21.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

आध्यात्मिक केंद्र बनाने की राह

।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।। अर्थशास्त्री सरकार को चाहिए कि वाराणसी में अंतरराष्ट्रीय आध्यात्मिक यूनिवर्सिटी की स्थापना करे, जहां एक ही छत के नीचे विभिन्न धर्मो की शिक्षा दी जाये और इनके बीच परस्पर वार्तालाप स्थापित हो. लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने वाराणसी को विश्व का आध्यात्मिक केंद्र बनाने की बात की थी. […]

।। डॉ भरत झुनझुनवाला ।।
अर्थशास्त्री
सरकार को चाहिए कि वाराणसी में अंतरराष्ट्रीय आध्यात्मिक यूनिवर्सिटी की स्थापना करे, जहां एक ही छत के नीचे विभिन्न धर्मो की शिक्षा दी जाये और इनके बीच परस्पर वार्तालाप स्थापित हो.
लोकसभा चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने वाराणसी को विश्व का आध्यात्मिक केंद्र बनाने की बात की थी. इस महान कार्य के दो पहलू हैं- भौतिक और आध्यात्मिक. भौतिक स्तर पर वाराणसी की बुनियादी सुविधाओं में सुधार जरूरी है.
मुझे कुछ दिन पूर्व वाराणसी जाने का मौका मिला था. ऑटो ड्राइवर ने बताया कि शहर में फ्लाइओवर आदि का निर्माण मायावती सरकार के समय में हुआ था. अखिलेश सरकार में विकास के सब कार्य ठप्प हैं. सड़क, बिजली और प्रशासन राज्य सरकार अथवा नगरपालिका के अधीन हैं. इसलिए मोदी द्वारा बनाये गये प्लान के ठंडे बस्ते में जाने की संभावना ज्यादा है.
वाराणसी को विश्व का आध्यात्मिक केंद्र बनाने का दूसरा पहलू आध्यात्मिक है. वाराणसी का गंगा के साथ अटूट संबंध है. गंगा पर बजरे में बैठ कर ठंडाई पीना वाराणसी की पहचान है. आज वह गंगा मैली हो गयी है. गंगा का अधिकाधिक पानी नरोरा बराज से खेती के लिए निकाल लिया जाता है. अकसर नरोरा के आगे गंगा सूख जाती है.
पानी कम होने से प्रदूषण को वहन करने की गंगा की क्षमता भी क्षीण हो गयी है. इस समस्या की जड़ में कृषि में पानी का अनावश्यक उपयोग है. धान और गन्ने जैसी फसलों को पानी की भारी जरूरत होती है. इस संपूर्ण क्षेत्र में जल सघन फसलों के उत्पादन पर रोक लगानी होगी. तब ही वाराणसी में गंगा का सतत प्रवाह बनाये रखना संभव हो सकेगा.
साथ ही गंगा में डाले जानेवाले प्रदूषित जल को भी रोकना होगा. सात इंडियन इंस्टीट्यूट आफ टेक्नोलॉजी के समूह द्वारा गंगा के प्रबंधन पर प्लान बनाया जा रहा है. इनकी एक प्रमुख संस्तुति है कि उद्योगों द्वारा गंदे पानी को बाहर फेंका ही न जाये.
गंदे पानी को बारंबार साफ करके पुन: उपयोग में लाया जाये, जब तक वह समाप्त न हो जाये. इससे उद्यमी प्रयास करेगा कि पानी की खपत कम हो. दूसरे, गंगा का पानी साफ बना रहेगा. समस्या है कि पानी को साफ करने में लागत आयेगी और बाजार में बिकनेवाला माल महंगा हो जायेगा. ऐसे में हमे यह तय करना होगा कि हमारे लिए सस्ता माल महत्वपूर्ण है या गंगाजी का स्वच्छ जल.
गंगा में जा रहे वाराणसी के सीवेज को रोकने का कार्य नगरपालिका का है. केंद्र सरकार सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के लिए धन आवंटित कर दे, तो भी नगरपालिका को गंदे पानी की सफाई करने के लिए बिजली फूंकने से लाभ नहीं है.
जरूरत थी कि इस प्लांट के कैपिटल खर्च को पोषित करने की जगह मोदीजी साफ किये गये सीवेज को खरीदने की योजना बनाते. तब निजी उद्यमी भी सीवेज की सफाई में कूद पड़ते, चूंकि इससे कमाई के अवसर खुलते. परंतु मोदी सरकार पुराने ढांचे को पोषित कर रही है. सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट लगाने के लिए पैसा बांटा जा रहा है.
अब आध्यात्मिक पहलू. सामान्य रूप से आध्यात्म को पूजा-पाठ एवं कर्म-कांड से जोड़ा जाता है. इससे ऊपर उठते हैं तो सांसारिक बंधनों का त्याग कर कंदराओं में ध्यान आदि से जोड़ा जाता है. लेकिन इन स्तर पर हम वाराणसी को वैश्विक केंद्र नहीं बना सकेंगे, चूंकि हमारा पूजा-पाठ एवं त्याग सबको स्वीकार्य नहीं है. हमें एक और स्तर ऊपर उठना होगा. हमारे धर्मशास्त्रों में पर ब्रह्म और अपर ब्रह्म की अलग-अलग व्याख्या की गयी है. इसलाम तथा ईसाई धर्मो में गॉड की कल्पना अपर ब्रह्म के अनुरूप है.
यह आकारहीन और सक्रिय है. अत: यदि हम अध्यात्म को अपर ब्रह्म से पकड़ें तो वैश्विक स्तर पर अपनी पैठ बना सकते हैं. मनुष्य को चाहिए कि अपने कर्मो को अपर ब्रह्म के अनुसार ढाले. जैसे अपर ब्रह्म कहे कि प्रदूषण मत फैलाओ तो मनुष्य कचरे को रीसाइकिल करे. अपर ब्रह्म कहे कि नदी को बहने दो, तो मनुष्य नदी पर बांध न बनाये.
वाराणसी को विश्व का आध्यात्मिक केंद्र बनाने के लिए हमें त्याग की नयी परिभाषा गढ़नी होगी. सामान्यत: परिवार आदि का त्याग करके किसी आश्रम में सेवा करने अथवा एकांत में रहने को त्याग के रूप में समझा जाता है. लेकिन त्याग को अल्प समय के लिए पीछे हट कर दिशा निर्धारण के रूप में समझना होगा. जैसे शिक्षक कुछ समय के लिए पढ़ाई का कार्य बंद करके फेकल्टी मीटिंग में हिस्सा लेते हैं और फिर पढ़ाने जाते हैं.
यहां पढ़ाई के कार्य को कुछ समय के लिए बंद करना ही त्याग है. इसका उद्देश्य पढ़ाई बंद करना नहीं, बल्कि पढ़ाई को और तेजी से सही दिशा में करना है. इसी तरह संसार के त्याग का अर्थ कुछ समय के लिए संसार से अलग बैठने से लेना होगा. त्याग का अंतिम उद्देश्य संसार को नकारना नहीं, बल्कि अपर ब्रह्म द्वारा बतायी गयी दिशा में सक्रिय होना है.
सरकार को चाहिए कि वाराणसी में अंतरराष्ट्रीय आध्यात्मिक यूनिवर्सिटी की स्थापना करे, जहां एक ही छत के नीचे विभिन्न धर्मो की शिक्षा दी जाये और इनके बीच परस्पर वार्तालाप हो. वाराणसी को विश्व का आध्यात्मिक केंद्र बनाने के लिए हमें आध्यात्म की नयी परिभाषा गढ़नी होगी और गंगा की मर्यादा स्थापित करनी होगी.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें