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झारखंड को युवा और दूरदर्शी नेतृत्व की जरूरत
नीरजा चौधरी राजनीतिक विश्लेषक झारखंड के मौजूदा माहौल को देख कर कहा जा सकता है कि जिन उद्देश्यों को लेकर इसका गठन किया गया, वह किसी भी मायने में पूरा नहीं हो पाया है. उम्मीद है कि आगामी चुनाव में यहां के मतदाता एक स्थिर सरकार के पक्ष में जनादेश देंगे. निर्माण काल से ही […]
नीरजा चौधरी
राजनीतिक विश्लेषक
झारखंड के मौजूदा माहौल को देख कर कहा जा सकता है कि जिन उद्देश्यों को लेकर इसका गठन किया गया, वह किसी भी मायने में पूरा नहीं हो पाया है. उम्मीद है कि आगामी चुनाव में यहां के मतदाता एक स्थिर सरकार के पक्ष में जनादेश देंगे.
निर्माण काल से ही झारखंड की बिडंबना रही है कि राज्य में ऐसा कोई नेता नहीं उभरा, जिसके पास विकास का कोई ठोस विजन रहा हो. सभी नेताओं ने सिर्फ राजनीतिक रोटियां सेंकी और राज्य हित की बजाय स्वार्थ सिद्ध करने को ही प्रमुखता दी. जब मैं कुछ साल पहले झारखंड गयी थी, तो वहां देखा कि सचिवालय में कर्मचारी काफी संख्या में अनुपस्थित हैं. राज्य के सत्ता केंद्र के इस हालात को देख कर अन्य क्षेत्रों में सरकारी कार्यालयों की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है.
राज्य में उपलब्ध संसाधनों के थोड़े हिस्से का ही समुचित उपयोग किया गया होता, तो झारखंड में काफी विकास हुआ होता. लेकिन इन संसाधनों का प्रयोग विकास के बजाय भ्रष्टाचार के लिए किया गया. भ्रष्टाचार की गंगा में सभी ने अपने-अपने हाथ धोये. सबने लूटा. किसी ने भी झारखंड को कुछ देने की कोई कोशिश नहीं की.
छोटे प्रदेशों में अस्थिर सरकारें रही हैं. लेकिन अब अस्थिर सरकारों का दौर चला गया है. छत्तीसगढ़, उत्तराखंड में राजनीतिक स्थिरता रही है. गोवा में भी अब राजनीतिक स्थिरता देखी जा रही है. लेकिन केवल झारखंड ही ऐसा राज्य है, जहां पिछले 15 वर्षो में कोई स्थायी सरकार नहीं बन पायी है. राजनीतिक अस्थिरता से गवर्नेस पर सीधा असर पड़ता है और भ्रष्टाचार को बढ़ावा मिलता है. राजनीतिक अस्थिरता से शासन अपने हिसाब से काम करता है. झारखंड में सरकार का कामकाज पुराने र्ढे से चला आ रहा है. बदलाव की कोशिश नहीं हुई. समय बदल गया है. देश में नौजवानों की संख्या बढ़ी है.
आबादी में लगभग दो तिहाई हिस्सा युवाओं का है. आज का युवा यथास्थिति नहीं, बल्कि बदलाव चाहता है. उसे अच्छी शिक्षा, बेहतर शासन और रोजगार चाहिए. झारखंड इस मामले में काफी पिछड़ गया है. किसी भी देश-राज्य के इन युवाओं की चाहत को पूरा करने के लिए राजनीतिक नेतृत्व को कुछ नया एजेंडा सामने रखना होगा.
मेरा मानना है कि झारखंड को एक युवा और दूरदृष्टि वाले नेतृत्व की जरूरत है. जिन राज्यों में बेहतर नेतृत्व रहा है, वहां विकास के काम अच्छे हुए हैं. झारखंड में विकास की काफी संभावनाएं है. संसाधनों की कोई कमी नहीं है. अगर मजबूत नेतृत्व राज्य को मिले, तो इन संसाधनों की बदौलत विकास के मामले में झारखंड देश का अव्वल राज्य बन सकता है. शासन-व्यवस्था को बेहतर बनाया जा सकता है. इंफ्रास्ट्रर को ठीक किया जा सकता है. लेकिन इसके लिए विजन चाहिए.
लचर नेतृत्व का खामियाजा जनता को उठाना पड़ता है. कमजोर नेतृत्व के कारण ही झारखंड के अधिकांश जिले नक्सल प्रभावित हो गये हैं. लोगों को बुनियादी सुविधाएं नहीं मिल पा रही हैं. शिक्षा, स्वास्थ्य जैसी बुनियादी सुविधाओं की स्थिति काफी लचर है. ऐसा नहीं है कि अन्य दो राज्यों में स्थितियां काफी अच्छी हैं. लेकिन झारखंड की तुलना में वहां की स्थिति काफी बेहतर है.
झारखंड के मौजूदा माहौल को देख कर कहा जा सकता है कि जिन सपनों और उद्देश्यों को लेकर इस राज्य का गठन किया गया, वह किसी भी मायने में पूरा नहीं हो पाया है. उम्मीद है कि आनेवाले चुनाव में यहां के मतदाता एक स्थिर और मजबूत सरकार के पक्ष में जनादेश देंगे. साथ ही सभी राजनीतिक दलों को भी सचेत हो जाना चाहिए कि जनता लंबे समय तक अव्यवस्था और कुशासन को पसंद नहीं करती है. लोगों को एक अच्छी सरकार चाहिए, ताकि राज्य का विकास हो और भ्रष्टाचार पर रोक लग सके.
प्राकृतिक तौर पर संपन्न राज्य की बदहाल स्थिति के लिए वहां के राजनीतिक दल जिम्मेवार हैं. विकास के लिए सिर्फ बड़ी पूंजी को आकर्षित करना ही काफी नहीं होता है. झारखंड में अब तक की सभी सरकारों की कोशिश यही रही है. इस सोच को भी बदलने की जरूरत है और ऐसे विकास की जरूरत है, ताकि वहां के स्थानीय लोग आर्थिक और सामाजिक तौर पर सशक्त हो सकें.
(आलेख बातचीत पर आधारित)
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