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बच्चा चोरी की अफवाह में हत्या मामला : अफवाह-अशांति फैलानेवालों पर हो अविलंब कार्रवाई

अनुज कुमार सिन्हा बच्चा चाेर की अफवाह फैलती है या फैलायी जाती है, उसके बाद दाे जगहाें (सरायकेला-खरसावां के राजनगर व जमशेदपुर के बागबेड़ा) पर आठ की हत्या कर दी जाती है. इन घटनाआें की प्रतिक्रिया हाेती है, लाेग लाठी-डंडा लेकर सड़काें पर उतर जाते हैं. पूरे जमशेदपुर शहर काे अशांत करने की साजिश की […]

अनुज कुमार सिन्हा
बच्चा चाेर की अफवाह फैलती है या फैलायी जाती है, उसके बाद दाे जगहाें (सरायकेला-खरसावां के राजनगर व जमशेदपुर के बागबेड़ा) पर आठ की हत्या कर दी जाती है. इन घटनाआें की प्रतिक्रिया हाेती है, लाेग लाठी-डंडा लेकर सड़काें पर उतर जाते हैं. पूरे जमशेदपुर शहर काे अशांत करने की साजिश की जाती है. पूरी घटना की जड़ बच्चा चाेर की अफवाह है. हत्या अफवाह के कारण हाेती है. मारे गये लाेग दाेनाें समुदाय के हाेते हैं, पर जमशेदपुर के दाे-चार नेता इसे सांप्रदायिक रंग देने में काेई कसर नहीं छाेड़ते. राजनगर में मारे गये लाेग अगर अल्पसंख्यक थे, ताे बागबेड़ा में मारे गये लाेग बहुसंख्यक. ये लाेग इसलिए मारे गये, क्याेंकि यही अफवाह फैलायी गयी कि ये बच्चा चाेरी करने आये थे. किसी ने सच काे जानने का प्रयास नहीं किया, पूछताछ नहीं की. यह जानने का प्रयास भी नहीं किया कि क्या जमशेदपुर, राजनगर या आसपास के किसी गांव से किसी बच्चे की चाेरी हुई है.
कहीं से काेई बच्चा गायब नहीं है, कहीं मामला दर्ज नहीं है, बच्चा चाेरी की काेई घटना नहीं घटी है, फिर किसने यह अफवाह फैलायी, यही ताे जांच का विषय है. असली अपराधी ताे वह है, जिसने यह अफवाह फैलायी, चाहे वह साेशल मीडिया के जरिए फैलायी हाे या अन्य किसी माध्यम से. आठ लाेगाें की हत्या का सबसे बड़ा दाेषी वही है. ऐसे समाज विराेधी या विराेधियाें काे सबसे पहले पकड़ कर जेल में डालना चाहिए. अंधी भीड़ भी कम दाेषी नहीं है. अफवाह की सच्चाई जाने बगैर उतर गये मारने के लिए. निर्दाेष लाेगाें की जान ले ली. यह नहीं साेचा कि ऐसी अफवाह के शिकार वे खुद या उनके परिवार के सदस्य भी तब हाे सकते हैं, जब वे दूसरे गांव में जायें.
बच्चा चाेर के नाम पर उनकी भी जान जा सकती है. समाज के प्रबुद्ध लाेग की चुप्पी आैर भी खतरनाक है. ऐसी बात नहीं कि जब ये हत्याएं हाे रही थी, पीट-पीट कर मारा जा रहा था ताे गांव में बड़े-बुजुर्ग या प्रभावशाली लाेग नहीं हाेंगे. सब थे, लेकिन काैन भीड़ काे मना करे. क्या कर रहे थे मुखिया या वैसे प्रभावशाली लाेग, जिनकी बात लाेग सुनते हैं. क्याें नहीं इन लाेगाें ने भीड़ काे सच बताने का साहस किया.
इन लाेगाें की जिम्मेवारी थी कि अफवाह फैलानेवाले (अगर उनकी जानकारी में हाे) काे पकड़ कर पुलिस के हवाले करते. आरंभ के दिनाें में पुलिस का माैनी बाबा बने रहना बड़ी चूक है. जब डुमरिया में एक युवक काे मई के आरंभ में ही बच्चा चाेर कह कर पीटा गया था, पुलिस काे उसी समय चाैकस हाेना चाहिए था. जब जादूगाेड़ा में ऐसी घटना घटी, पुलिस काे उसी समय कार्रवाई करनी चाहिए थी. जब राजनगर की घटना घटी, तब जाकर पुलिस की नींद खुली, तब तक काफी देर हाे चुकी थी. हद ताे तब हाे गयी जब जमशेदपुर के बागबेड़ा में भी यही घटना दोहरायी गयी. बच्चा चाेर कह कर तीन लाेगाें की हत्या कर दी गयी. यहां भी प्रभावशाली लाेगाें ने भीड़ काे समझाने का प्रयास नहीं किया.
इन घटनाआें की प्रतिक्रिया हुई. लाेगाें काे उकसाया गया. पूरी घटना अफवाह के कारण घटी (भले ही अफवाह फैलानेवालाें ने साजिश के तहत ऐसा किया हाे), पर इसे सांप्रदायिक रंग देना सबसे खतरनाक रहा. कुछ नेता अपने समुदाय के ठेकेदार बन जाते हैं, रक्षक बनने का ढाेंग रचते हैं ताकि उनकी राजनीति चलती रहे. नेताआें ने लाेगाें काे भड़काया. ताेड़फाेड़ की गयी. शनिवार काे पुलिस हरकत में आयी आैर स्थिति काे खराब हाेने से बचा लिया. जमशेदपुर एक संवेदनशील शहर है. इतिहास गवाह रहा है कि एक छाेटी से छाेटी घटना के कारण यह शहर अशांत हाे जाता है.
ऐसे में प्रशासन काे पहले दिन ही पूरी ताकत से हुड़दंगियाें काे नियंत्रण में ले लेना चाहिए था. हंगामा, ताेड़फाेड़ या हत्या-मारपीट में शामिल लाेग चाहे किसी भी संप्रदाय के क्याें न हाें, किसी भी राजनीतिक दल के क्याें न हाें, कितने भी ताकतवर क्याें न हाें, उन्हें नहीं छाेड़ा जाना चाहिए. प्रशासन काे निष्पक्ष हाेकर, निडर हाेकर कार्रवाई करना चाहिए ताकि भविष्य में काेई ऐसी हरकत करने की हिम्मत नहीं करे.
यह अफवाह तेजी से फैली है. अगर इस पर तुरंत राेक नहीं लगी, ताे राज्य के अन्य हिस्से में यह अफवाह फैल सकती है. अप्रिय घटनाएं घट सकती हैं. स्थिति यहां तक पहुंच चुकी है कि अब अनजान जगहाें में जाने से लाेग डर रहे हैं. ऐसी अफवाह न फैले, लाेग अफवाह पर भराेसा नहीं करे, इसका इंतजाम करना चाहिए. पुलिस के पास तकनीक है. इसका उपयाेग करे. जमशेदपुर शहर के 99 फीसदी से ज्यादा लाेग अमन-चैन चाहते हैं, भाईचारा के साथ रहते हैं. चंद उत्पातियाें से इस शहर काे खतरा रहता है.
ऐसे उत्पातियाें पर काबू पाने के लिए शासन काे आगे आना चाहिए. कानून का राज चले न कि ऐसे उत्पातियाें का. यह तभी संभव है जब पुलिस अपनी जिम्मेवारी निभाये, समाज के प्रबुद्ध लाेग सिर्फ काेसे नहीं, बल्कि माहाैल काे बेहतर करने के लिए आगे आयें. ऐसी घटनाआें पर राजनीति नहीं हाे आैर अगर किसी राजनीति चमकाने के लिए शहर काे अशांत करने का प्रयास किया ताे समाज उसे दरकिनार करे, कानून अपना काम कर उसे सही जगह भेजे. इसी में सभी की भलाई है. अंत में, अफवाह पर ध्यान मत दीजिए. काैआ कान ले गया, सुनकर काैआ के पीछे मत दाैड़िए, अपना कान देखिए आैर ऐेसी अफवाहाें काे लात मारिए.

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