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उम्मीदों को जगानेवाला बजट

लोकलुभावन नीतियों से परहेज करते हुए, विशुद्ध रूप से आर्थिक विकास को गति देने और नीतिगत विसंगतियों को दूर करने के तमाम प्रयास इस बजट में देखे जा सकते हैं.

सामान्य तौर पर बजट के मौसम में अपेक्षाएं बढ़ जाती हैं कि सरकार लोगों, खासतौर पर मध्यम वर्ग को खुश करने के लिए करों में राहत देगी. कॉरपोरेट सेक्टर की लॉबिंग रहती है कि उन पर टैक्स घटाने की बात होगी. विदेशी निवेशकों को लगता है कि वित्तमंत्री के पिटारे से उनके लिए भी कुछ कर राहतें निकलेंगी, लेकिन वित्तमंत्री निर्मला सीतारमण के चौथे बजट 2022-23 में ऐसा कुछ नहीं रहा. जब देश आजादी का अमृतोत्सव मना रहा है, तो देश के आगामी 25 वर्ष के विकास का रोड मैप का खाका यह बजट प्रस्तुत करता हुआ दिखायी दे रहा है.

यदि पिछले दो-तीन दशकों का लेखा-जोखा देखें, तो पता चलता है कि सरकार पूंजीगत व्यय से अपने हाथ पीछे खींचती हुई दिख रही थी. ऐसा लगता था कि शायद पूंजीगत निवेश का सारा दारोमदार निजी क्षेत्र पर आ गया है. उस पर भी तुर्रा यह कि विदेशी निवेश हर कमी की भरपाई कर सकता है, चाहे वह प्रौद्योगिकी विकास हो, रोजगार हो, निवेश हो अथवा निर्यात, लेकिन पिछले लगभग एक दशक से तमाम प्रयासों के बावजूद देश में पूंजी निवेश बढ़ नहीं पा रहा, चाहे वह सार्वजनिक क्षेत्र हो अथवा निजी क्षेत्र.

सरकार की सोच में बदलाव हुआ और सरकार ने इन्फ्रास्ट्रक्चर समेत कई क्षेत्रों में पूंजी निवेश करना शुरू किया. पिछले दो सालों से कोरोना की मार सह रही अर्थव्यवस्था में एक नयी जान फूंकने के लिए सार्वजनिक और निजी, दोनों प्रकार के निवेश को बढ़ाने की जरूरत महसूस की जा रही थी, लेकिन कोरोना के कारण राजस्व भी प्रभावित हो रहा था, जिससे सरकार जो पहले से ही गरीबों के लिए कुशलक्षेम की व्यवस्था करने और कोरोना के राहत पैकेज पर खर्च बढ़ा चुकी थी, उसके लिए निवेश के लिए धन जुटाना संभव नहीं हो पा रहा था.

चालू वित्त वर्ष में 9.2 प्रतिशत की विकास दर के चलते जीएसटी प्राप्तियों में भी खासी वृद्धि हुई और प्रत्यक्ष करों के राजस्व में भी. इसका पूरा फायदा उठाते हुए चालू वित्त वर्ष में भी पूंजीगत व्यय में वृद्धि हुई है. आगामी वर्ष में भी सात लाख 50 हजार करोड़ रुपये खर्च का प्रावधान रखा गया है, जो वर्तमान बजट का 19 प्रतिशत है. पिछले 30 वर्षों में शायद यह खर्च सर्वाधिक है.

वित्तमंत्री ने लोकलुभावन नीतियों से परहेज करते हुए ‘प्रधानमंत्री गति शक्ति परियोजना’, जिसमें विविध प्रकार के इन्फ्रास्ट्रक्चर के विकास का लक्ष्य है, ताकि देश में लॉजिस्टिक लागत को कम करते हुए देश की कार्य दक्षता में वृद्धि की जा सके. उसके लिए विभिन्न प्रकार के खर्चों का प्रावधान तो किया ही है, साथ ही साथ लघु उद्योगों, डिजिटल इन्फ्रास्ट्रक्चर, शिक्षा, पेयजल एवं गरीबों के लिए आवास समेत विविध खर्चों का प्रावधान किया है. यह बजट लोकलुभावन तो नहीं, लेकिन अगले 25 वर्षों के विकास पर केंद्रित है.

साल 2001 के बाद चीन से आयातों के बढ़ने से देश का मैन्युफैक्चिरिंग क्षेत्र लगभग तबाह हो गया. हमारा एपीआई उद्योग नष्ट हुआ, इलेक्ट्रॉनिक उद्योग और केमिकल उद्योग पर भी बुरा प्रभाव पड़ा. लघु उद्योगों की दुर्गति हुई. डब्ल्यूटीओ में हमें औसतन 40 प्रतिशत टैरिफ लगाने का अधिकार था, हम औसतन मात्र नौ से 10 प्रतिशत का ही टैरिफ लगा रहे थे. नतीजा हम सबने देखा. पूर्व वित्तमंत्री अरुण जेटली ने 2018 के बजट में भारत के इलेक्ट्रानिक और टेलीकॉम उद्योग को संरक्षण देते हुए टैरिफ को 10 प्रतिशत से 20 प्रतिशत करने की घोषणा की थी.

उसके बाद यह क्रम आगे बढ़ा. कोरोना काल के दौरान सरकार ने ‘मेक इन इंडिया’ नीति में बदलाव करते हुए, आत्मनिर्भर भारत के लक्ष्य को रेखांकित किया. जिन क्षेत्रों में आयातों के कारण सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा है, उनमें से 13 क्षेत्रों को चिह्नित करते हुए उत्पादन से संबद्ध प्रोत्साहन यानी पीएलआई योजना शुरू की गयी. पिछले माह सेमीकंडक्टर देश में निर्मित करने के लिए 10 अरब डॉलर के सहयोग की घोषणा भी हुई. ये सब देश के उद्योगों के संरक्षण हेतु हुआ.

वर्तमान बजट में भी सरकार ने विविध क्षेत्रों एवं उत्पादों के हिसाब से टैरिफ बढ़ाने की घोषणा की है. कई क्षेत्रों में जहां पूर्व में देश में उत्पादन बढ़ाने हेतु मध्यवर्ती वस्तुओं के टैरिफ घटाये गये थे, उस छूट को भी वापस लिया है. देश में सौर ऊर्जा के उपकरणों के उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए 19,500 करोड़ रुपये की विशेष घोषणा भी बजट में हुई है.

हरित क्रांति के समय से जो देश में रसायनिक खेती को बढ़ावा दिया गया, उससे देश में कृषि उत्पादन तो बढ़ा लेकिन साथ ही किसानों का कृषि पर खर्च भी बढ़ा और हमारे खाद्य पदार्थों में कीटनाशकों समेत अनचाहे रसायन भी आ गये. पिछले कुछ समय से सरकार का जोर रसायनमुक्त खेती की ओर है. रसायनमुक्त खेती के लक्ष्य को क्रमश: आगे बढ़ाते हुए इस बजट में प्राकृतिक खेती, जीरो बजट खेती और जैविक खेती के लिए प्रोत्साहन का प्रावधान किया गया है.

देश में खाद्यान्नों का उत्पादन जरूरत से ज्यादा है और तिलहनों का कम, जिसके कारण देश की निर्भरता विदेशी खाद्य तेलों पर खासी ज्यादा है. इसको दुरुस्त करने के लिए भी बजट में प्रावधान किया गया है. हालांकि, किसान आंदोलन तो खत्म हो गया है, लेकिन किसानों की स्थिति को बेहतर करने के लिए उनकी उपज के लाभकारी मूल्य को सुनिश्चित करने के लिए प्रावधान की जरूरत थी, जिसे बजट में स्थान मिला है.

कोरोना की मार झेल रहीं राज्य सरकारों के खजाने को मदद देने की जरूरत महसूस की जा रही थी. पिछले साल के बजट में 10 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया था, जिसे संशोधित अनुमानों में बढ़ा कर 15 हजार करोड़ रुपये किया गया और अगले वर्ष के लिए एक लाख करोड़ रुपये का प्रावधान बजट में किया गया है, जिसे राज्य कुछ विशेष खर्चों के लिए इस्तेमाल कर पायेंगे. अगले 40 दिनों में होने जा रहे पांच राज्यों के चुनावों के बावजूद, लोकलुभावन नीतियों से परहेज करते हुए, विशुद्ध रूप से आर्थिक विकास को गति देने और नीतिगत विसंगतियों को दूर करने के तमाम प्रयास इस बजट में देखे जा सकते हैं.

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