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आत्मनिर्भर भारत तथा भाषाएं

हिंदी समृद्ध और सशक्त भाषा तो है ही, भारत जैसे विशाल देश के विभिन्न राज्यों के मध्य आत्मीय संबंध और संवाद का सेतु भी है.

आज जब भारत समेत पूरा विश्व कोविड महामारी के संकट से गुजर रहा है, तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आत्मनिर्भर भारत की महत्वपूर्ण संकल्पना के बीज का रोपण प्रत्येक भारतवासी के मन में कर दिया है. आत्मनिर्भर भारत का स्वप्न मूलतः अपने समाज, संस्कृति, ज्ञान, दर्शन, भाषा और दक्षता में निहित मूल्यों को समझ कर उनके आधार पर आत्मबल एवं आत्मविश्वास विकसित करना है.

हमारी अर्थव्यवस्था बुनियादी ढ़ांचा, प्रणाली, उत्साहशील आबादी और मांग हितधारकों को मजबूत करने में अहम भूमिका निभा रही है. आत्मनिर्भर भारत वैश्विक आपूर्ति में व्यापक योगदान के लिए तैयार हो रहा है. किसी संकट की स्थिति में हमारी सभी जरूरतें स्थानीय स्तर पर यानी अपने देश में ही पूरी हो सकें, इसके लिए हर क्षेत्र में तेज गति से काम हो रहा है.

वर्तमान संकट काल ने संगठित और असंगठित, दोनों ही क्षेत्रों को सशक्त बनाने की ओर हमारा ध्यान आकृष्ट किया है. साथ ही, स्थानीय या स्वदेशी निर्माण, स्थानीय बाजार और आपूर्ति शृंखलाओं के महत्व को भी इंगित किया है. आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना को गति प्रदान करने तथा उसे साकार करने हेतु कुशल नेतृत्व में कौशल विकास की आवश्यकता है.

हमारा देश विश्व में सबसे अधिक युवा शक्ति से संपन्न देश है. इक्कीसवीं सदी के भारत निर्माण में ग्लोबल स्किल गैप की मैपिंग की जा रही है, जो युवाओं के कौशल और हुनर को संवारने का निरंतर प्रयास करेगा. आने वाले समय में कोरोना महामारी के खिलाफ लड़ाई में भारत के श्रम बल का बहुत बड़ा योगदान रहेगा. बहु-संस्कृति, बहु-भाषिकता, विविध खान-पान और वेशभूषा के संगम से परिपूर्ण इस देश की भौगोलिक सीमाओं का विस्तार अनंत है.

इस विशाल परिधि को सिर्फ एक सशक्त माध्यम ने जोड़ा हुआ है और यह माध्यम है हमारी भाषा- हिंदी. भाषा के बिना समाज और समूह व इन में निहित सांस्कृतिक मूल्यों की कल्पना संभव नहीं है. हिंदी वह वाहिका है, जो संस्कृतियों को आपस में जोड़ने का सार्थक प्रयास करती है. हिंदी समृद्ध और सशक्त भाषा तो है ही, भारत जैसे विशाल देश के विभिन्न राज्यों के मध्य आत्मीय संबंध और संवाद का सेतु भी है.

हमारा इतिहास साक्षी है कि एक मुकुट मणि के समान हिंदी भाषा ने अपनी सरलता, सुबोधता और सुगमता से भारत के हर कोने में अपना प्रकाश फैलाया है. इसी के साथ भारतीय संस्कृति के उद्भव और विकास में क्षेत्रीय भाषाओं का अहम योगदान रहा. यह आवश्यक है कि क्षेत्रीय भाषाओं का संरक्षण, संवर्धन और विकास किया जाए, जिससे भारतीय साहित्य समृद्ध हो सके. इससे भारतीय भाषाओं में आपसी सामंजस्य और सौहार्द भी बढ़ेगा.

देश में भाषाई एकता एवं राष्ट्रीयता की भावना को पुष्पित-पल्लवित करने के लिए एक-दूसरे के समृद्ध साहित्य को पढ़ना और समझना आवश्यक है, जो अनुवाद के माध्यम से संभव है. विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में सरकार द्वारा चलायी जा रही योजनाओं को आम जनमानस तक पहुंचाने के लिए क्षेत्रीय भाषाएं अत्यधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं.

प्रगतिशील लोकतंत्र को जीवंत रखने के लिए हमें भारतीय संघ के कामकाज राजभाषा हिंदी और अन्य सभी राज्यों के कामकाज को सुचारू रूप से चलाने हेतु प्रांतीय भाषाओं का प्रयोग उत्तरोत्तर बढ़ाना होगा. स्किल इंडिया मिशन के अंतर्गत प्रधानमंत्री कौशल विकास योजना में करोड़ों युवाओं को उद्योग संबंधी कौशल प्रशिक्षण दिया जा रहा है. इनके बेहतर भविष्य के लिए प्रशिक्षण उन्हीं की भाषाओं में दिये जाने का अवसर बनना चाहिए. अपनी भाषा में शिक्षा प्राप्त करने से युवाओं में आत्मविश्वास और नयी ऊर्जा का संचार होगा. वे अपनी बात बेहतर और सुगठित तरीके से प्रस्तुत कर पायेंगे.

भारत सरकार ने एक प्रशंसनीय कदम उठाते हुए नयी शिक्षा नीति- 2020 में पांचवी कक्षा तक अनिवार्य रूप से मातृभाषा एवं स्थानीय भाषा में शिक्षा देने का प्रावधान किया है. इस शिक्षा नीति में हिंदी तथा क्षेत्रीय भाषाओं के मध्य सौहार्द स्थापित करने का सार्थक प्रयास किया गया है. मातृभाषा या स्थानीय भाषा में दी गयी शिक्षा समाज निर्माण की प्रक्रिया में आधारभूत परिवर्तन लाने में सक्षम हैं. इसके लिए जरूरत है कि सभी क्षेत्रों, जैसे- व्यापार, अर्थतंत्र, तकनीक, नवाचार, शोध, मौलिक-चिंतन आदि को क्षेत्रीय भाषाओं से जोड़ा जाए.

तकनीकी-परक विषयों से संबंधित सामग्री का सभी क्षेत्रीय भाषाओं में अनुवाद हो, जिससे किसी भी छात्र की प्रतिभा की अवनति न हो. देश में आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, ऊर्जा, क्लाईमेट सोल्यूशन, हाइटेक इंफ्रास्ट्रक्चर के क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं. स्टार्टअप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया, अटल इनोवेशन मिशन, प्रधानमंत्री रिसर्च फेलोशिप जैसे अनेक कार्यक्रमों ने कौशलयुक्त युवा पीढ़ी के निर्माण के नये रास्ते बनाये हैं. जरूरत है तो सिर्फ अपनी भाषाओं के माध्यम से युवाओं को सशक्त बनाने की, जिससे वे आत्मविश्वास के साथ समय की मांग को पूरा करने में सक्षम हो सकें.

भारत जैसे विविधता से भरे देश की सभी भाषाएं सहस्र धाराओं की तरह जिस भी प्रांत से गुजरती हैं, वहीं की संस्कृति को आत्मसात कर लेती है. सूचना और प्रौद्योगिकी के इस युग में सभी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध बौद्धिक संपदा का डिजिटलीकरण किया जाए तथा समस्त नागरिकों के लिए ज्ञान के स्रोत को उपलब्ध कराया जाए. सरकार, शिक्षाशास्त्री, भाषाशास्त्री और नीति निर्माताओं को मिल कर ठोस कदम उठाने होंगे, जिससे आत्मनिर्भरता की ओर बढ़ते युवाओं को भाषा के हाशिये पर हताश न होना पड़े.

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