केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के पैतृक संगठन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने नेहरूवादी और वामपंथी इतिहासकारों पर भारत के इतिहास को नुकसान पहुंचाने का आरोप लगाते हुए ऋषि परंपरा को जीवित रखने पर जोर दिया है.
दोस्तो, हमने भी ऋषि-मुनियों के जीवन को पढ़ा है. ऋषि-मुनि राजाओं के जमाने में भी हुआ करते थे. बड़े-बड़े राजा-महाराजाओं के पुत्र ऋषि-मुनियों के पास ज्ञानोपाजर्न के लिए जाते थे और कई-कई वर्षो तक ज्ञान प्राप्त करते थे. उनके यहां उन्हें राज चलाने की भी शिक्षा दी जाती थी. राजा रामचंद्र और रामराज्य की कहानी किसे नहीं पता. चाहे किताबी ज्ञान से हो या रामलीला देख कर.
उस जमाने में नैतिकता का बोलबाला था. लोगों में आपसी प्रेम, भाईचारा हुआ करता था. संतान अपने माता-पिता, गुरु के आदेशों की अवहेलना नहीं करती थी. बड़े-छोटे, गुरु-शिष्य के संबंध की कद्र थी. राजा अपनी प्रजा का पूरा ख्याल रखता था, अत: प्रजा भी उससे बहुत प्यार करती थी. उस समय जीवन में काफी शांति थी. आज उस संस्कृति के ठीक उलट देश की स्थिति है.
उस जमाने में यदि राम-रावण या कौरव-पांडव के युद्ध भी हुए, तो वो सिद्घांतों की लड़ाइयां थीं और उन लड़ाइयों में हमेशा सच की ही जीत हुई है. आज के झगड़े सच्चाई के लिए नहीं, बल्कि अपने वर्चस्व, स्वार्थ तथा शक्ति प्रदर्शन के लिए होते हैं.
आज झूठ की सच पर जीत होती है, जो अधिक दिन नहीं टिकती और देश को नुकसान होता है. लेकिन मोहन भागवत का इशारा शायद उसी पौराणिक शांति व्यवस्था से है जो निश्चित रूप से देशहित में है. हम भारतवासियों को उन मूल्यों को फिर से वापस लाने पर विचार करना चाहिए.
मो सलीम, बरकाकाना