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प्रदूषण को लेकर कब चेतेंगे

आशुतोष चतुर्वेदी प्रधान संपादक, प्रभात खबर ashutosh.chaturvedi @prabhatkhabar.in प्रदूषण इस देश के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है. देश की राजधानी दिल्ली की स्थिति इतनी खराब है कि प्रदूषण के गंभीर स्तर को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के पैनल ने वहां हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दी है. दिल्ली एनसीआर में सभी निर्माण संबंधी गतिविधियों […]

आशुतोष चतुर्वेदी
प्रधान संपादक, प्रभात खबर
ashutosh.chaturvedi
@prabhatkhabar.in
प्रदूषण इस देश के लिए गंभीर खतरा बनता जा रहा है. देश की राजधानी दिल्ली की स्थिति इतनी खराब है कि प्रदूषण के गंभीर स्तर को देखते हुए सुप्रीम कोर्ट के पैनल ने वहां हेल्थ इमरजेंसी घोषित कर दी है.
दिल्ली एनसीआर में सभी निर्माण संबंधी गतिविधियों पर प्रतिबंध लगा दिया गया है और दिल्ली सरकार ने सभी स्कूलों को 5 नवंबर तक बंद कर दिया है, लेकिन दिल्ली की आबोहवा में सुधार के कोई संकेत नहीं हैं. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक 419 पर पहुंच गया है, जो प्रदूषण का खतरनाक स्तर है.
प्रदूषण इतना ज्यादा बढ़ गया है कि आसमान में धुएं की परत साफ देखी जा सकती है. कई लोगों ने सोशल मीडिया पर कुछ महीने पहले और अभी की तस्वीरें साझा की हैं, जिनमें धुएं की परत साफ नजर आती है. दिल्ली सरकार ने सभी निजी और सरकारी स्कूलों को निर्देश दिये हैं कि बच्चों के अभिभावकों को मौजूदा वायु प्रदूषण के प्रति जागरूक किया जाए. अभिभावकों को समझाया जाए कि जब तक वायु प्रदूषण खतरनाक स्तर पर है, तब तक बच्चों को बाहर न भेजें, क्योंकि प्रदूषण के मौजूदा स्तर से बच्चों की सेहत को नुकसान पहुंच सकता है.
स्कूल प्रिंसिपलों को भी निर्देश दिये गये हैं कि जब तक प्रदूषण का स्तर खतरनाक बना हुआ है, तब तक स्कूल में कोई खेल आयोजित न कराया जाएं और बच्चों को क्लास रूम में ही रखें. दिल्ली सरकार ने निजी और सरकारी स्कूलों के बच्चों को बांटने के लिए 50 लाख मास्क खरीदे हैं. कहने का आशय है कि बच्चों को घरों और स्कूलों में एक तरह से कैद रखा जाए. ऐसी खबरें हैं कि दिल्ली और आसपास प्रदूषण के कारण बड़ी संख्या में लोग सांस लेने की तकलीफ, सीने में दर्द और खासी की शिकायत लेकर अस्पताल पहुंच रहे हैं. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने लोगों को घर से बाहर न निकलने की सलाह दी है.
यह देश का दुर्भाग्य है कि जनहित के विषय भी राजनीति से अछूते नहीं रह पाते हैं. दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने कहा कि पंजाब और हरियाणा में जल रही पराली के कारण दिल्ली में वायु प्रदूषण फैल रहा है और उन्होंने दोनों राज्य के मुख्यमंत्रियों को पत्र लिख कर इसे नियंत्रित करने को कहा है.
इसके जवाब में पंजाब के मुख्यमंत्री अमरिंदर सिंह ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखी है, जिसमें किसानों पर दोष मढ़े जाने पर क्षोभ प्रकट करते हुए पराली प्रबंधन के लिए किसानों को अलग से बोनस देने की मांग की है. अमरिंदर सिंह ने सवाल उठाया है कि जिस देश की राजधानी गैस चैंबर बन जाए और वह भी प्राकृतिक आपदा से नहीं, बल्कि मानव निर्मित कारणों से, उसे कैसे विकसित देश कहा जा सकता है. दिल्ली में प्रदूषण की स्थिति गंभीर तो है ही, लेकिन बिहार और झारखंड के कई शहरों में भी हालात कोई बहुत बेहतर नहीं हैं. पटना में पिछले कुछ दिनों में वायु प्रदूषण की स्थिति चिंताजनक हुई है. 26 अक्तूबर को पटना का वायु गुणवत्ता इंडेक्स 89 था, लेकिन 29 अक्तूबर को यह 365 दर्ज किया गया.
देश के विभिन्न शहरों से प्रदूषण को लेकर पिछले कई वर्षों से लगातार चिंताजनक रिपोर्टें आ रही हैं, लेकिन स्थिति जस-की-तस है. हम इस ओर आंख मूंदे हैं. कोई चिंता नहीं जतायी जा रही है. समाज में भी इसको लेकर कोई विमर्श नहीं हो रहा है. गंभीर सवाल है कि क्या हम किसी हादसे के बाद ही चेतेंगे. हाथ-पर-हाथ धरे बैठे रहने की स्थिति किसी भी देश के लिए बेहद चिंताजनक है.
अगर व्यवस्था ठान ले, तो परिस्थितियों में सुधार लाया जा सकता है. चीन का उदाहरण हमारे सामने है. सन 2013 में दुनिया के 20 सबसे प्रदूषित शहर में चीन के पेइचिंग समेत 14 शहर शामिल थे, लेकिन चीन ने कड़े कदम उठाये और प्रदूषण की समस्या पर काबू पा लिया. उत्तर भारत में वायु प्रदूषण का संकट लगातार गहराने का असर लोगों की औसत आयु पर पड़ रहा है. अमेरिका की शोध संस्था एनर्जी पॉलिसी इंस्टीट्यूट की वायु गुणवत्ता जीवन सूचकांक की हाल में जारी रिपोर्ट में उत्तर भारत में गंगा के मैदानी इलाकों में रह रहे लोगों की औसत आयु लगभग सात वर्ष तक कम होने की आशंका जतायी गयी है. रिपोर्ट के अनुसार झारखंड के भी कई जिलों में भी लोगों का जीवनकाल घट रहा है. कोडरमा, साहेबगंज, बोकारो, पलामू और धनबाद जैसे स्थानों के लोगों का जीवन काल औसतन 4 से 5 साल घट गया है.
विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कुछ समय पहले एक और गंभीर तथ्य की ओर इशारा किया था कि भारत में 34 फीसदी मौत के लिए प्रदूषण जिम्मेदार है. ये आंकड़े किसी भी देश और समाज के लिए बेहद चिंताजनक हैं. विश्व स्वास्थ्य संगठन का आकलन है कि प्रदूषण के कारण हर साल दुनियाभर में 70 लाख लोगों की मौत हो जाती है, जिनमें 24 लाख लोग भारत के शामिल हैं. वायु प्रदूषण से हृदय व सांस संबंधी बीमारियां और फेफड़ों का कैंसर जैसे घातक रोग तक हो जाते हैं. दरअसल, वायु प्रदूषण उत्तरी भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है.
भारत की आबादी का 40 फीसदी से अधिक हिस्सा इसी में रहता है. यह जान लीजिए कि वायु प्रदूषण के शिकार सबसे ज्यादा बच्चे और बुजुर्ग होते हैं. एक आकलन के अनुसार वायु प्रदूषण के कारण हर साल छह लाख बच्चों की जान चली जाती है. संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि लोगों को स्वच्छ हवा में सांस लेने का बुनियादी अधिकार है और कोई भी समाज पर्यावरण की अनदेखी नहीं कर सकता है.
दरअसल, विकास के नाम पर औद्योगिक इकाइयों को धुआं फैलाने की खुली छूट मिल जाती है. औद्योगिक इकाइयां, बिल्डर और खनन माफिया पर्यावरण संरक्षण कानूनों की खुलेआम अनदेखी करते हैं.
औद्योगिक इकाइयों के अलावा वाहनों की बढ़ती संख्या, धुआं छोड़ती पुरानी डीजल गाड़ियां, निर्माण कार्य और टूटी सड़कों की वजह से भी हवा में धूल का उड़ना भी प्रदूषण की बड़ी वजह है. प्रदूषण को लेकर सख्त नियम हैं, लेकिन उनको लागू करने वाला कोई नहीं है. जनता से जुड़े इस विषय पर विस्तृत विमर्श होना चाहिए, लेकिन ऐसा भी होता नजर नहीं आता है. सोशल मीडिया पर रोजाना कितने घटिया लतीफे चलते हैं, लेकिन पर्यावरण जागरुकता को लेकर संदेशों का आदान-प्रदान नहीं होता है.
टीवी चैनलों पर रोज शाम बहस होती है, लेकिन बढ़ते प्रदूषण पर कोई सार्थक चर्चा नहीं होती, जबकि यह मुद्दा हमारे आपके जीवन से जुड़ा हुआ है. प्रदूषण कम करने के लिए सबसे पहले हमें उसकी गंभीरता को समझना होगा, फिर उससे निबटने के उपाय करने होंगे. अपने देश में स्वच्छता और प्रदूषण का परिदृश्य वर्षों से निराशाजनक रहा है. इसको लेकर समाज में जैसी चेतना होनी चाहिए, वैसी नहीं है. अब समय आ गया है कि हम इस विषय में संजीदा हों.

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