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ई-उत्पादों पर लगे आयात शुल्क

जब विकसित देश किसी भी हद तक जाकर भारत जैसे देशों पर दबाव बनाते हैं, तब भारत व अन्य विकासशील देशों को भी विकसित देशों को रोकना होगा.

हालांकि विश्व व्यापार संगठन का 12वां मंत्रीस्तरीय सम्मेलन कोरोना के बढ़ते प्रकोप के चलते अभी स्थगित हो गया है, पर अब तक की तैयारी से स्पष्ट है कि इस सम्मेलन में हमेशा की भांति बड़े औद्योगिक एवं विकसित देश ऐसे प्रस्तावों को आगे बढ़ाने का प्रयास करेंगे, जो उनकी कंपनियों के लिए तो हितकारी होंगे, लेकिन भारत समेत विकासशील देशों, खासतौर पर वहां के गरीबों के लिए अहितकारी होंगे.

प्रस्ताव यह है कि गैरकानूनी, गैररिर्पोटेड और गैरविनियमित मत्स्ययन के लिए दी जानेवाली सब्सिडी समाप्त हो, यानी सीधे-सीधे कोशिश यह है कि हमारे छोटे मछुआरों, जो अपने जीवनयापन के लिए लघुस्तरीय मत्स्ययन करते हैं, उनको सरकार कोई सहायता न दे पाए, लेकिन बड़े-बड़े ट्रॉलरों एवं जहाजों द्वारा गहरे समुद्र में मत्स्ययन के लिए सहायता में कटौती का कोई प्रस्ताव नहीं है.

भारत को कृषि उत्पादों की सरकारी खरीद के संदर्भ में, विकसित देशों द्वारा अभी तक जो कथित रियायत दी जा रही है, उसके स्थायी समाधान के नाम पर यह शर्त लादी जा रही है कि सरकार द्वारा खरीदे गये कृषि उत्पादों का निर्यात नहीं किया जा सकेगा.

कई उदाहरण इंगित करते हैं कि पूर्व में हुए समझौते गैरबराबरी के समझौते थे, जिनमें विकसित देशों द्वारा विकासशील देशों के विकास को बाधित करने और उनकी सरकारों को अपने उद्योग, कृषि और अर्थव्यवस्था के अन्य क्षेत्रों को किसी भी प्रकार की मदद से रोकने के प्रावधान किये गये थे, लेकिन जहां-जहां विकसित देशों की कंपनियों को फायदा पहुंच सकता था, उसके लिए विकासशील देशों से रियायतें लेने में भी कोई कसर नहीं छोड़ी गयी.

कहा जाता है कि व्यापार एक युद्ध है. जब विकसित देश व्यापार वार्ताओं को एक युद्ध के रूप में देखते हैं, तब भारत को भी अपने हितों के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए व्यापार वार्ताओं का सही उपयोग करना होगा. इस संदर्भ में संगठन के प्रारंभ से ही इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों पर टैरिफ स्थगन के अस्थायी प्रावधान को समाप्त करने हेतु प्रयास करने का समय आ गया है. गौरतलब है कि तब ऐसे उत्पादों में व्यापार बहुत सीमित था.

संगठन के दूसरे मंत्रीस्तरीय सम्मेलन में ही यह निर्णय हुआ था कि विकासशील देशों की विकास की आवश्यकताओं के संदर्भ में वैश्विक इलेक्ट्रॉनिक व्यापार से संबद्ध सभी मुद्दों पर अध्ययन हो और अगले सम्मेलन तक इन उत्पादों पर शुल्क स्थगित रखा जाए.आज स्थिति यह है कि अकेले भारत द्वारा लगभग 30 अरब डाॅलर से भी ज्यादा ऐसे उत्पादों का आयात हो रहा है.

यदि 10 प्रतिशत भी शुल्क लगाया जाए, तो भारत सरकार को तीन अरब डॉलर से ज्यादा राजस्व प्राप्त होगा. यहां विषय केवल राजस्व की हानि का नहीं है, बल्कि भारत जैसे देशों में जहां हमारे स्टार्टअप और सॉफ्टवेयर कंपनियां विभिन्न प्रकार के इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद बनाने में सक्षम हैं, जहां फिल्म और अन्य मनोरंजन के उत्पाद हम अपने देश में ही बना सकते हैं, लेकिन जब बिना शुल्क व रोक-टोक के इस प्रकार के सभी उत्पाद आयात हो जाते हैं, तो हमारे देश में उनके उत्पादन के लिए कोई प्रोत्साहन ही नहीं रहता.

इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों के निर्बाध आयात से केवल अमरीका और यूरोपीय देश ही लाभान्वित नहीं हो रहे, बल्कि चीन को भी फायदा हो रहा है. दुनिया में उत्पादन का प्रकार भी बदल रहा है. आज किसी वस्तु को विदेश से मंगाने के लिए उसको भौतिक रूप से आयात करना जरूरी नहीं. थ्रीडी प्रिटिंग द्वारा उस वस्तु को भौतिक रूप से बनाया जा सकता है. यदि ऐसा होता है, तो भौतिक वस्तुओं के आयात शुल्कों से भी देश को हाथ धोना पड़ सकता है.

इलेक्ट्रॉनिक कॉमर्स के बारे में दुनिया में अभी भी स्पष्टता नहीं है और न ही इसके व्यापार संबंधित विषयों की समझ में कोई मतैक्य है. विभिन्न प्रकार की चालाकियों से इस विषय और संबंधित चर्चाओं को उलझाने की कोशिश भी हो रही है. भारत और दक्षिण अफ्रीका इस मामले में सतर्कता और स्पष्टता से सक्रिय हैं और विश्व व्यापार संगठन परिषद को दिये अपने प्रस्ताव में उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक उत्पादों पर शुल्क स्थगन पर प्रश्नचिह्न लगाते हुए इस पर पुनर्विचार की मांग की है.

दिसंबर, 2019 में सदस्य देशों ने जून, 2020 (12वें मंत्रीस्तरीय सम्मेलन) तक के छह महीनों के लिए इस स्थगन को आगे बढ़ाया था. कोविड के चलते यह सम्मेलन नहीं हो पाया था. तब यह कहा गया था कि सम्मेलन में सदस्य देशों द्वारा इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन की परिभाषा स्पष्ट की जायेगी. भारत और दक्षिण अफ्रीका के प्रस्ताव में कई विकसित एवं विकासशील देशों के मत भी शामिल किये गये हैं तथा यह कहा गया है कि विकासशील देशों के लिए इस शुल्क स्थगन पर पुनर्विचार करना जरूरी हो गया है, ताकि आयात के नियमन के लिए नीति बन सके तथा राजस्व के साथ डिजिटल उद्योगीकरण के उद्देश्य की प्राप्ति की जा सके.

इस मुद्दे की और अधिक अनदेखी नहीं की जा सकती. भारत पहली तीन औद्योगिक क्रांतियों में पिछड़ा रहा. आज चौथी औद्योगिक क्रांति का समय है, जो डिजिटल उद्योगीकरण के माध्यम से आयेगी. हमें इस अवसर को खोना नहीं है. जब विकसित देश किसी भी हद तक जाकर भारत जैसे देशों पर दबाव बनाते हैं, तब भारत को भी अन्य विकासशील देशों को साथ लेकर विकसित देशों को रोकना होगा. इलेक्ट्रॉनिक ट्रांसमिशन पर शुल्क लगाना डिजीटल उद्योगीकरण के लिए पहली शर्त होगी.

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