अधिनियम के तहत आतंकवाद को वित्तपोषण के आरोप में ह्यूमन कंसर्न इंटरनेशनल नामक गैरसरकारी संगठन के स्थानीय प्रमुख अली नवाज को गिरफ्तार कर सीटीडी की हिरासत में भेज दिया. पाकिस्तान के सामने इस समय दुनिया को ऐसी कार्रवाइयों का प्रमाण देने की मजबूरी है. वह हाफिज सईद तथा मसूद अजहर के खिलाफ कार्रवाई करने को मजबूर हुुआ है.
आइएस के उभरने के बाद अलकायदा कमजोर हो गया. चूंकि आइएस अब इराक एवं सीरिया में पराजित हो चुका है तथा उसके बचे-खुचे आतंकवादी बिखरे हुए हैं, इसलिए संभव है जवाहिरी ने उनको अपनी ओर खींचने तथा कश्मीर को मुख्य केंद्र में लाने की रणनीति अपनायी हो.
हमें हर ऐसी धमकी को गंभीरता से अवश्य लेना चाहिए. हालांकि, अलकायदा के विचारों का समर्थन आधार तो होगा, लेकिन जवाहिरी के आह्वान पर युवा लड़ने के लिए कूद पड़ेंगे, इसकी संभावना न के बराबर है. गृह राज्य मंत्री ने संसद में जो बयान दिया, उसके अनुसार, स्थानीय आतंकवादियों की भर्ती में काफी कमी आयी है.
इस समय ऑपरेशन ऑल आउट से कश्मीर में आतंकवादियों को मूलभूत आधार उपलब्ध करनेवाले तत्वों को निष्प्रभावी करने की जिस तरह की कार्रवाई चल रही है, उसमें अलकायदा का विस्तार कठिन है. सेना में भर्ती के लिए बारामूला में जितनी संख्या में नौजवान आये, वह बदलते कश्मीर का एक छोटा प्रमाण है.
अब केंद्र से सीधे उनको विकास राशि जा रही है. सरकार उन लोगों तक पहुंच रही है, जिन्हें सत्ता ने अभी तक हाशिये पर रखा था. सुरक्षा ऑपरेशन, अलगाववादियों, भारत विरोधियों के खिलाफ कार्रवाई तथा जनता तक सीधे पहुंचने की नीतियों के माहौल में नये सिरे से आतंकवादी संगठन प्रभावी नहीं हो सकते.