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शेयर बाजार में तेज पूंजी प्रवाह

उम्मीद करें कि शेयर बाजार की मौजूदा तेज बढ़त के मद्देनजर तथा आइपीओ की बढ़ती बाढ़ के बीच सेबी की भूमिका और प्रभावी होगी.

कीनन शेयर बाजार में छलांग लगा कर बढ़ती हुई तेजी से आरंभिक सार्वजनिक निर्गम (आइपीओ) की होड़ लग गयी है. रिजर्व बैंक की 17 अगस्त को प्रकाशित रिपोर्ट के मुताबिक घरेलू यूनिकॉर्न उद्यमों के आइपीओ के साथ पूंजी बाजार में उतरने से 2021 आइपीओ वर्ष बन सकता है. बाजार के बेहतर परिदृश्य के मद्देनजर एफएमसीजी, ऊर्जा, रसायन, बीमा तथा बैंकिंग क्षेत्र की विभिन्न कंपनियां भी आइपीओ के लिए तेजी से आगे बढ़ी हैं.

इस वर्ष अब तक 50 से अधिक कंपनियां भारतीय प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड (सेबी) के पास आइपीओ आवेदन जमा करा चुकी हैं. यह संख्या पिछले दो वर्षों के कुल आवेदनों से भी अधिक है. पिछले वर्ष 23 मार्च को जो बॉम्बे स्टाक एक्सचेंज (बीएसई) सेंसेक्स 25981 अंकों के साथ ढलान पर था, वह 18 अगस्त को 55629 की ऊंचाई पर बंद हुआ. शेयर बाजार का यह चमकीला परिदृश्य निवेशकों, उद्योग-कारोबार और सरकार तीनों के लिए लाभप्रद है.

चालू वित्त वर्ष के पहले चार महीनों यानी अप्रैल से जुलाई के बीच निवेशकों ने 31 लाख करोड़ रुपये की कमाई की है. आइपीओ में खुदरा निवेशकों की भागीदारी 25 फीसदी बढ़ी है. पिछले वित्त वर्ष में 1.4 करोड़ से ज्यादा डीमैट खाते खुले हैं. देश में इन खातों की संख्या 6.5 करोड़ से ज्यादा हो गयी है.

इस समय विकासशील देशों में भारतीय शेयर बाजार की स्थिति शानदार दिख रही है. यह बात महत्वपूर्ण है कि तेजी की वजह से दशक में पहली बार भारत की लिस्टेड कंपनियों का कुल बाजार पूंजीकरण (मार्केट कैप) देश के सकल घरेलू उत्पादन (जीडीपी) से ज्यादा हो गया है. इस लिहाज से बाजार पूंजीकरण और जीडीपी का अनुपात 100 फीसदी को पार कर गया है. अमेरिका, जापान, फ्रांस, ब्रिटेन, हांगकांग, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और स्विट्जरलैंड जैसे विकसित देशों में भी यह अनुपात 100 फीसदी से अधिक है.

देश में शेयर बाजार की तेज बढ़त के कई कारण हैं. निवेशक यह देख रहे हैं कि कोरोना की चुनौतियों के बीच 2021-22 में विकास दर आठ-नौ फीसदी पहुंच सकती है. शेयर बाजार की बढ़त के परिदृश्य और कंपनियों के बेहतर परिणाम से निवेशकों का विश्वास बढ़ा है और अच्छी कमाई की उम्मीदें बढ़ी हैं. देशभर के विशेषज्ञ बाजार के अच्छे विश्लेषण प्रस्तुत करते हुए निवेश का सुझाव दे रहे हैं. भारत समेत दुनियाभर के केंद्रीय बैंकों ने बाजार में बड़ी मात्रा में पूंजी डाली है. ऐसे में इस समय ब्याज दरें ऐतिहासिक रूप से नीचे हैं.

निवेशक यह भी देख रहे है कि करीब छह फीसदी से अधिक की मुद्रास्फीति के बीच फिक्स्ड डिपाजिट से होनेवाला लाभ शेयर बाजार के लाभ से कम है. भारत में कोरोना से जंग के लिए दुनिया का सबसे बड़ा टीकाकरण अभियान सफलतापूर्वक आगे बढ़ रहा है. अमेरिका के साथ भारत के अच्छे संबंधों की संभावनाओं से भी निवेशकों की धारणा को बल मिला है. भारतीय अर्थव्यवस्था के प्रति भरोसा मजबूत होने से विदेशी निवेशक भारतीय शेयर बाजार में पूंजी लगाने में अधिक दिलचस्पी ले रहे हैं.

बजट में सरकार ने वृद्धि दर और राजस्व में बढ़ोतरी को लेकर जो एक बड़ा रणनीतिक कदम उठाया है, उससे शेयर बाजार को बड़ा प्रोत्साहन मिला है. वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट में प्रत्यक्ष करों और जीएसटी में 22 प्रतिशत बढ़ोतरी का अनुमान लगाया है. विनिवेश से प्राप्त होने वाली आय का लक्ष्य 1.75 लाख करोड़ रुपये रखा गया है. वित्तमंत्री ने राजकोषीय घाटे को जीडीपी के 6.8 फीसदी तक विस्तारित करने में कोई संकोच नहीं किया है. सरकार ने एफआरबीएम अधिनियम और क्रेडिट रेटिंग एजेंसियों की परवाह किये बिना एक नया राजकोषीय खाका पेश किया है.

जिस तरह से बजट में सरकार निजीकरण को बढ़ावा देने के साथ बीमा-बैंकिंग, विद्युत और कर सुधारों की डगर पर आगे बढ़ी है, उससे भी शेयर बाजार को गति मिली है. बजट में बुनियादी ढांचे, स्वास्थ्य, विनिर्माण तथा सर्विस सेक्टर भारी प्रोत्साहन भी शेयर बाजार के लिए लाभप्रद हैं. बीमा क्षेत्र में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) की सीमा बढ़ा कर 74 प्रतिशत करने से इस क्षेत्र को नयी पूंजी प्राप्त करने और कारोबार बढ़ाने में मदद मिलेगी.

सरकार का आइडीबीआइ बैंक के अलावा दो अन्य सार्वजनिक बैंकों और एक साधारण बीमा कंपनी के निजीकरण का भी प्रस्ताव है. बजट में लाभांश पर भी स्पष्टता सुनिश्चित की गयी है, जिससे पारदर्शिता बढ़ी है और निवेशक बाजार में धन लगाने के लिए आकर्षित हो रहे हैं. बजट में जहां शेयर बाजार में जोखिमों को कम करने के उपयुक्त प्रावधान किये गये हैं, वहीं बाजार को और अधिक लाभप्रद बनाने के प्रावधान भी लाये गये हैं.

अन्य कई विकसित और विकासशील देशों की तुलना में भारत के शेयर बाजार के बढ़ने की और संभावनाएं दिख रही हैं. चूंकि कोरोना की तीसरी लहर की आशंका के बावजूद विकास दर बढ़ती दिख रही है, अतएव शेयर बाजार में छोटे निवेशकों के कदम तेजी से बढ़ाना जरूरी है. छोटे और ग्रामीण निवेशकों की दृष्टि से शेयर बाजार की प्रक्रिया को और सरल बनाया जाना जरूरी है. लोगों को यह समझाना होगा कि शेयर बाजार कोई जुआघर नहीं है, बल्कि यह तो अर्थव्यवस्था की चाल नापने का एक आर्थिक बैरोमीटर है.

इस समय जब भारत में शेयर बाजार के तेजी आगे बढ़ने की संभावनाएं दिखायी दे रही हैं और निवेशकों के द्वारा उच्च प्रतिफल के लिए बड़ा जोखिम भी उठाया जा रहा है, तब शेयर बाजार की उभरती हुई चुनौतियों पर भी ध्यान देना जरूरी हैं. शेयर बाजार में जिस तरह लंबे समय से सुस्त पड़ी हुई कंपनियों के शेयरों की बिक्री कोविड-19 के बीच तेजी से बढ़ी है, उससे जोखिम भी बढ़ गया है. अतएव इसका सबसे अधिक ध्यान रिटेल निवेशकों के द्वारा रखा जाना होगा और शेयर बाजार में हर कदम फूंक-फूंक कर रखना जरूरी होगा.

निवेशकों और कारोबारियों को अपने अतिउत्साह की मनोवृत्ति पर भी समुचित नियंत्रण रखना होगा. यह बात ध्यान में रखना होगा कि जब लहर उतरती है, तभी हमको मालूम पड़ता है कि कौन बिना वस्त्रों के तैर रहा था. स्पष्ट है कि रुझान बदलने पर शेयर बाजार में मंदी की स्थिति भी निर्मित हो सकती है.

हम उम्मीद करें कि शेयर बाजार की मौजूदा तेज बढ़त के मद्देनजर जहां निवेशक शेयर बाजार का लाभ लेने के लिए तेजी से आगे बढ़ेगे, वहीं सरकार भी चालू वित्त वर्ष (2021-22) में 1.75 लाख करोड़ रुपये का विनिवेश लक्ष्य प्राप्त करने के लिए तेजी से आगे बढ़ेगी. हम उम्मीद करें कि कोविड-19 से ध्वस्त उद्योग-कारोबार सेक्टरों को पुर्नजीवित करने में शेयर बाजार प्रभावी भूमिका निभायेगा. साथ ही, आइपीओ की बढ़ती बाढ़ के बीच सेबी की भूमिका और प्रभावी होगी.

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