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जयललिता के बाद का तमिलनाडु

आर राजागोपालन वरिष्ठ पत्रकार rajagopalan1951@gmail.com दक्षिण भारत की सियासत में हाल में एक अनोखा मोड़ आया है, जब तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक तथा केरल की सरकारों ने केंद्र के प्रति एक विशिष्ट नीति अख्तियार की. चाहे वह केरल की सीपीएम नीत सरकार हो, एआइएडीएमके की तमिलनाडु स्थित सरकार हो या फिर तेलंगाना में टीआरएस […]

आर राजागोपालन

वरिष्ठ पत्रकार

rajagopalan1951@gmail.com

दक्षिण भारत की सियासत में हाल में एक अनोखा मोड़ आया है, जब तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, कर्नाटक तथा केरल की सरकारों ने केंद्र के प्रति एक विशिष्ट नीति अख्तियार की.

चाहे वह केरल की सीपीएम नीत सरकार हो, एआइएडीएमके की तमिलनाडु स्थित सरकार हो या फिर तेलंगाना में टीआरएस अथवा आंध्र प्रदेश में वाईएसआर-कांग्रेस की सरकारें हों, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनडीए सरकार की उदारवादी नीति के अनुरूप स्पर्द्धात्मक संघवाद के नारे के अंतर्गत इनमें से कई राज्यों के मुख्यमंत्रियों को आजादी प्रदान की है कि वे विदेश यात्राएं कर वहां से अपने राज्यों के लिए निवेश आकृष्ट करने की कोशिशें करें.

तमिलनाडु की बात करें, तो अभी यह जयललिता एवं करुणानिधि के उत्तर काल का राज्य है, जहां एआइएडीएमके मुख्यमंत्री एडापति पलानीस्वामी ने विपक्षी नेता एमके स्टालिन की निंदा करते हुए सियासत का पूरा नियंत्रण अपने हाथों समेट रखा है. पलानीस्वामी, जो ‘इपीएस’ के संक्षिप्त नाम से प्रसिद्ध हैं, ने इसी संबंध में हाल ही यूके, अमेरिका एवं संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) का अपना दो सप्ताह का दौरा सफलतापूर्वक संपन्न किया. पिछले चार दशकों के अंतर्गत विदेशों की सरकारी यात्रा करनेवाले वे तमिलनाडु के संभवतः पहले मुख्यमंत्री हैं.

यह यात्रा इसी वर्ष जनवरी में संपन्न हुए ग्लोबल इन्वेस्टर्स मीट (जीआइएम) के फॉलो अप के बतौर भी थी, जिससे यह स्पष्ट संकेत मिला कि वे अपनी कई बाधाओं का अपने ही दम पर मुकाबला करते हुए एक मजबूत नेता के तौर पर उभरते हुए अपनी एक विशिष्ट छवि बनाने में कामयाब रहे हैं.

फरवरी 2017 में जब इपीएस पहली बार इस राज्य के मुख्यमंत्री बने थे, तो ऐसा सोचनेवाले बहुत कम ही लोग थे कि वे छह माह से अधिक टिक सकेंगे. पर लगभग ढाई वर्षों पूर्व डीएमके की बागडोर संभालनेवाले एमके स्टालिन विधानसभा में अपने सौ सदस्यों के होते हुए इपीएस को पदच्युत करने पाने में सफल नहीं हो सके.

तत्कालीन उप मुख्यमंत्री के तौर पर स्टालिन ने वर्ष 2011 में विदेशी निवेश आकृष्ट करने विदेश दौरा किया था. तब उन्होंने यह दावा किया था कि वे चेन्नई मेट्रो रेल एवं समन्वित जल परियोजनाओं की योजना-होगेनेक्कल- के लिए निवेश सुनिश्चित करने में सफल रहे हैं.

जैसी उम्मीद थी, इन यात्राओं को लेकर इपीएस विपक्ष के निशाने पर भी आये. राज्य में जीआइएम की तैयारी हेतु तीन मंत्रियों द्वारा की गयी विदेश यात्राओं का जिक्र करते हुए स्टालिन ने कहा कि मुख्यमंत्री को भी उसी वक्त जाना चाहिए था. वर्ष 2015 में आयोजित प्रथम जीआइएम समेत पिछले दो जीआइएम के दौरान राज्य में 5.12 लाख करोड़ रुपयों के निवेश प्रस्ताव प्राप्ति के दावे पर डीएमके अध्यक्ष ने श्वेतपत्र प्रकाशित करने की मांग भी की.

डीएमके द्वारा इन यात्राओं की आलोचना के अलावा, इपीएस के कट्टर प्रतिद्वंद्वी तथा अम्मा मक्कल मुनेत्र कझगम (एएमएमके) के प्रमुख टीटीवी दिनाकरण ने भी मुख्यमंत्री की इन विदेश यात्राओं की आलोचना करते हुए यह पूछा कि जब पूरा विश्व मंदी के दौर से गुजर रहा है, तो क्या इन यात्राओं का कोई परिणाम निकल सकेगा? स्मरणीय है कि दिनाकरण पहले एआइएडीएमके में थे और इससे निष्कासित किये जाने पर उन्होंने यह नयी पार्टी बना ली थी.

एआइएडीएमके के 18 विधायकों के विधानसभा सदस्यता से निष्कासन तथा करुणानिधि समेत कुछ सदस्यों की मृत्यु से रिक्त हुई सीटों के लिए इस वर्ष मई में हुए उपचुनावों में डीएमके 13 सीटें अपने नाम करने में सफल रहा.

दूसरी ओर, इपीएस ने भी एआइएडीएमके के लिए उतनी सीटें निकाल लीं, ताकि विधानसभा में उसका बहुमत बना रहे. इस तरह वे न केवल एआइएडीएमके पार्टी के अंदर अपना नेतृत्व कायम रखने में, बल्कि डीएमके नीत विपक्ष को भी सत्ता से दूर रखने में कामयाब रहे. उन्होंने अपनी नेता जयललिता द्वारा शुरू की गयी सभी कल्याणकारी योजनाएं जारी रखने की चतुराई भी दिखायी.

केंद्र में मोदी सरकार से उनके मधुर रिश्ते उनके बहुत काम आये. पिछले आठ महीनों में राज्य के कुछ जिलों के पुनर्गठन के काम में उन्होंने उन्हें दो भागों और यहां तक कि तीन भागों में विभाजित किये जाने के काम में पर्याप्त निर्णय क्षमता का प्रदर्शन किया. नतीजतन, इस दौरान राज्य में जिलों की संख्या 32 से बढ़कर 37 हो गयी.

इसे एक विकासात्मक कदम के रूप में देखा गया, क्योंकि सुदूरवर्ती क्षेत्रों में बसे लोगों के लिए अब अपने जिला मुख्यालय तक पहुंच पाना आसान हो गया.

विदेश यात्राओं के वक्त अपने किसी भी सहयोगी को कार्यकारी मुख्यमंत्री के तौर पर नामित न कर उन्होंने सियासी मंच से जयललिता की अनुपस्थिति के दौरान मुख्यमंत्री बने ओ पन्नीरसेल्वम पर अपने पूर्ण दबदबे का संकेत भी दे दिया.

राज्य के सूचना तथा जन संपर्क विभाग द्वारा जारी प्रेस विज्ञप्ति के अनुसार, विदेश यात्रा के दौरान इपीएस स्वास्थ्य क्षेत्र में कम से कम तीन साझीदारी सहमतिपत्र हस्तगत करने में सफल रहने के अतिरिक्त सौर-सह-पवन ऊर्जा की एक फर्म से मिलकर राज्य के लिए प्रौद्योगिकी हस्तांतरण की संभावनाएं भी टटोलीं. यानी वे तमिलनाडु में अपनी स्थिति सुदृढ़ करने में सफल रहे हैं.

(अनुवाद: विजय नंदन)

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