शशांक
पूर्व विदेश सचिव
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अमेरिका और ईरान के बीच का तनाव अब और दो कदम आगे बढ़ गया है. ईरान के सुप्रीम कमांडर जनरल कासिम सुलेमानी की अमेरिका द्वारा हत्या के जवाब में ईरान ने जो इराक के अमेरिकी सैन्य अड्डों पर मिसाइल दागा है, वह निश्चित रूप से ईरान द्वारा बदले की कार्रवाई है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने पिछले दिनों कहा था कि अगर ईरान कुछ करता है, तो उसका अंजाम बुरा होगा. जाहिर है, अमेरिका अपने सैन्य अड्डों की बरबादी पर अपनी प्रतिक्रिया देगा.
वह प्रतिक्रिया किस रूप में होगी, इसका तो अंदाजा लगा पाना भी मुश्किल है, लेकिन यह स्पष्ट है कि इस तनाव का खामियाजा पूरा विश्व भुगतेगा. ईरान के जवाबी हमले को अगर अमेरिका उसके हद से पार जाने को देखता है या हद के दायरे में, यह इससे तय होगा कि आनेवाले दिनों में अमेरिका क्या करता है.
भारत सरकार ने सावधानी बरतते हुए कहा है कि भारतीय लोग इराक न जायें. वहीं इराक में रह रहे भारतीयों पर भी नजर रखी जा रही है.
यही नहीं, भारत इस बात पर भी नजर बनाये हुए है कि खाड़ी के देशों के एयरबेस भारतीय नागरिकों के लिए सुरक्षित नहीं हैं. जाहिर है, ऐसी अतिरिक्त सावधानियों की जरूरत इस वक्त है. भारत के विदेश मंत्री जयशंकर पिछले दिनों जब अमेरिका गये थे टू प्लस टू वार्ता के लिए, तो उसके बाद वह ईरान भी गये थे. उस वक्त यह मालूम हुआ था कि ईरान और भारत एक साथ मिलकर अफगानिस्तान के विकास के लिए कुछ जरूरी काम करना चाहते हैं. जाहिर है, इसमें अमेरिका द्वारा मदद की भी गुंजाइश थी. लेकिन फिलहाल ऐसा कुछ होता नहीं दिख रहा है, क्योंकि अब हालात बदल गये हैं. ईरान से भारत के बहुत बेहतर संबंध रहे हैं, क्योंकि वहां से हम बड़ी मात्रा में तेल खरीदते रहे हैं.
हालांकि, अभी अमेरिकी प्रतिबंध के चलते भारत वहां से तेल नहीं खरीद रहा है, लेकिन बाकी व्यापार तो है ही. अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किसी भी तरह के युद्ध से उपजे तनाव का शिकार सबसे पहले तमाम देशों के बाजार होते हैं. ईरान के जवाबी हमले के बाद ही स्टॉक मार्केट पर असर दिखना शुरू हो गया है. इससे स्पष्ट है कि अगर यह तनाव ज्यादा बढ़ा, तो इसका नुकसान भी ज्यादा बड़ा हो सकता है. वैश्विक अर्थव्यवस्था की खराब हालत के बीच यह तनाव और भी असर डाल सकता है.
इसी बीच यह भी खबर आयी कि संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में शामिल होने के लिए अमेरिका ने ईरान को वीजा देने से इनकार कर दिया. इससे तो तनाव का एक दूसरा ही पहलू खुल जायेगा.
जमीनी स्तर पर दो देश अपने मतभेदों के चलते जो भी करें, लेकिन संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की बैठक में जाने के लिए ईरान को वीजा मिलना चाहिए. चीन ने भी यही बात कही है कि ईरान को अमेरिका वीजा दे. निश्चित रूप से हमें इसकाे बड़े परिप्रेक्ष्य में देखना होगा. भारत को भी खास तौर पर इस तनाव पर समझदारी से काम लेना होगा.
साल 2016 में भारत और ईरान के बीच चाबहार समझौता हुआ था, जिस पर प्रधानमंत्री मोदी और ईरानी राष्ट्रपति हसन रूहानी ने हस्ताक्षर किये थे. यह एक त्रिपक्षीय समझौता है, जिसमें भारत और ईरान के अलावा अफगानिस्तान भी शामिल है. इस बंदरगाह के जरिये भारतीय सामानों को उन देशों तक पहुंचाने का खर्च और समय एक-तिहाई तक कम हो जायेगा. ईरान और अमेरिका तनाव ज्यादा बढ़ता है, तो निश्चित रूप से इस पर भी असर पड़ेगा. भारत को सोच-समझकर ही कदम उठाना चाहिए, क्योंकि उसके बेहतर रिश्ते ईरान और अमेरिका दोनों के साथ हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप ने सुलेमानी की हत्या के बाद कहा था कि सुलेमानी के हाथ दिल्ली से लेकर लंदन तक गतिविधियों में रहा है, इसलिए उसका जाना जरूरी था. इससे यह बात निकलकर आती है कि क्या ट्रंप के पास ऐसी कोई गुप्त सूचना है, जो भारत या किसी अन्य देश के पास नहीं है?
अगर ऐसा है, तो भारत को बड़ी समझदारी से ऐसी सूचनाओं का संज्ञान लेकर चौकन्ना हो जाना चाहिए और ऐसी सूचनाओं को इकट्ठा भी करना चाहिए. साल 2012 में दिल्ली में एक डिप्लोमेट की कार पर हमला हुआ था, जिसे लेकर भारत ने कुछ देशों से कुछ लोगों के प्रत्यर्पण और सूचनाओं की मांग की थी. इसका अध्ययन होना चाहिए कि उस हमले में कहीं सुलेमानी का हाथ तो नहीं था! क्योंकि उस वक्त खबर आयी थी कि उस हमले में ईरानी मूल के लोगों का हाथ था. तो क्या वह सुलेमानी ही थे? इस बात का पुख्ता सबूत तो किसी बड़ी जांच के नतीजे पर पहुंचे बिना संभव नहीं है.
सबसे पहले तो भारत को अमेरिका से इस संबंध में सभी सूचनाएं मांगनी चाहिए. भारत के पड़ोसी देश ईरान में तनाव से भारत पर असर पड़ना तय है, इसलिए अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों को भी चाहिए कि वे इस मामले में अपनी पहल करके शांति स्थापना का कार्य पूरा करें.
खाड़ी के देशों में अस्सी लाख के करीब भारतीय लोग काम कर रहे हैं. ईरान-अमेरिका तनाव बढ़ा, तो वह बड़े युद्ध के संकट को जन्म देगा, जिससे खाड़ी के देशों पर असर पड़ेगा. जाहिर है, इससे भारत पर भी असर पड़ेगा.
इसलिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में बाकी देशों को बात करके शांति बहाली के लिए बीच का रास्ता निकालने की पहल होनी चाहिए. शांति की स्थापना ईरान और अमेरिका के लिए भी जरूरी है और दुनिया के लिए भी. विश्व युद्ध की आशंका तो नहीं है, लेकिन यह तनाव बढ़ा, तो इससे इनकार भी नहीं किया जा सकता.