15.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

असली योद्धा धान सिंह

अनुज कुमार सिन्हा धान सिंह मुंडारी की मौत की खबर मिली. उनका पूरा चेहरा सामने आ गया. कुछ समय पहले उनसे बोकारो आवास पर मुलाकात हुई थी. अस्वस्थ थे. लेकिन तेवर वही पुराना, आंदोलन वाला. जो धान सिंह मुंडारी को नहीं जानते, यह उनके लिए. शिबू सोरेन (गुरुजी) के उन दिनों के साथी, जब बोकारो […]

अनुज कुमार सिन्हा
धान सिंह मुंडारी की मौत की खबर मिली. उनका पूरा चेहरा सामने आ गया. कुछ समय पहले उनसे बोकारो आवास पर मुलाकात हुई थी. अस्वस्थ थे. लेकिन तेवर वही पुराना, आंदोलन वाला. जो धान सिंह मुंडारी को नहीं जानते, यह उनके लिए. शिबू सोरेन (गुरुजी) के उन दिनों के साथी, जब बोकारो स्टील प्लांट बन रहा था.
धान सिंह मुंडारी सिंहभूम से अपने आदिवासी युवा साथियों के साथ बोकारो (तब बोकारो का नाम माराफारी था) आये थे. मनोहरपुर, गोइलकेरा, सोनुवा के अलावा सिमडेगा, गुमला से भी युवा उनके साथ आये थे. रोजगार के लिए, नौकरी के लिए. ठेकेदारों का बोलबाला था. प्लांट बनने के दौरान ठेकेदार आदिवासी युवतियों का शोषण करते थे. धान सिंह ने ठेकेदारों को सबक सिखाने का निर्णय लिया था और इसी क्रम में वे नेता बने. उसी दौरान उनकी मुलाकात शिबू सोरेन से हुई थी. शिबू सोरेन उन दिनों मोटरसाइकिल से चलते थे. उसी समय से दोस्ती थी.
लगभग 12-13 साल पहले एक दिन धान सिंह मुंडारी मेरे पास जमशेदपुर (प्रभात खबर कार्यालय में) आये थे. मुझसे पहली मुलाकात थी. शिबू सोरेन के साथ अपनी तसवीर लेकर आये थे. कहा था-शिबू का पुराना फोटो है. कहीं और नहीं मिलेगा. तुम शिबू के बारे में खूब लिखते हो. तुम्हारे पास होगा, तो अखबार में काम आयेगा, छपेगा. स्कैन करा कर फोटो वापस ले गये थे. सिर्फ फोटो देने के लिए कोई व्यक्ति अगर बोकारो से जमशेदपुर आता हो, तो उसके जज्बे का अंदाजा लगा लीजिए. ऐसे व्यक्ति थे धान सिंह मुंडारी. हाल के वर्षो में कई बार फोन पर बात करते और झारखंड की पीड़ा की चर्चा करते.
मुलाकात में उन्होंने 1967-68 के आसपास की कई रोचक घटनाओं का जिक्र किया था. एक बार तो शिबू सोरेन को मौत के मुंह से धान सिंह मुंडारी ने ही निकाला था. उन दिनों शिबू सोरेन जैनामोड़ में रहते थे. धान काटो अभियान चल रहा था. पेटरवार के हड़मित्ता (उलगुड़ा) में शिबू सोरेन पर हमला हुआ और महाजनों के परिजनों ने उन्हें पकड़ लिया था. उन्हें जान से मार देने की साजिश थी. साथ में थे धान सिंह मुंडारी. बहुत तेज दौड़ते थे. इसलिए वे पकड़े नहीं गये. वहीं से चिल्लाया-अगर किसी ने शिबू को कुछ किया तो किसी को नहीं छोड़ेंगे. कहीं धान सिंह पूरे क्षेत्र में बात को फैला न दे और आंदोलनकारी गांव को घेर न लें, इस डर से जिन लोगों ने शिबू सोरेन को पकड़ा था, छोड़ दिया. उसके बाद दोनों भाग कर तेनुघाट के सुंदर मांझी के घर गये थे और रात बितायी थी. अगर उस दिन धान सिंह नहीं होते या वे भी पकड़ लिये जाते तो शायद शिबू सोरेन की जान नहीं बचती. शोषण के खिलाफ लड़नेवाले योद्धा थे धान सिंह मुंडारी. बोकारो स्टील प्लांट बनने के दौरान ठेकेदारों की हरकत से काफी नाराज रहते थे. ठेकेदार वहां काम करनेवाली आदिवासी युवतियों को परेशान करते थे.
इसका बदला धान सिंह मंगल बाजार में लेते थे. अपने साथ तेज ब्लेड रखते थे और मंगल बाजार में जब ठेकेदार आते थे, तो चुपके से शरीर पर ब्लेड मार कर तेजी से भाग जाते थे. कभी पकड़े नहीं गये. ऐसी घटनाओं से ठेकेदारों में भय छा गया था. झारखंड आंदोलन के दौरान शिबू सोरेन की छाया की तरह वे रहते थे. आसपास के गांवों में घुम-घुम कर लोगों को एकजुट करना उनका काम था. झारखंड आंदोलन के ऐसे योद्धा की कमी हमेशा खलेगी.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें