जब से ‘नमो’ प्रधानमंत्री बने हैं, तब से पार्टी की भूमिका खत्म होती जा रही है. जिस तरकीब से पुराने लोगों को दरकिनार किया जा रहा है, वह शायद भाजपा की संस्कृति नहीं थी. अटल-आडवाणी-जोशी युग देख चुके लोग तो यही कहेंगे. यह सही हो सकता है कि आडवाणी ने सिर्फ इसलिए चुनाव लड़ा हो कि यदि भाजपा को अपने दम पर सरकार बनाने का मौका नहीं मिलता, तो गंठबंधन के अन्य दल उनके नाम पर सहमत हो जायेंगे.
यह भी संभव है कि इसी ताक में राजनाथ सिंह, सुषमा स्वराज और अन्य भी होंगे, लेकिन आज अपमान और घुटन के कारण ये संसद सदस्य इस्तीफा दे दें, तब पार्टी की क्या स्थिति होगी? परिवार और पार्टी का विकास तभी होता है, जब उनमें बड़े-बुजुर्गो का सम्मान हो और उनके परामर्श पर अमल हो. आने वाले समय में कई राज्यों के चुनाव होने हैं, भाजपा को इन सबसे नुकसान भी हो सकता है.
नम्रता प्रसाद, जमशेदपुर